भारत में भूकंप के कारण, प्रभाव और भूकंपीय क्षेत्र
भारत भौगोलिक दृष्टि से भूकंप-संवेदनशील देशों में से एक है। यहाँ की भूगर्भीय संरचना, हिमालय क्षेत्र की निरंतर गतिशीलता और प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonics) की क्रियाएँ इसे बार-बार भूकंप प्रभावित बनाती हैं। भारत के लगभग 59% भू-भाग भूकंप संभावित क्षेत्रों में आते हैं।
भारत में भूकंप के प्रमुख कारण
- हिमालय पर्वत निर्माण – भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के टकराव से लगातार भूगर्भीय दबाव।
- प्लेट विवर्तनिकी – प्लेटों की गति से ऊर्जा का संचय और अचानक मुक्त होना।
- ज्वालामुखीय गतिविधियाँ – विशेषकर अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में।
- मानव निर्मित कारण – बाँध, खनन, भूमिगत परमाणु परीक्षण।
भारत के प्रमुख भूकंप क्षेत्र (Seismic Zones of India)
भारत को भूकंप जोखिम के आधार पर चार भूकंपीय क्षेत्रों (Zone II, III, IV, V) में बाँटा गया है।
भूकंपीय क्षेत्र | जोखिम स्तर | मुख्य क्षेत्र |
---|---|---|
ज़ोन II | कम खतरा | दक्कन का पठार, छत्तीसगढ़ का कुछ हिस्सा |
ज़ोन III | मध्यम खतरा | केरल, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल का कुछ हिस्सा |
ज़ोन IV | उच्च खतरा | दिल्ली, जम्मू, बिहार, उत्तर प्रदेश का पूर्वी भाग |
ज़ोन V | अत्यधिक खतरा | पूरा हिमालय क्षेत्र, उत्तर-पूर्व भारत, कच्छ, अंडमान-निकोबार |
भारत में आए प्रमुख भूकंप
वर्ष | स्थान | रिक्टर स्केल तीव्रता | हानि |
---|---|---|---|
1819 | कच्छ (गुजरात) | 8.0 | हजारों की मौत, भूमि धंसाव |
1897 | असम-शिलांग | 8.7 | 1,500+ मौतें, व्यापक विनाश |
1905 | कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) | 7.8 | लगभग 20,000 मौतें |
1934 | बिहार-नेपाल | 8.4 | 10,000 मौतें |
1950 | असम (अरुणाचल-तिब्बत) | 8.6 | 1,500 मौतें |
1993 | लातूर (महाराष्ट्र) | 6.4 | 10,000 मौतें |
2001 | भुज (गुजरात) | 7.7 | 20,000 मौतें, 1.5 लाख घायल |
2004 | अंडमान-निकोबार (सुनामी के साथ) | 9.1 | 15,000+ मौतें |
2015 | नेपाल-उत्तर भारत | 7.8 | भारत में 8,000+ मौतें |
भूकंप के प्रभाव
- जीवन और संपत्ति की हानि – लाखों लोग प्रभावित।
- बुनियादी ढाँचे का विनाश – सड़क, पुल, इमारतें, संचार नेटवर्क ध्वस्त।
- सुनामी और भूस्खलन – तटीय और पर्वतीय क्षेत्रों में अतिरिक्त खतरा।
- सामाजिक और आर्थिक संकट – पलायन, बेरोजगारी और गरीबी में वृद्धि।
भारत में भूकंप से बचाव के उपाय
- भूकंपरोधी निर्माण तकनीक – भवन कोड का पालन।
- अर्ली वार्निंग सिस्टम – आधुनिक तकनीक का प्रयोग।
- आपदा प्रबंधन बल (NDRF) – त्वरित बचाव कार्य।
- जन-जागरूकता अभियान – स्कूलों और समाज में प्रशिक्षण।
- भूकंप प्रवण क्षेत्रों में नियोजन – संवेदनशील इलाकों में अनियंत्रित शहरीकरण रोकना।
निष्कर्ष
भारत का भूकंपीय परिदृश्य बेहद संवेदनशील है, विशेषकर हिमालय और उत्तर-पूर्वी राज्य भूकंप की दृष्टि से उच्च जोखिम वाले क्षेत्र हैं। यदि समय रहते भवन निर्माण नियम, जन-जागरूकता और वैज्ञानिक तकनीक को अपनाया जाए तो भूकंप से होने वाली हानियों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
👉
0 टिप्पणियाँ