भारत में सूखा प्रभावित क्षेत्र

भारत में सूखा प्रभावित क्षेत्र 

कारण, प्रभाव और प्रबंधन

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ वर्षा पर निर्भरता अत्यधिक है। वर्षा का असमान वितरण, मानसून की असफलता और जल संसाधनों का दुरुपयोग अक्सर सूखे (Drought) की स्थिति उत्पन्न करता है। सूखा केवल पानी की कमी ही नहीं है, बल्कि यह कृषि, समाज और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डालता है।


भारत में सूखे के प्रमुख कारण

  1. मानसून की विफलता – भारत में वर्षा का 70% से अधिक हिस्सा मानसून से आता है।
  2. जलवायु परिवर्तन – तापमान वृद्धि और मौसमी असंतुलन।
  3. वनों की कटाई – वर्षा चक्र प्रभावित होता है।
  4. भूजल का अत्यधिक दोहन – सिंचाई और औद्योगिक उपयोग से जल स्तर गिरता है।
  5. नदियों और झीलों का सूखना – जल संचयन की कमी।
  6. मरुस्थलीकरण – राजस्थान और गुजरात जैसे क्षेत्रों में रेगिस्तान का विस्तार।


भारत में सूखा प्रभावित क्षेत्र

भारत का लगभग 16% भूभाग सूखा संभावित क्षेत्र है।

राज्य/क्षेत्र विशेषताएँ
राजस्थान (पश्चिमी) थार मरुस्थल, अत्यधिक शुष्क क्षेत्र
गुजरात कच्छ क्षेत्र, कम वर्षा
महाराष्ट्र मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्र
कर्नाटक उत्तरी कर्नाटक अर्ध-शुष्क क्षेत्र
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना वर्षा की कमी वाले जिले
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ अर्ध-शुष्क पठारी क्षेत्र
तमिलनाडु वर्षा का असमान वितरण, सूखा प्रवण जिला

भारत में प्रमुख सूखा घटनाएँ

वर्ष प्रभावित क्षेत्र मुख्य प्रभाव
1876-78 दक्षिण भारत लाखों लोगों की मृत्यु, कृषि संकट
1899 राजस्थान, गुजरात, मध्य भारत 10 लाख मौतें
1943 बंगाल अकाल, भुखमरी
1965-67 पूरे भारत में अनाज की भारी कमी
1972 महाराष्ट्र 20,000 गाँव प्रभावित
1987 उत्तर भारत 30 करोड़ लोग प्रभावित
2002 29 राज्य प्रभावित देश का 56% हिस्सा सूखा ग्रस्त
2016 महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना 33 करोड़ लोग प्रभावित

सूखे के प्रभाव

  • कृषि पर प्रभाव – फसलें नष्ट, उत्पादन में भारी गिरावट।
  • पेयजल संकट – गाँव और शहरों में जल की कमी।
  • पशुपालन पर असर – पशुओं के लिए चारे और पानी की कमी।
  • आर्थिक नुकसान – ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव।
  • स्वास्थ्य समस्याएँ – कुपोषण और जल-जनित बीमारियाँ।
  • पलायन – ग्रामीण जनसंख्या का शहरों की ओर रुख।


भारत में सूखा प्रबंधन और रोकथाम

  1. वर्षा जल संचयन – तालाब, कुएँ और टैंक का पुनर्जीवन।
  2. भूजल प्रबंधन – अत्यधिक दोहन रोकना और पुनर्भरण।
  3. सूखा-रोधी फसलें – बाजरा, ज्वार जैसी फसलों का प्रोत्साहन।
  4. कृषि में आधुनिक तकनीक – ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई।
  5. वन संरक्षण और वृक्षारोपण – वर्षा चक्र संतुलित करना।
  6. सरकारी योजनाएँ – प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, मनरेगा आदि।
  7. जलवायु अनुकूलन नीति – दीर्घकालिक योजनाएँ बनाना।


निष्कर्ष

सूखा भारत की सबसे गंभीर प्राकृतिक आपदाओं में से एक है। यह केवल जल संकट ही नहीं पैदा करता बल्कि कृषि, ग्रामीण जीवन और अर्थव्यवस्था को भी बुरी तरह प्रभावित करता है। यदि हम जल संरक्षण, टिकाऊ कृषि पद्धतियों और जलवायु परिवर्तन के समाधान पर ध्यान दें तो सूखे के दुष्प्रभावों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।


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