समवर्ती सूची (Concurrent List)

“समवर्ती सूची (Concurrent List)” 


समवर्ती सूची (Concurrent List)

भारतीय संविधान में शक्तियों का विभाजन केंद्र और राज्यों के बीच स्पष्ट रूप से किया गया है। यह विभाजन अनुच्छेद 246 और सातवीं अनुसूची (Seventh Schedule) के अंतर्गत होता है। इस अनुसूची में तीन सूचियाँ बनाई गई हैं:

  1. केंद्र सूची (Union List)
  2. राज्य सूची (State List)
  3. समवर्ती सूची (Concurrent List)

इनमें से समवर्ती सूची विशेष महत्व रखती है क्योंकि इसमें ऐसे विषय शामिल हैं जिन पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं


समवर्ती सूची की परिभाषा

समवर्ती सूची का अर्थ है – ऐसी सूची जिसमें दिए गए विषयों पर केंद्र और राज्य दोनों को कानून बनाने का अधिकार हो। यदि दोनों द्वारा बनाए गए कानूनों में टकराव होता है तो केंद्र का कानून प्राथमिकता प्राप्त करता है


समवर्ती सूची की विशेषताएँ

1. साझा अधिकार

इस सूची के विषयों पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं।

2. प्राथमिकता का सिद्धांत

यदि किसी विषय पर केंद्र और राज्य दोनों ने कानून बनाया है और उनमें विरोधाभास है, तो केंद्र का कानून लागू होगा।

3. राष्ट्रीय और स्थानीय महत्व

इस सूची के विषय ऐसे होते हैं जिनका महत्व राष्ट्रीय स्तर और राज्य स्तर दोनों पर होता है।

4. संख्या

मूल संविधान (1950) में समवर्ती सूची में 47 विषय थे, जो वर्तमान में बढ़कर 52 विषय हो गए हैं।


समवर्ती सूची में प्रमुख विषय

समवर्ती सूची में ऐसे विषय शामिल हैं जिनकी नीतियाँ पूरे देश में समान होनी चाहिए, लेकिन राज्यों की परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है। कुछ प्रमुख विषय इस प्रकार हैं:

1. शिक्षा और संस्कृति

  • शिक्षा व्यवस्था
  • तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा
  • विश्वविद्यालय
  • पुरातत्व और प्राचीन स्मारक

2. विवाह और तलाक

  • विवाह, तलाक और दहेज
  • उत्तराधिकार और उत्तरजीविता से जुड़े कानून
  • अल्पवयस्कों से संबंधित कानून

3. श्रम और उद्योग

  • श्रमिक संघ और ट्रेड यूनियन
  • श्रम कल्याण और मजदूर अधिकार
  • औद्योगिक विवाद

4. अपराध और दंड विधान

  • आपराधिक कानून
  • दंड प्रक्रिया संहिता
  • सबूत से जुड़े नियम
  • जेल सुधार

5. सामाजिक और आर्थिक विषय

  • जनकल्याणकारी योजनाएँ
  • वन संरक्षण
  • पर्यावरण संरक्षण
  • परिवार नियोजन

समवर्ती सूची का महत्व

1. कानून में एकरूपता

केंद्र द्वारा बनाए गए कानून पूरे देश में लागू होने से कानून में एकरूपता आती है।

2. लचीलापन

राज्य भी अपनी परिस्थितियों के अनुसार कानून बना सकते हैं, जिससे स्थानीय आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाता है।

3. सहकारी संघवाद

समवर्ती सूची भारत की सहकारी संघीय प्रणाली का प्रतीक है, जहाँ केंद्र और राज्य दोनों मिलकर शासन करते हैं।

4. न्याय और समानता

समवर्ती सूची के माध्यम से सामाजिक मुद्दों पर समान कानून बनाकर समानता और न्याय सुनिश्चित किया जाता है।


समवर्ती सूची पर केंद्र का प्रभाव

यद्यपि केंद्र और राज्य दोनों को समवर्ती सूची पर अधिकार है, लेकिन कुछ स्थितियों में केंद्र का कानून सर्वोपरि होता है:

विरोधाभास की स्थिति में

यदि केंद्र और राज्य के कानूनों में विरोध हो तो केंद्र का कानून लागू होगा।

राष्ट्रीय हित में कानून निर्माण (अनुच्छेद 249)

राज्यसभा द्वारा विशेष प्रस्ताव पारित होने पर संसद राज्य सूची या समवर्ती सूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है।

अंतरराष्ट्रीय संधि का पालन (अनुच्छेद 253)

संसद को अंतरराष्ट्रीय संधियों और समझौतों के अनुपालन हेतु कानून बनाने का अधिकार है, भले ही विषय समवर्ती सूची में आता हो।


समवर्ती सूची से जुड़ी चुनौतियाँ

राज्यों की स्वायत्तता पर असर

केंद्र के प्राथमिक अधिकार के कारण राज्यों की स्वायत्तता सीमित हो जाती है।

राजनीतिक मतभेद

अलग-अलग दलों की सरकार होने पर कई बार कानूनों के क्रियान्वयन में विवाद उत्पन्न होता है।

व्यावहारिक कठिनाइयाँ

समान कानून लागू करने में राज्यों की भौगोलिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विविधताओं से कठिनाई होती है।


निष्कर्ष

समवर्ती सूची (Concurrent List) भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। यह सूची भारत के संघीय ढांचे में सहयोगात्मक और लचीलेपन का उदाहरण प्रस्तुत करती है। इससे केंद्र और राज्यों दोनों को कानून बनाने का अधिकार मिलता है, साथ ही पूरे देश में समानता और एकरूपता भी सुनिश्चित होती है।

समवर्ती सूची भारत के सहकारी संघवाद की रीढ़ है, जो स्थानीय आवश्यकताओं और राष्ट्रीय हित दोनों का संतुलन बनाए रखती है।



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