बलुई मृदा(Sandy Soil)

बलुई मृदा(Sandy Soil)

विशेषताएँ, वितरण और महत्व

परिचय

बलुई मृदा (Sandy Soil) भारत की प्रमुख मृदाओं में से एक है, जो अपनी रेतीली बनावट, जल निकासी क्षमता और कम पोषक तत्वों के लिए जानी जाती है। यह मृदा मुख्य रूप से शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है, जहाँ वर्षा कम होती है और तापमान अपेक्षाकृत अधिक रहता है। बलुई मृदा कृषि और पारिस्थितिकी दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, यद्यपि इसकी उर्वरता अन्य मृदाओं की तुलना में कम होती है।


बलुई मृदा की संरचना और बनावट

कणों का आकार

बलुई मृदा के कण अपेक्षाकृत बड़े होते हैं (0.05 मिमी से 2 मिमी व्यास), जिसके कारण इसकी जल धारण क्षमता कम और जल निकासी तेज होती है।

खनिज संरचना

इसमें मुख्य रूप से क्वार्ट्ज, सिलिका और थोड़ी मात्रा में फेल्सपार पाए जाते हैं। कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बेहद कम होती है।

रंग और स्पर्श

बलुई मृदा का रंग हल्का पीला, भूरे या हल्के लाल रंग का हो सकता है और यह हाथ में लेने पर खुरदुरी महसूस होती है।


बलुई मृदा का वितरण

भारत में मुख्य क्षेत्र

  • राजस्थान – विशेष रूप से थार मरुस्थल क्षेत्र
  • हरियाणा – दक्षिण-पश्चिमी जिलों में
  • पंजाब – दक्षिण-पश्चिमी शुष्क क्षेत्र
  • उत्तर प्रदेश – पश्चिमी भाग
  • गुजरात – कच्छ और सौराष्ट्र के कुछ हिस्से

इन क्षेत्रों में वर्षा बहुत कम (100–500 मिमी प्रति वर्ष) होती है और तापमान अधिक रहता है, जिससे बलुई मृदा का निर्माण और विस्तार होता है।


बलुई मृदा की विशेषताएँ

उच्च जल निकासी क्षमता

इस मृदा में पानी जल्दी से नीचे चला जाता है, जिससे जलभराव की समस्या नहीं होती।

कम जल धारण क्षमता

कण बड़े और आपस में ढीले होने के कारण यह मृदा पानी और पोषक तत्वों को ज्यादा समय तक नहीं रोक पाती।

कम उर्वरता

कार्बनिक पदार्थ और पोषक तत्वों की कमी के कारण इसकी प्राकृतिक उर्वरता कम होती है।

तापमान में तेजी से बदलाव

यह मृदा गर्मियों में जल्दी गर्म और सर्दियों में जल्दी ठंडी हो जाती है।


कृषि में बलुई मृदा का महत्व

उपयुक्त फसलें

बलुई मृदा में वे फसलें बेहतर होती हैं जो सूखा और कम पोषण सहन कर सकती हैं, जैसे:

  • बाजरा
  • मूंगफली
  • तिल
  • ग्वार
  • तरबूज
  • खरबूजा
  • चना (सिंचित अवस्था में)

बागवानी में उपयोग

इसकी जल निकासी क्षमता के कारण यह बागवानी फसलों जैसे प्याज, लहसुन, आलू, गाजर आदि के लिए भी उपयुक्त है।


बलुई मृदा की समस्याएँ

मृदा अपरदन

तेज हवाओं से मृदा का कटाव होता है, खासकर रेगिस्तानी क्षेत्रों में।

उर्वरता की कमी

नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की कमी होती है।

सिंचाई की चुनौती

कम जल धारण क्षमता के कारण बार-बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।


बलुई मृदा का सुधार

जैविक पदार्थ का उपयोग

गोबर की खाद, हरी खाद और कम्पोस्ट डालने से मृदा की उर्वरता और जल धारण क्षमता बढ़ाई जा सकती है।

मल्चिंग तकनीक

मल्च (Mulch) का प्रयोग करके नमी को लंबे समय तक बनाए रखा जा सकता है।

सिंचाई पद्धति में सुधार

ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई से पानी की बचत होती है और नमी का स्तर बना रहता है।

हवा रोकने वाली वृक्ष पंक्तियाँ

हवा से मृदा के कटाव को रोकने के लिए खेतों के चारों ओर पेड़-पौधे लगाए जाते हैं।


निष्कर्ष

बलुई मृदा, अपनी विशेष भौतिक विशेषताओं और सीमित उर्वरता के बावजूद, यदि सही कृषि तकनीक और प्रबंधन अपनाया जाए तो अत्यधिक उत्पादक हो सकती है। जैविक उर्वरकों का प्रयोग, उचित सिंचाई और संरक्षण उपाय अपनाकर इस मृदा को कृषि एवं पर्यावरण दोनों दृष्टि से अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है।




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