भारतीय संविधान संशोधन

भारतीय संविधान के संशोधन

भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता इसका लचीला और कठोर स्वरूप है। संविधान समय की आवश्यकताओं के अनुसार बदलने की क्षमता रखता है, और इसी कारण यह आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 1950 में था। संविधान में परिवर्तन या सुधार की इस प्रक्रिया को ही संविधान संशोधन (Constitutional Amendment) कहा जाता है।


संविधान संशोधन की आवश्यकता

  • समाज और राजनीति में लगातार हो रहे परिवर्तन।
  • बदलते आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य।
  • न्यायपालिका के निर्णयों के अनुरूप सुधार।
  • नई चुनौतियों और परिस्थितियों से निपटने के लिए।
  • नागरिक अधिकारों का विस्तार और लोकतंत्र को सशक्त करना।


संविधान संशोधन की प्रक्रिया (अनुच्छेद 368)

भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया अनुच्छेद 368 में वर्णित है। यह प्रक्रिया तीन प्रकार की है:

1. साधारण बहुमत से संशोधन

  • कुछ प्रावधान संसद द्वारा साधारण बहुमत (Simple Majority) से संशोधित किए जा सकते हैं।
  • उदाहरण – नागरिकता, संसद की कार्यप्रणाली, राज्यसभा की सीटें आदि।

2. विशेष बहुमत से संशोधन

  • अधिकांश प्रावधानों में विशेष बहुमत (2/3 उपस्थित सदस्य और 50% कुल सदस्य) की आवश्यकता होती है।
  • उदाहरण – मौलिक अधिकार, नीति निर्देशक तत्व, राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया आदि।

3. विशेष बहुमत + राज्यों की स्वीकृति

  • कुछ प्रावधानों में संसद के साथ-साथ आधी राज्यों की विधानसभाओं की सहमति भी आवश्यक होती है।
  • उदाहरण – राष्ट्रपति का चुनाव, संघ और राज्य के बीच शक्तियों का विभाजन, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ।


महत्वपूर्ण संविधान संशोधन

पहला संशोधन अधिनियम, 1951

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर युक्तिसंगत प्रतिबंध।
  • भूमि सुधार कानूनों को न्यायिक समीक्षा से बाहर किया।

24वाँ संशोधन, 1971

  • संसद को संविधान संशोधन का असीमित अधिकार प्रदान किया।

42वाँ संशोधन, 1976 (मिनी संविधान)

  • संविधान में व्यापक परिवर्तन।
  • प्रस्तावना में "समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता" शब्द जोड़े गए।
  • नीति निर्देशक तत्वों को मौलिक अधिकारों से ऊपर स्थान दिया।

44वाँ संशोधन, 1978

  • आपातकालीन प्रावधानों में सुधार।
  • मौलिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की गई।

73वाँ संशोधन, 1992

  • पंचायतों को संवैधानिक दर्जा।
  • ग्रामीण स्वशासन को मजबूत किया।

74वाँ संशोधन, 1992

  • नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा।
  • शहरी स्वशासन को प्रोत्साहन।

86वाँ संशोधन, 2002

  • शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21A) जोड़ा गया।
  • 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए शिक्षा अनिवार्य की गई।

101वाँ संशोधन, 2016

  • वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू किया गया।
  • एकीकृत कर प्रणाली की शुरुआत।


आखिरी 10 महत्वपूर्ण संशोधन 

106वां संशोधन (2023)

  • नाम: महिला आरक्षण अधिनियम (Women's Reservation Bill, 2023)
  • मुख्य प्रावधान: लोकसभा, राज्य विधानसभाओं (और दिल्ली विधानसभा) में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण सुनिश्चित करता है।
  • प्रभाव: संवैधानिक रूप से महिलाओं की भागीदारी में सुधार लाने का ऐतिहासिक कदम।

105वां संशोधन (2021)

  • प्रावधान: राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBCs) को पहचानने का अधिकार लौटा दिया गया।
  • प्रविष्टियां: अनुच्छेद 338B और 342A के संशोधन।

104वां संशोधन (2020)

  • बदलाव: अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि को 2030 तक बढ़ाया; एंगलो-इंडियन निर्दिष्ट सीटें समाप्त की गईं।

103वां संशोधन (2019)

  • नई सुविधा: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए सरकारी नौकरियों व शिक्षण संस्थानों में अतिरिक्त 10% आरक्षण।

102वां संशोधन (2018)

  • संविधानिक दर्जा: राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।

101वां संशोधन (2016)

  • महत्वपूर्ण सुधार: वस्तु एवं सेवा कर (GST) की स्थापना; GST काउंसिल का निर्माण और नया कर ढांचा स्थापित किया गया।

100वां संशोधन (2015)

  • विशेष निर्णय: भारत-बांग्लादेश सीमा समझौते को संवैधानिक मान्यता।

99वां संशोधन (2014)

  • अभिनव प्रावधान: राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) का गठन, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया।

98वां संशोधन (2013)

  • क्षेत्रीय विकास: कर्नाटक के हैदराबाद-करणाटक क्षेत्र के लिए विशेष विकास प्रावधान अनुमति; एजेंसी क्षेत्रों में सुधार।

97वां संशोधन (2012)

  • कॉपरेटिव सुधार: अनुच्छेद 19(1)(c) में "co-operative societies" जोड़े गए; और अनुच्छेद 43B व पार्ट IXB (संघीय भाग) को जोड़ा गया।

संक्षेप सारणी: हाल के 10 संशोधन

संशोधन क्रमांक वर्ष मुख्य उद्देश्य / प्रभाव
106 2023 महिलाओं के लिए 33% आरक्षण
105 2021 स्टेट्स को SEBC पहचानने का अधिकार
104 2020 SC/ST आरक्षण बढ़ाया; एंगलो-इंडियन सीटें हटाईं
103 2019 EWS के लिए 10% आरक्षण
102 2018 NCBC को संवैधानिक दर्जा
101 2016 GST की स्थापना
100 2015 भारत-बांग्लादेश सीमा समझौते का संवैधानिक संस्करण
99 2014 NJAC का गठन (पर बाद में निरस्त)
98 2013 हैदराबाद-करणाटक क्षेत्र का विकास
97 2012 सहकारी समितियाँ को संवैधानिक दर्जा

संविधान संशोधन और न्यायपालिका

भारतीय न्यायपालिका ने संविधान संशोधनों पर कई ऐतिहासिक फैसले दिए:

  • केशवानंद भारती केस (1973) – संसद संविधान संशोधित कर सकती है, लेकिन मूल संरचना (Basic Structure) को नहीं बदल सकती।
  • इंदिरा गांधी केस (1975) – लोकतंत्र और न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान की मूल संरचना है।


संविधान संशोधन की चुनौतियाँ

  • बार-बार संशोधन से संविधान की स्थिरता प्रभावित होती है।
  • राजनीतिक दल अपने हित में संशोधन करते हैं।
  • राज्यों और केंद्र के बीच सहमति की कठिनाई।
  • मूल संरचना के सिद्धांत का पालन करना अनिवार्य।


निष्कर्ष

भारतीय संविधान संशोधन एक ऐसा साधन है, जो संविधान को जीवंत और प्रासंगिक बनाए रखता है। यह लोकतंत्र की आत्मा को सुरक्षित रखते हुए समाज की बदलती जरूरतों को पूरा करता है। संविधान संशोधन की प्रक्रिया ने भारत को एक मजबूत और सशक्त राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।



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