भारत का प्रायद्वीपीय पठार
भौगोलिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अध्ययन
भारत का प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateau) देश का सबसे प्राचीन और स्थिर भू-भाग है। इसे आदिम भू-खंड (Ancient Landmass) भी कहा जाता है, क्योंकि यह भूवैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत पुराना है। यह पठार भारत की भू-आकृति, खनिज संपदा, नदियों, कृषि और संस्कृति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
प्रायद्वीपीय पठार का विस्तार
- प्रायद्वीपीय पठार भारत के दक्षिणी भाग में स्थित है।
- उत्तर में यह विन्ध्य पर्वतमाला से शुरू होकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक फैला है।
- इसका क्षेत्रफल लगभग 16 लाख वर्ग किलोमीटर है, जो भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 43% है।
- यह पठार त्रिकोणाकार दिखाई देता है – उत्तर में चौड़ा और दक्षिण की ओर संकरा।
प्रायद्वीपीय पठार की उत्पत्ति
- यह भू-भाग प्राचीनतम गोंडवाना भू-खंड का हिस्सा है।
- इसका निर्माण आग्नेय चट्टानों और कठोर क्रिस्टलीय शैलों से हुआ है।
- भूगर्भीय दृष्टि से यह स्थिर है और इसमें भूकंप तथा पर्वत निर्माण की गतिविधियाँ कम होती हैं।
प्रायद्वीपीय पठार के प्रमुख भाग
प्रायद्वीपीय पठार को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जाता है:
1. मध्य उच्च भूमि (Central Highlands)
- यह भाग विन्ध्य और अरावली पर्वतों के बीच स्थित है।
- इसमें मालवा पठार, बुंदेलखंड, बघेलखंड और छोटा नागपुर पठार शामिल हैं।
- छोटा नागपुर पठार खनिज संपदा जैसे लौह अयस्क, कोयला और अभ्रक के लिए प्रसिद्ध है।
2. दक्कन का पठार (Deccan Plateau)
- यह पठार भारत के दक्षिणी हिस्से में स्थित है।
- इसके पश्चिम में सह्याद्रि (पश्चिमी घाट) और पूर्व में पूर्वी घाट हैं।
- यह पठार लावा के प्रवाह से बना है, जिसे डेक्कन ट्रैप कहा जाता है।
- यहाँ काली मिट्टी (रेगुर) पाई जाती है, जो कपास की खेती के लिए प्रसिद्ध है।
प्रायद्वीपीय पठार की नदियाँ
- यहाँ की नदियाँ अधिकतर प्रायद्वीपीय नदियाँ हैं, जो या तो पश्चिम में अरब सागर या पूर्व में बंगाल की खाड़ी में मिलती हैं।
- प्रमुख नदियाँ: गोडावरी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा, तापी और महानदी।
- नर्मदा और तापी पश्चिम की ओर बहती हैं, जबकि शेष नदियाँ पूर्व की ओर।
प्रायद्वीपीय पठार की प्रमुख विशेषताएँ
- प्राचीन भू-आकृति – भूगर्भीय दृष्टि से बहुत पुराना और स्थिर।
- खनिज संपदा से समृद्ध – लौह अयस्क, कोयला, बॉक्साइट, सोना और अभ्रक की प्रचुरता।
- कृषि – काली मिट्टी में कपास, लाल मिट्टी में बाजरा, ज्वार और दालें उगाई जाती हैं।
- पर्वत और घाटियाँ – सह्याद्रि, पूर्वी घाट और सतपुड़ा प्रमुख।
- जलप्रपात – जोघ, हुगली और मैकेडो जलप्रपात पर्यटन के लिए प्रसिद्ध।
आर्थिक महत्व
- कृषि उत्पादन – कपास, गन्ना, ज्वार, बाजरा, तंबाकू और चावल की खेती।
- खनन और उद्योग – लौह अयस्क और कोयले के कारण यहाँ भारी उद्योग स्थापित।
- जलविद्युत उत्पादन – नर्मदा, तापी और कावेरी पर बाँधों का निर्माण।
- पर्यटन – ऐतिहासिक किले, गुफाएँ (अजन्ता, एलोरा), हिल स्टेशन और मंदिर।
सांस्कृतिक महत्व
- यहाँ द्रविड़ संस्कृति और भाषाओं (तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम) का विकास हुआ।
- अजंता–एलोरा और हम्पी जैसी ऐतिहासिक धरोहरें यहीं स्थित हैं।
- यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा है।
प्रायद्वीपीय पठार की चुनौतियाँ
- जल की कमी – वर्षा असमान और सीमित।
- सूखा – विशेषकर दक्कन का पठार बार-बार सूखे की चपेट में आता है।
- कृषि में कठिनाई – कठोर भूमि और सीमित सिंचाई साधन।
- जनसंख्या दबाव – संसाधनों का अत्यधिक दोहन।
निष्कर्ष
भारत का प्रायद्वीपीय पठार भूगोल, अर्थव्यवस्था और संस्कृति की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र न केवल खनिज और कृषि उत्पादन में योगदान देता है, बल्कि यहाँ की नदियाँ, मिट्टी और सांस्कृतिक धरोहरें भारत को अद्वितीय पहचान प्रदान करती हैं। यदि जल संकट और पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान किया जाए, तो यह क्षेत्र भारत के टिकाऊ विकास में अहम भूमिका निभाता रहेगा।
 
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