बैंकिंग प्रणाली (Banking System)

बैंकिंग प्रणाली (Banking System in India)


परिचय: बैंकिंग प्रणाली क्या है?

बैंकिंग प्रणाली (Banking System) किसी भी देश की आर्थिक संरचना की रीढ़ (Backbone of the Economy) होती है।
यह वह माध्यम है जिसके द्वारा जनता की बचतें (Savings) सरकार और उद्योगों के लिए निवेश (Investment) का स्रोत बनती हैं।

सरल शब्दों में —

बैंक एक ऐसी वित्तीय संस्था है जो जमा स्वीकार (Deposit) करती है और ऋण प्रदान (Loan/Advance) करती है।

भारत में बैंकिंग प्रणाली केवल वित्तीय लेनदेन का साधन नहीं, बल्कि यह विकास, सामाजिक समावेशन और राजकोषीय स्थिरता का भी प्रमुख उपकरण है।


भारतीय बैंकिंग प्रणाली का इतिहास (History of Indian Banking System)

भारत में बैंकिंग की शुरुआत 18वीं शताब्दी में हुई थी।

मुख्य ऐतिहासिक पड़ाव:

  1. 1770: पहला भारतीय बैंक — हिंदुस्तान बैंक (Hindustan Bank), हालांकि यह अधिक समय तक नहीं चला।
  2. 1806: बैंक ऑफ बंगाल की स्थापना हुई — यह भारत का पहला सरकारी बैंक था।
  3. 1921: बैंक ऑफ बंगाल, बैंक ऑफ बॉम्बे और बैंक ऑफ मद्रास को मिलाकर इम्पीरियल बैंक ऑफ इंडिया (Imperial Bank of India) बनाया गया।
  4. 1955: इम्पीरियल बैंक का राष्ट्रीयकरण कर उसे भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India - SBI) का नाम दिया गया।
  5. 1969 और 1980: दो चरणों में कुल 20 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।
  6. 1991 के बाद: उदारीकरण नीति के तहत निजी और विदेशी बैंकों को प्रवेश मिला।
  7. 2014 से आगे: डिजिटल बैंकिंग, भुगतान बैंक (Payment Banks) और स्मॉल फाइनेंस बैंक (Small Finance Banks) का दौर शुरू हुआ।


बैंकिंग प्रणाली की संरचना (Structure of Indian Banking System)

भारत की बैंकिंग प्रणाली बहु-स्तरीय (Multi-layered) है, जिसमें विभिन्न प्रकार के बैंक अपनी भूमिकाएँ निभाते हैं।

1. केंद्रीय बैंक (Central Bank):

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India – RBI) भारत का केंद्रीय बैंक है।
इसकी स्थापना 1 अप्रैल 1935 को RBI Act, 1934 के तहत की गई थी।
RBI देश की मौद्रिक नीति (Monetary Policy) बनाता है, मुद्रा जारी करता है, और समस्त बैंकों का नियामक होता है।

2. अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (Scheduled Commercial Banks):

ये बैंक RBI Act, 1934 की दूसरी अनुसूची (Second Schedule) में सूचीबद्ध होते हैं।
इनमें शामिल हैं:

  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (Public Sector Banks): जैसे SBI, PNB, Bank of Baroda आदि।
  • निजी क्षेत्र के बैंक (Private Sector Banks): जैसे HDFC, ICICI, Axis Bank आदि।
  • विदेशी बैंक (Foreign Banks): जैसे Citi Bank, HSBC, Standard Chartered आदि।

3. सहकारी बैंक (Co-operative Banks):

ये बैंक ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में काम करते हैं।
इनका संचालन सहकारी सिद्धांतों पर आधारित होता है।
जैसे — जिला सहकारी बैंक, राज्य सहकारी बैंक आदि।

4. विकास बैंक (Development Banks):

ये विशेष उद्देश्य के लिए स्थापित किए गए वित्तीय संस्थान हैं, जैसे:

  • NABARD – कृषि और ग्रामीण विकास के लिए
  • SIDBI – सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के लिए
  • EXIM Bank – निर्यात-आयात व्यापार के लिए
  • NHB – आवास क्षेत्र के लिए

5. अन्य बैंकिंग संस्थाएँ:

  • पेमेंट बैंक (Payment Banks) – सीमित बैंकिंग सेवाएँ जैसे जमा और ट्रांसफर (जैसे Paytm Payments Bank)।
  • स्मॉल फाइनेंस बैंक (Small Finance Banks) – छोटे व्यवसायों और ग्रामीण क्षेत्रों को ऋण प्रदान करते हैं।


बैंकिंग प्रणाली के मुख्य कार्य (Functions of Banking System)

1. प्राथमिक कार्य (Primary Functions):

  • जमा स्वीकार करना (Accepting Deposits) – बचत खाता, चालू खाता, सावधि जमा।
  • ऋण देना (Granting Loans and Advances) – व्यक्तिगत, व्यवसायिक और औद्योगिक ऋण।

2. द्वितीयक कार्य (Secondary Functions):

  • क्रेडिट निर्माण (Credit Creation): बैंक अपने ऋणों के माध्यम से मुद्रा आपूर्ति बढ़ाते हैं।
  • एजेंसी सेवाएँ (Agency Services): बिल भुगतान, निवेश, बीमा, डिमांड ड्राफ्ट आदि।
  • सामाजिक बैंकिंग (Social Banking): सरकार की योजनाओं जैसे जन धन योजना, किसान क्रेडिट कार्ड में भागीदारी।


भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका (Role of RBI in Banking System)

RBI भारतीय बैंकिंग प्रणाली का “नियामक (Regulator)” और “संरक्षक (Custodian)” है।
इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:

  1. मौद्रिक नीति का निर्माण (Formulation of Monetary Policy)
  2. मुद्रा जारी करना (Issue of Currency)
  3. बैंकों का नियंत्रण और लाइसेंसिंग
  4. वित्तीय स्थिरता बनाए रखना (Financial Stability)
  5. ग्राहक संरक्षण और शिकायत निवारण

RBI का मुख्य उद्देश्य:

“मूल्य स्थिरता (Price Stability)” और “आर्थिक विकास (Economic Growth)” के बीच संतुलन बनाए रखना।


राष्ट्रीयकरण और उसका प्रभाव (Nationalization of Banks)

भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण 1969 और 1980 में दो चरणों में हुआ।
इसका मुख्य उद्देश्य था —

  • ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं का विस्तार,
  • ऋण सुलभता में समानता,
  • और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना।

1969: 14 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण
1980: 6 और बैंकों का राष्ट्रीयकरण

इससे “सामाजिक बैंकिंग (Social Banking)” को गति मिली और कृषि व छोटे उद्योगों को वित्तीय सहायता मिलने लगी।


बैंकिंग सुधार और आधुनिकीकरण (Banking Reforms and Modernization)

1991 के बाद भारत ने नरसिम्हन समिति (Narasimham Committee) की सिफारिशों के आधार पर कई सुधार किए:

  1. निजी बैंकों का प्रवेश (Entry of Private Banks)
  2. NPAs (Non-Performing Assets) नियंत्रण हेतु प्रावधान
  3. प्रौद्योगिकी आधारित बैंकिंग (Technology-driven Banking)
  4. Core Banking Solutions (CBS) का विस्तार
  5. ATM, Internet Banking, Mobile Banking, UPI जैसी सुविधाओं की शुरुआत

हाल के सुधार:

  • Jan Dhan Yojana (2014) – हर नागरिक को बैंक खाता।
  • UPI और डिजिटल भुगतान प्रणाली (2016 से आगे) – कैशलेस अर्थव्यवस्था की दिशा में कदम।
  • बैंकों का विलय (Bank Mergers) – कार्यकुशलता और पूँजी मजबूती हेतु।


बैंकिंग प्रणाली की चुनौतियाँ (Challenges in Indian Banking System)

NPA (Non-Performing Assets):
बैंकों के ऋण वसूली में कठिनाई और बढ़ता वित्तीय दबाव।

साइबर सुरक्षा खतरे (Cyber Security Risks):
डिजिटल लेनदेन के साथ साइबर अपराधों में वृद्धि।

वित्तीय साक्षरता की कमी:
ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं के प्रति जागरूकता का अभाव।

प्रतिस्पर्धा:
निजी और डिजिटल बैंकों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा।

पूँजी पर्याप्तता (Capital Adequacy):
सरकारी बैंकों में पूँजी की कमी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।

बैंकिंग प्रणाली के लाभ (Advantages of Banking System)

  • आर्थिक विकास में योगदान
  • निवेश और उत्पादन को प्रोत्साहन
  • रोजगार सृजन
  • सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का क्रियान्वयन
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था का विस्तार


प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण तथ्य (Important Facts for Exams)

विषय विवरण
RBI की स्थापना 1 अप्रैल 1935
RBI का राष्ट्रीयकरण 1 जनवरी 1949
पहला भारतीय बैंक हिंदुस्तान बैंक (1770)
SBI की स्थापना 1955 (Imperial Bank of India से)
राष्ट्रीयकरण की तिथियाँ 1969 और 1980
PSBs की संख्या (2025 तक) 12
NPAs का अर्थ Non-Performing Assets
Jan Dhan Yojana की शुरुआत 2014
UPI लॉन्च वर्ष 2016
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) 2015

बैंकिंग प्रणाली और शासन में भूमिका (Role of Banking System in Governance)

बैंकिंग प्रणाली भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास की मुख्य धारा है।
सरकार की अधिकांश योजनाएँ — जैसे जन धन योजना, मुद्रा योजना, PM Kisan, DBT (Direct Benefit Transfer)बैंकों के माध्यम से ही लागू होती हैं।

इसके अतिरिक्त, बैंक वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion), महिला सशक्तिकरण, और डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन के वाहक हैं।


निष्कर्ष: विकास की धड़कन है बैंकिंग प्रणाली

भारतीय बैंकिंग प्रणाली ने समय के साथ अत्यधिक विकास किया है —
कागजी लेनदेन से डिजिटल बैंकिंग तक का यह सफर भारत की आर्थिक प्रगति का प्रतीक है।

आज बैंक केवल वित्तीय संस्थान नहीं, बल्कि विकास, पारदर्शिता और आत्मनिर्भर भारत (Atmanirbhar Bharat) की नींव बन चुके हैं।

वास्तव में, एक मजबूत, समावेशी और तकनीकी रूप से सशक्त बैंकिंग प्रणाली ही भारत को विश्व की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में स्थान दिला सकती है।



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