वस्तुनिष्ठता एवं सार्वजनिक सेवा के प्रति समर्पण

वस्तुनिष्ठता एवं सार्वजनिक सेवा के प्रति समर्पण (Dedication to objectivity and public service)

लोक प्रशासन का नैतिक अधिष्ठान

परिचय

वस्तुनिष्ठता (Objectivity) तथा सार्वजनिक सेवा के प्रति समर्पण (Dedication to Public Service), सिविल सेवकों के दो अत्यंत महत्वपूर्ण नैतिक स्तंभ हैं। यह मूल्य सुनिश्चित करते हैं कि लोक सेवक किसी भी निर्णय को निजी हित, पूर्वाग्रह या भावनात्मक पक्षपात से मुक्त होकर लें और जनहित को सर्वोपरि रखें। एक नैतिक और निष्पक्ष प्रशासनिक व्यवस्था के लिए इन मूल्यों का आचरण अनिवार्य है।


1. वस्तुनिष्ठता का अर्थ और महत्व

वस्तुनिष्ठता क्या है?

वस्तुनिष्ठता का तात्पर्य है – तथ्यों, प्रमाणों और निष्पक्ष सोच के आधार पर निर्णय लेना, न कि भावनाओं, पसंद-नापसंद या निजी झुकाव के आधार पर।

प्रशासन में इसका महत्व

  • निष्पक्ष नीतिगत निर्णय
  • प्रभावी समस्या समाधान
  • पूर्वाग्रह रहित न्याय प्रणाली
  • जन विश्वास की प्राप्ति

उदाहरण

किसी अधिकारी को पदोन्नति में केवल योग्यता, प्रदर्शन और अनुभव को ही आधार बनाना चाहिए, न कि जाति, लिंग, या निजी संबंधों को।


2. सार्वजनिक सेवा के प्रति समर्पण का आशय

समर्पण का स्वरूप

इस गुण का अभिप्राय है कि एक लोक सेवक जनता की सेवा को अपना कर्तव्य और उत्तरदायित्व माने, तथा निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर राष्ट्रहित एवं जनकल्याण को प्राथमिकता दे।

मुख्य विशेषताएँ

  • कर्मठता और निष्ठा
  • जनहित में त्वरित निर्णय
  • उच्च मानवीय संवेदनशीलता
  • संकट में नेतृत्व और सक्रियता

प्रेरणादायी उदाहरण

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने राष्ट्रपति होते हुए भी जनसेवा को सर्वोपरि रखा। उनका जीवन, कार्यशैली और सादगी इस मूल्य का जीवंत उदाहरण हैं।


3. वस्तुनिष्ठता और समर्पण के बीच संतुलन

एक सिविल सेवक को अपने आचरण में यह सुनिश्चित करना होता है कि वह जनसेवा की भावना से कार्य करे, किंतु निर्णय लेते समय तथ्यात्मक सोच और नियमों से समझौता न करे। यह संतुलन ही एक सशक्त और नैतिक प्रशासनिक व्यक्तित्व को परिभाषित करता है।


4. वस्तुनिष्ठता और समर्पण से जुड़ी चुनौतियाँ

  • राजनैतिक हस्तक्षेप
  • जातीय या धार्मिक दबाव
  • सामाजिक अपेक्षाओं का दबाव
  • भावनात्मक पक्षपात
  • निजी हितों का टकराव

इन सबके बावजूद एक लोक सेवक को अपने सिद्धांतों पर अटल और स्थिर रहना होता है।


5. वस्तुनिष्ठता को अपनाने की विधियाँ

  • तथ्य-आधारित निर्णय प्रणाली का पालन
  • नियमों और प्रक्रियाओं की स्पष्ट समझ
  • पूर्वाग्रहों की पहचान और निराकरण
  • नैतिक प्रशिक्षण एवं केस स्टडीज का अभ्यास


6. जनसेवा के समर्पण को सुदृढ़ करने के उपाय

  • नैतिकता आधारित प्रशासनिक प्रशिक्षण
  • जन संवाद और सहभागिता
  • मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता
  • प्रेरणादायी नेतृत्व का अनुसरण
  • सेवा कार्यों में स्वैच्छिक भागीदारी


7. सिविल सेवा आचरण संहिता में इन मूल्यों का स्थान

भारत सरकार की सेवा आचरण संहिता में यह स्पष्ट रूप से वर्णित है कि लोक सेवक को चाहिए कि वह:

  • निर्णयों में निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता अपनाए।
  • सार्वजनिक धन, संसाधन और पद का दुरुपयोग न करे।
  • हर वर्ग और समूह के प्रति समान उत्तरदायित्व दर्शाए।
  • सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता और जनसेवा को सर्वोपरि माने।


8. वस्तुनिष्ठता और जनसेवा : प्रशासन की रीढ़

जहां वस्तुनिष्ठता प्रशासन को सिस्टमेटिक और न्यायपूर्ण बनाती है, वहीं जनसेवा का समर्पण उसे मानवमूल्य आधारित और संवेदनशील बनाता है। दोनों मूल्य मिलकर ही एक जन-केन्द्रित, उत्तरदायी और नैतिक शासन प्रणाली की नींव रखते हैं।


निष्कर्ष

वस्तुनिष्ठता और सार्वजनिक सेवा के प्रति समर्पण, किसी भी सिविल सेवक के चरित्र और कर्तव्यनिष्ठा के आधारभूत गुण हैं। ये न केवल प्रशासनिक निर्णयों को पारदर्शी बनाते हैं, बल्कि समाज में विश्वास, न्याय और समानता की भावना को भी पोषित करते हैं। इन मूल्यों को जीवन में आत्मसात करना ही सच्चे लोक सेवक की पहचान है।

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