भारतीय प्रेस का विकास

 भारतीय प्रेस का विकास(Indian Press History)

एक विस्तृत अध्ययन

भारत में प्रेस केवल समाचार प्रसार का माध्यम नहीं रहा, बल्कि यह सामाजिक सुधार, स्वतंत्रता संग्राम और लोकतंत्र की मजबूती का शक्तिशाली हथियार भी रहा है। भारतीय प्रेस ने समय-समय पर जनता की आवाज़ उठाई, सरकार को चुनौती दी और समाज को नई दिशा दी। आइए विस्तार से जानते हैं भारतीय प्रेस के इतिहास, विकास, संघर्ष और वर्तमान स्वरूप के बारे में।


प्राचीन भारत में सूचना संचार

  • वैदिक और मौर्य काल में समाचारों का आदान-प्रदान दूतों और शाही घोषणाओं से होता था।
  • शिलालेख, ताम्रपत्र और पांडुलिपियाँ सूचना का साधन थीं।
  • हालांकि आधुनिक प्रेस की अवधारणा भारत में यूरोपियनों के आगमन के बाद ही शुरू हुई।


भारत में प्रेस की शुरुआत

हिक्की गजट (1780)

  • भारत का पहला समाचार पत्र हिक्की गजट (Calcutta General Advertiser) था।
  • इसे जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने 29 जनवरी 1780 को कलकत्ता से निकाला।
  • इसमें ब्रिटिश अधिकारियों की आलोचना भी होती थी, जिसके चलते हिक्की को जेल जाना पड़ा।

अन्य प्रारंभिक समाचार पत्र

  • India Gazette (1780)
  • Calcutta Gazette (1784)
  • Madras Courier (1785)
  • Bombay Herald (1789)


भारतीय भाषाओं में प्रेस का उदय

  • राजा राममोहन राय ने संवाद कौमुदी (बंगाली) और Mirat-ul-Akbar (फारसी) शुरू किए।
  • 1826 में पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने पहला हिंदी समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड प्रकाशित किया।
  • मराठी, गुजराती, तमिल और उर्दू भाषाओं में भी समाचार पत्र शुरू हुए।
  • इन पत्रों ने सामाजिक सुधार, शिक्षा और जागृति में अहम भूमिका निभाई।


स्वतंत्रता संग्राम और प्रेस

भारतीय प्रेस ने स्वतंत्रता आंदोलन को नई ऊर्जा दी।

  • 1857 के विद्रोह में प्रेस ने जनता को संगठित किया।
  • अमृत बाजार पत्रिका, केसरी, मराठा, हिंदू जैसे समाचार पत्र ब्रिटिश नीतियों का विरोध करते थे।
  • बाल गंगाधर तिलक ने केसरी और मराठा के जरिए “स्वराज्य” का नारा बुलंद किया।
  • महात्मा गांधी ने यंग इंडिया, नवजीवन और हरिजन से स्वतंत्रता और सामाजिक सुधारों के संदेश दिए।


प्रेस पर दमनकारी कानून

ब्रिटिश सरकार ने प्रेस को नियंत्रित करने के लिए कई कानून बनाए:

  • 1799 – लॉर्ड वेलेस्ली का प्रेस नियम (पूर्व अनुमति आवश्यक)।
  • 1823 – एडम्स का लाइसेंसिंग रेगुलेशन
  • 1835 – मेटकाफ का अधिनियम, जिसे "भारतीय प्रेस का मैग्ना कार्टा" कहा गया।
  • 1878 – वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट (भारतीय भाषाओं के प्रेस को दबाने हेतु)।
  • 1910 – इंडियन प्रेस एक्ट (राष्ट्रीयता से जुड़ी खबरों पर रोक)।

इन कानूनों ने प्रेस को दबाने की कोशिश की, लेकिन भारतीय पत्रकारों ने संघर्ष जारी रखा।


स्वतंत्रता के बाद भारतीय प्रेस

  • 1947 के बाद प्रेस को पूर्ण स्वतंत्रता मिली।
  • संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित हुई।
  • हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के समाचार पत्र तेजी से लोकप्रिय हुए।
  • दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, अमर उजाला, हिन्दुस्तान जैसे अखबार ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों तक पहुँचे।
  • अंग्रेजी में The Hindu, Times of India, Indian Express प्रमुख बने।


आपातकाल और प्रेस (1975–77)

  • आपातकाल भारतीय प्रेस का सबसे कठिन दौर था।
  • सरकार ने सेंसरशिप लगाई और समाचार पत्रों की स्वतंत्रता सीमित कर दी।
  • इस अवधि के बाद प्रेस और भी अधिक जागरूक और सशक्त हुआ।


आधुनिक युग में भारतीय प्रेस

प्रिंट मीडिया

  • हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के अखबारों का भारी प्रसार।
  • शिक्षा और साक्षरता दर बढ़ने से समाचार पत्रों की माँग बढ़ी।

इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया

  • 1990 के बाद टीवी न्यूज़ चैनल्स जैसे आज तक, NDTV, ज़ी न्यूज़, इंडिया टीवी आदि का प्रसार हुआ।
  • 2000 के बाद डिजिटल न्यूज़ पोर्टल्स, ई-पेपर और सोशल मीडिया ने पत्रकारिता की परिभाषा बदल दी।
  • आज समाचार सिर्फ अखबार तक सीमित नहीं, बल्कि मोबाइल और इंटरनेट पर तुरंत उपलब्ध हैं।


भारतीय प्रेस की विशेषताएँ

  • बहुभाषी स्वरूप – हिंदी, अंग्रेजी और 20 से अधिक भारतीय भाषाओं में प्रकाशन।
  • जनजागरण की भूमिका – सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर जनमत निर्माण।
  • लोकतंत्र का प्रहरी – सरकार की नीतियों की आलोचना और जनता के अधिकारों की रक्षा।
  • सांस्कृतिक एकता – क्षेत्रीय विविधताओं को जोड़ना।


भारतीय प्रेस की चुनौतियाँ

  • फेक न्यूज और पीत पत्रकारिता
  • राजनीतिक और कॉर्पोरेट दबाव
  • स्वतंत्रता बनाम जिम्मेदारी का संतुलन।
  • डिजिटल मीडिया में विश्वसनीयता का संकट।


निष्कर्ष

भारतीय प्रेस का विकास एक लंबी यात्रा है – हिक्की गजट से लेकर आज के डिजिटल न्यूज़ पोर्टल्स तक। इसने न केवल समाचार दिए, बल्कि समाज को दिशा भी दी। स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आज तक प्रेस ने भारत के लोकतंत्र को मजबूत बनाया है।

आज आवश्यकता है कि प्रेस अपनी निष्पक्षता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता बनाए रखे, ताकि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी लोकतंत्र का सशक्त स्तंभ बना रहे।



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