लोक सेवा की अवधारणा
(concept of public service)
समाज के प्रति सेवा की नैतिक प्रतिबद्धता
परिचय
लोक सेवा (Public Service) एक ऐसी अवधारणा है जो प्रशासन और शासन के बुनियादी ताने-बाने में नैतिकता, समर्पण और निष्कलंक सेवा के मूल्यों को स्थापित करती है। यह केवल सरकार द्वारा प्रदत्त सेवाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि एक व्यापक विचारधारा है जिसमें नागरिकों की भलाई और उनके अधिकारों की रक्षा सर्वोपरि होती है। लोक सेवक न केवल सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयनकर्ता होते हैं, बल्कि वे राष्ट्र निर्माण में नैतिक नेतृत्व के वाहक भी होते हैं।
लोक सेवा की परिभाषा
लोक सेवा का तात्पर्य उन कार्यों और नीतियों से है, जो सार्वजनिक हित, समानता, न्याय और लोक कल्याण की भावना के साथ निष्पादित किए जाते हैं। यह अवधारणा संविधान में निहित जनसेवा, उत्तरदायित्व और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों से जुड़ी हुई है।
लोक सेवा के उद्देश्य
- जनकल्याण को प्राथमिकता देना
- लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को सशक्त बनाना
- समाज में न्याय, समानता और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना
- वंचित वर्गों और जरूरतमंदों के प्रति संवेदनशीलता का प्रदर्शन करना
- नीतिगत निर्णयों में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना
लोक सेवा के प्रमुख आयाम
1. प्रशासनिक उत्तरदायित्व
लोक सेवा में कार्यरत अधिकारी और कर्मचारी समाज के प्रति जवाबदेह होते हैं। वे नीति निर्माण और उसके निष्पादन के माध्यम से नागरिकों के अधिकारों और आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
2. नैतिकता और सेवा भावना
लोक सेवक से अपेक्षा की जाती है कि वह निजी हित से ऊपर उठकर सार्वजनिक हित में निष्पक्ष, वस्तुनिष्ठ और पारदर्शी निर्णय ले।
3. सामाजिक न्याय और समानता
लोक सेवा का एक महत्वपूर्ण आयाम है — समाज के प्रत्येक वर्ग तक सरकारी योजनाओं और सेवाओं की निष्पक्ष पहुँच सुनिश्चित करना।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में लोक सेवा
भारतीय संविधान में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को अपनाया गया है, जिसके अंतर्गत सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों को शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, न्याय, और रोजगार जैसी बुनियादी सेवाएं उपलब्ध कराए। इस उद्देश्य की पूर्ति में लोक सेवाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
लोक सेवा आयोग की भूमिका
- योग्य और ईमानदार अधिकारियों की भर्ती
- सेवाओं में निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना
- सेवा नियमों का पालन कराना
लोक सेवा और नैतिक मूल्य
लोक सेवा की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें कार्यरत व्यक्ति कितनी सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता, सहिष्णुता और करुणा के साथ काम करता है। एक आदर्श लोक सेवक निम्नलिखित गुणों को धारण करता है:
- नैतिक दृष्टिकोण
- जन-संवेदनशीलता
- कर्तव्यनिष्ठा
- सार्वजनिक संसाधनों के प्रति उत्तरदायित्व
- विकासोन्मुखी सोच
लोक सेवा की चुनौतियाँ
चुनौती | विवरण |
---|---|
भ्रष्टाचार | सार्वजनिक संसाधनों का दुरुपयोग |
राजनीतिक हस्तक्षेप | स्वतंत्र निर्णयों में बाधा |
जनसंख्या दबाव | संसाधनों की सीमितता और मांग की अधिकता |
प्रशिक्षण की कमी | नवाचार, तकनीक और नैतिक शिक्षा में पिछड़ापन |
सुधार की दिशा में प्रयास
1. नैतिक नेतृत्व का विकास
प्रशासनिक अधिकारियों को सत्यनिष्ठा और लोक हित को सर्वोपरि रखने के लिए प्रशिक्षित करना।
2. पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के उपकरण
- सूचना का अधिकार (RTI)
- सामाजिक लेखा परीक्षा (Social Audit)
- लोकपाल और लोकायुक्त संस्थाएं
3. नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहन
जनता को नीति निर्माण में शामिल करने से उत्तरदायित्व और विश्वसनीयता बढ़ती है।
लोक सेवा और सुशासन
सुशासन (Good Governance) की अवधारणा तभी साकार होती है जब लोक सेवाएं पारदर्शी, उत्तरदायी, जनकेंद्रित और परिणामोन्मुखी हों। इसमें तकनीकी दक्षता के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का समावेश अनिवार्य है।
निष्कर्ष
लोक सेवा की अवधारणा केवल सरकारी कार्यों तक सीमित न होकर एक नैतिक और दार्शनिक दृष्टिकोण है, जिसमें सेवा का भाव, जनसरोकार की समझ और राष्ट्रहित का समर्पण निहित होता है। एक सशक्त, नैतिक और संवेदनशील लोक सेवा प्रणाली ही भारत को सामाजिक न्याय, समानता और सतत विकास की ओर अग्रसर कर सकती है।
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