सूखा(Drought)
कारण, प्रभाव और वैश्विक परिप्रेक्ष्य
सूखा (Drought) वह प्राकृतिक आपदा है जिसमें किसी क्षेत्र में लंबे समय तक वर्षा का अभाव होता है, जिससे पानी की कमी, कृषि हानि और सामाजिक-आर्थिक संकट उत्पन्न होता है।
सूखे के कारण
वर्षा में कमी
मानसून, मौसमी और वार्षिक वर्षा का असामान्य कम होना।जल संसाधनों का अत्यधिक उपयोग
कृषि, उद्योग और शहरी क्षेत्रों में पानी की अधिक खपत।जलवायु परिवर्तन
वैश्विक तापमान वृद्धि और असामान्य मौसमी पैटर्न।वनों की कटाई और भूमि क्षरण
जल संचयन की क्षमता कम होना।भू-जल स्तर में गिरावट
भूजल का अत्यधिक निष्कर्षण।सूखे के प्रभाव
भौगोलिक और पर्यावरणीय प्रभाव
- नदियों और जलाशयों का सूखना।
- जल स्रोतों की कमी और भूमि का उपजाऊपन घटना।
- जैव विविधता और वनस्पति पर नकारात्मक असर।
सामाजिक और मानव जीवन पर प्रभाव
- पानी की कमी, स्वास्थ्य और पोषण पर प्रतिकूल प्रभाव।
- ग्रामीण क्षेत्रों में आवास और जीवन शैली प्रभावित।
- जनसंख्या प्रवासन और सामाजिक तनाव।
आर्थिक प्रभाव
- कृषि और फसल नुकसान।
- पशुपालन और जल आधारित उद्योगों में गिरावट।
- सरकारी और निजी संसाधनों पर वित्तीय दबाव।
वैश्विक दृष्टिकोण
देश / क्षेत्र | प्रमुख सूखा प्रभावित क्षेत्र | विशेषताएँ |
---|---|---|
भारत | राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र | मानसून की असमानता, कृषि पर भारी प्रभाव |
अफ्रीका | सहारा और सब-सहारा क्षेत्र | वर्षा की कमी, जल संकट, खाद्य असुरक्षा |
अमेरिका | कैलिफोर्निया, टेक्सास | कृषि और जलाशयों पर दबाव, आग की घटनाएँ |
ऑस्ट्रेलिया | न्यू साउथ वेल्स, विक्टोरिया | उच्च तापमान, वर्षा असंतुलन |
चीन | उत्तर और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र | जल संकट, कृषि उत्पादन प्रभावित |
सूखे से सुरक्षा और तैयारी
- जल संरक्षण और संचयन – तालाब, जलाशय और वर्षाजल संचयन।
- सूखा प्रतिरोधी फसलें – कम पानी वाले और जल-संवेदनशील फसलें।
- सतत कृषि और भूमि प्रबंधन – जल संरक्षण तकनीक और मिट्टी संरक्षण।
- जन जागरूकता और नीति – जल उपयोग पर नियंत्रण, आपदा योजना।
निष्कर्ष
सूखा एक गंभीर प्राकृतिक आपदा है जो कृषि, जल संसाधन और मानव जीवन पर प्रभाव डालती है।
- प्रभाव को कम करने के लिए सतत जल प्रबंधन, जल संचयन और तकनीकी उपाय आवश्यक हैं।
- वैश्विक और स्थानीय स्तर पर नीति और तैयारी से सूखे के जोखिम को नियंत्रित किया जा सकता है।
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