ब्रिटिश शासित भारत में औद्योगिकीकरण और वाणिज्य
परिवर्तन, शोषण और आधुनिकता की ओर कदम
परिचय: ब्रिटिश शासन और आर्थिक बदलाव
ब्रिटिश शासित भारत (1757–1947) में औद्योगिकीकरण और वाणिज्य का स्वरूप पूरी तरह बदल गया। ब्रिटिश नीतियों ने भारत की पारंपरिक कुटीर उद्योग व्यवस्था को प्रभावित किया, लेकिन साथ ही आधुनिक उद्योग, परिवहन और व्यापारिक संरचना का विकास भी हुआ। यह काल आर्थिक शोषण और आधुनिकता के द्वंद्व का प्रतीक था।
औद्योगिकीकरण की पृष्ठभूमि
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बाद में ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य भारत को कच्चे माल का स्रोत और ब्रिटिश तैयार माल का बाजार बनाना था।
- पारंपरिक उद्योगों का पतन (विशेषकर हाथकरघा और कारीगरी)।
- ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति के चलते मशीन आधारित वस्त्रों का भारत में आगमन।
- भारत के संसाधनों का बड़े पैमाने पर निर्यात।
भारत में आधुनिक उद्योग का विकास
प्रमुख उद्योग
- कपड़ा उद्योग – मुंबई, अहमदाबाद और शोलापुर में आधुनिक मिलें।
- जूट उद्योग – कोलकाता (हुगली नदी किनारे) में ब्रिटिश पूँजी से स्थापित कारखाने।
- लोहे और इस्पात उद्योग – टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (1907, जमशेदपुर)।
- कोयला और खनन उद्योग – झारखंड, बंगाल और ओडिशा में कोयला खदानें।
- चाय और कॉफी बागान – असम, दार्जिलिंग और दक्षिण भारत में, जिनमें अधिकांश श्रमिक बंधुआ मज़दूर थे।
विशेषताएँ
- उद्योगों में ब्रिटिश पूँजी और प्रबंधन का वर्चस्व।
- भारतीय उद्यमियों की सीमित भूमिका, लेकिन धीरे-धीरे जमशेदजी टाटा, घनश्यामदास बिड़ला जैसे उद्योगपति उभरे।
- श्रमिक वर्ग का शोषण, कम वेतन और खराब कार्य परिस्थितियाँ।
परिवहन और संचार का विकास
- रेलवे – 1853 में पहली रेलगाड़ी (मुंबई से ठाणे)। 20वीं शताब्दी की शुरुआत तक रेलवे नेटवर्क पूरे भारत में फैल गया।
- सड़क और पुल – व्यापारिक मार्गों के लिए नई सड़कें और पुल बनाए गए।
- बंदरगाह – मुंबई, कोलकाता, मद्रास प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक केंद्र बने।
- टेलीग्राफ और डाक सेवा – संचार में क्रांति, प्रशासन और वाणिज्य दोनों में सहायक।
ब्रिटिश वाणिज्य नीति
- कच्चे माल का निर्यात – कपास, जूट, नील, चाय, मसाले, कोयला।
- तैयार माल का आयात – ब्रिटिश कपड़ा, मशीनरी, विलासिता की वस्तुएँ।
- एकतरफा व्यापार संतुलन – भारत से निर्यातित वस्तुओं का लाभ ब्रिटेन को जाता था।
- लैसेज़-फेयर नीति – मुक्त व्यापार के नाम पर भारतीय उद्योगों की प्रतिस्पर्धा क्षमता कमजोर करना।
कृषि पर प्रभाव
- नकदी फसलों (नील, कपास, जूट) की खेती को बढ़ावा, जिससे खाद्यान्न उत्पादन घटा।
- किसानों पर कर्ज का बोझ, भू-राजस्व की कठोर वसूली।
- अकाल और खाद्यान्न संकट की घटनाओं में वृद्धि।
श्रमिक और सामाजिक परिवर्तन
- औद्योगिक श्रमिक वर्ग का उदय, खासकर शहरों में।
- श्रमिक आंदोलनों की शुरुआत – 1918 में अहमदाबाद मिल हड़ताल, जिसमें महात्मा गांधी ने मध्यस्थता की।
- मजदूरी, कार्य समय और कार्यस्थल सुधार की मांग।
भारतीय उद्योगपतियों और व्यापारियों की भूमिका
- प्रारंभ में ब्रिटिश वर्चस्व के कारण सीमित अवसर, लेकिन 20वीं सदी में भारतीय उद्यमियों ने निवेश बढ़ाया।
- स्वदेशी आंदोलन (1905) ने भारतीय उद्योगों को प्रोत्साहन दिया।
- राष्ट्रीय आंदोलन ने आर्थिक आत्मनिर्भरता के विचार को लोकप्रिय किया।
निष्कर्ष
ब्रिटिश शासन में भारत का औद्योगिकीकरण एकतरफा आर्थिक लाभ के लिए किया गया, जिससे ब्रिटेन को तो फायदा हुआ लेकिन भारतीय पारंपरिक उद्योगों को भारी क्षति पहुँची। इसके बावजूद रेलवे, संचार, आधुनिक उद्योग और संगठित व्यापार संरचना की नींव इसी काल में पड़ी, जिसने स्वतंत्र भारत की औद्योगिक प्रगति के लिए आधार तैयार किया।
 
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