नागरिक चार्टर (Citizen’s Charter)
परिचय(Inroduciton)
भारतीय प्रशासनिक तंत्र में जनसंपर्क और सेवा वितरण की गुणवत्ता को सुधारने के लिए सरकार ने नागरिक चार्टर (Citizen’s Charter) की अवधारणा को अपनाया। यह जनता और सरकार के बीच एक सामाजिक अनुबंध (Social Contract) की तरह है, जिसमें यह स्पष्ट होता है कि नागरिकों को कौन-सी सेवाएँ मिलेंगी, कैसे मिलेंगी और कितने समय में मिलेंगी।
📜 पृष्ठभूमि
- नागरिक चार्टर की अवधारणा सबसे पहले ब्रिटेन (1991) में John Major Government के दौरान शुरू हुई।
- भारत में इसे 1997 में भारत सरकार ने अपनाया।
- भारत सरकार ने “नागरिक चार्टर कार्यान्वयन समिति” गठित की और विभिन्न मंत्रालयों/विभागों में इसे लागू किया।
⚖️ परिभाषा
नागरिक चार्टर एक दस्तावेज है, जिसमें किसी सरकारी विभाग या संस्था द्वारा नागरिकों को प्रदान की जाने वाली सेवाओं, उन सेवाओं की समयसीमा, गुणवत्ता और नागरिकों के अधिकार व दायित्वों का विवरण होता है।
🏛️ नागरिक चार्टर के प्रमुख घटक
- सेवाओं का विवरण – नागरिकों को कौन-सी सेवाएँ मिलेंगी।
- समयसीमा – सेवाओं की प्राप्ति के लिए निर्धारित समय।
- जवाबदेही – सेवा में देरी या कमी के लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी।
- शिकायत निवारण तंत्र – नागरिकों की शिकायतें सुनने और सुलझाने की व्यवस्था।
- नागरिकों के दायित्व – सेवा प्राप्त करने के लिए नागरिकों को आवश्यक नियमों का पालन करना।
📊 नागरिक चार्टर की विशेषताएँ
- यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होता, लेकिन प्रशासनिक उत्तरदायित्व सुनिश्चित करता है।
- यह पारदर्शिता और सुशासन (Good Governance) का महत्वपूर्ण अंग है।
- यह नागरिकों को सशक्त बनाता है, क्योंकि वे अपनी सेवाओं के बारे में प्रश्न पूछ सकते हैं।
✅ भारत में नागरिक चार्टर की स्थिति
अब तक केंद्र और राज्य सरकारों के 700 से अधिक विभागों ने अपना नागरिक चार्टर जारी किया है।केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) और प्रशासनिक सुधार विभाग (DARPG) इसकी निगरानी करते हैं।
विभिन्न राज्यों में इसे लोक सेवा गारंटी अधिनियम के रूप में लागू किया गया है।
- उदाहरण: मध्यप्रदेश लोक सेवा गारंटी अधिनियम, 2010,
- बिहार, राजस्थान और कर्नाटक में भी इसी तरह के कानून।
⚠️ नागरिक चार्टर से जुड़ी समस्याएँ
- कई विभागों के चार्टर सिर्फ औपचारिक दस्तावेज रह जाते हैं।
- जन-जागरूकता की कमी – अधिकांश नागरिक इससे अनजान।
- सेवाओं की निगरानी और मूल्यांकन प्रणाली कमजोर।
- अधिकारियों पर जवाबदेही लागू करने की कठिनाई।
- कई बार शिकायत निवारण प्रणाली अप्रभावी होती है।
🌍 सुधार के उपाय
- नागरिक चार्टर को कानूनी दर्जा देना चाहिए।
- चार्टर के निर्माण में जनसहभागिता और परामर्श।
- समय-समय पर समीक्षा और अपडेट।
- चार्टर से जुड़ी डिजिटल सेवाओं को बढ़ावा देना।
- शिकायत निवारण तंत्र को और तेज़ और पारदर्शी बनाना।
✨ निष्कर्ष
नागरिक चार्टर जनता और सरकार के बीच भरोसे की डोर है। यह जनता को अधिकार देता है और सरकार को जिम्मेदार बनाता है। अगर इसे सही तरीके से लागू किया जाए, तो यह भारत में सुशासन और जवाबदेही को मजबूत कर सकता है।
 
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