केन्द्र राज्य संबंध(Center State Relation)
केन्द्र राजेय संबंधो का भारतीय राज्य व्यवस्था में विशेष स्थान है। इसका वर्ण भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में समझाया गया है जो निम्न प्रकार हैं।
केंद्र-राज्य संबंध: संवैधानिक दृष्टिकोण
भारतीय संविधान ने भारत को संघीय ढाँचे में व्यवस्थित किया है, जहाँ केंद्र और राज्य दोनों के अधिकार और कर्तव्य स्पष्ट रूप से विभाजित हैं। संविधान के दृष्टिकोण से केंद्र-राज्य संबंध को समझना आवश्यक है क्योंकि यह देश की राजनीतिक स्थिरता, प्रशासनिक समन्वय और विकास का आधार है।
1. संविधान में केंद्र-राज्य संबंध की नींव
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 245 से 263 तक केंद्र और राज्यों के संबंध से संबंधित प्रावधान हैं।
1.1 अनुच्छेद 245 – कानून बनाने का अधिकार
- केंद्र और राज्य के बीच कानून बनाने का अधिकार सूचीबद्ध है।
- केंद्र को संपूर्ण देश में कानून बनाने का अधिकार है जबकि राज्यों को केवल अपने क्षेत्र में।
1.2 अनुच्छेद 246 – विषयों का विभाजन
संविधान ने तीन सूची प्रणाली लागू की है:
- संघ सूची (Union List): केवल केंद्र सरकार के अधिकार में
- राज्य सूची (State List): केवल राज्य सरकार के अधिकार में
- समवर्ती सूची (Concurrent List): दोनों सरकारों के लिए अधिकार
नोट: यदि केंद्र और राज्य के कानून में टकराव हो, तो केंद्र का कानून प्राथमिकता प्राप्त करता है।
1.3 अनुच्छेद 247 – विशेष कानून बनाने का अधिकार
केंद्र को कुछ मामलों में राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बनाने की शक्ति दी गई है, यदि आवश्यक हो।
2. वित्तीय संबंध – संवैधानिक आधार
संविधान ने केंद्र और राज्यों के वित्तीय संबंध को अनुच्छेद 268 से 293 में निर्धारित किया है।
- कराधान अधिकार: केंद्र और राज्य दोनों को कर लगाने का अधिकार, सूची अनुसार विभाजित।
- राजस्व साझा करना: केंद्र राज्यों को कर और वित्तीय सहायता का वितरण करता है।
- केंद्र प्रायोजित योजनाएँ: संविधान के अनुसार राज्य की सहमति से लागू की जाती हैं।
3. प्रशासनिक नियंत्रण – संवैधानिक प्रावधान
3.1 अनुच्छेद 256 और 257
- केंद्र राज्यों की कानूनी और प्रशासनिक कार्यप्रणाली का समन्वय सुनिश्चित कर सकता है।
- राज्य सरकारें केंद्र के दिशा-निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।
3.2 अनुच्छेद 356 – राष्ट्रपति शासन
- यदि कोई राज्य संविधान का पालन नहीं करता या कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ती है, तो केंद्र राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है।
- यह संवैधानिक रूप से राज्यों पर केंद्र का नियंत्रण सुनिश्चित करता है।
4. न्यायिक समाधान – संवैधानिक प्रावधान
संविधान के अनुच्छेद 131-136 और संबंधित प्रावधानों के माध्यम से केंद्र और राज्य के बीच विवाद का समाधान न्यायपालिका द्वारा किया जाता है।
- सुप्रीम कोर्ट केंद्र और राज्यों के विवादों का अंतिम निर्णय देती है।
- यह संवैधानिक दृष्टिकोण से संघीय संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
5. समवर्ती सूची और विवाद समाधान
- समवर्ती सूची के मुद्दों पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं।
- यदि दोनों कानूनों में अंतर हो, केंद्र का कानून प्राथमिकता पाता है।
- यह प्रावधान संविधान में संघीय ढाँचे और केंद्रीय नियंत्रण के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
संविधान की दृष्टि से केंद्र-राज्य संबंध भारतीय लोकतंत्र की सुदृढ़ नींव हैं।
- यह सशक्त संघीय ढाँचा, वित्तीय संतुलन और प्रशासनिक समन्वय सुनिश्चित करता है।
- संविधान ने केंद्र और राज्यों के अधिकारों और नियंत्रण के स्पष्ट प्रावधान दिए हैं, जिससे राजनीतिक स्थिरता और विकास संभव हो सके।
संविधान के अनुसार, केंद्र-राज्य संबंध केवल प्रशासनिक और वित्तीय मुद्दों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह भारत के लोकतंत्र और संघीय ढाँचे की सुरक्षा का मूल आधार हैं।
 
.png) 
.png) 
0 टिप्पणियाँ