ब्रिटिश शासन(Economy Under British)

ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का संकट

भारत के इतिहास में ब्रिटिश शासन का समय एक ऐसे दौर के रूप में जाना जाता है जब देश की अर्थव्यवस्था ने गहरा संकट झेला। यद्यपि ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता ने आधुनिक प्रशासनिक ढांचे, रेल, डाक व टेलीग्राफ जैसी सुविधाओं का विकास किया, परंतु इन सबके पीछे मुख्य उद्देश्य भारत का शोषण और ब्रिटिश हितों की पूर्ति था। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि किस प्रकार ब्रिटिश शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर किया, किस-किस क्षेत्र पर इसका प्रभाव पड़ा और इसके दीर्घकालिक परिणाम क्या रहे।


औपनिवेशिक नीतियों की भूमिका

ब्रिटिश सरकार की नीतियों का मूल उद्देश्य था भारत से संसाधनों का अधिकतम दोहन। कृषि, उद्योग, व्यापार और कर व्यवस्था – सब कुछ ब्रिटिश हितों के अनुसार ढाला गया।

  • कृषि क्षेत्र को नकदी फसलों (जैसे नील, कपास, अफीम, चाय, गन्ना) की ओर मोड़ दिया गया।
  • हस्तशिल्प उद्योग को जानबूझकर नष्ट किया गया ताकि ब्रिटेन से आयातित मशीन निर्मित वस्तुएँ भारत में खपाई जा सकें।
  • कर व्यवस्था इतनी कठोर बना दी गई कि किसान कर्ज़ और गरीबी के जाल में फँस गए।


कृषि क्षेत्र पर संकट

नकदी फसलों का दबाव

ब्रिटिश शासन से पूर्व भारत की कृषि मुख्यतः आत्मनिर्भर और जीवनोपयोगी थी। किसान अपने भोजन हेतु अनाज उपजाते थे। लेकिन अंग्रेजों ने किसानों को कपास, नील और अफीम जैसी नकदी फसलें उगाने को बाध्य किया। इससे खाद्यान्न उत्पादन में कमी आई और भुखमरी की स्थिति पैदा हुई।

अकाल और भुखमरी

19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध और 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में भारत में कई बड़े अकाल पड़े। ब्रिटिश शासन ने राहत कार्यों की उपेक्षा की और अनाज का निर्यात जारी रखा। परिणामस्वरूप लाखों लोग भूख से मर गए।

करों का बोझ

जमींदारी प्रथा और महलवारी व्यवस्था जैसी राजस्व प्रणालियों ने किसानों पर भारी बोझ डाला। भूमि कर समय पर न चुकाने पर किसानों की जमीनें छीन ली जाती थीं। इसने किसानों को ऋणग्रस्त और निर्धन बना दिया।


भारतीय उद्योगों का पतन

हस्तशिल्प का विनाश

भारत का हस्तशिल्प उद्योग (विशेषकर कपड़ा, रेशम, धातु और मिट्टी के शिल्प) विश्व प्रसिद्ध था। लेकिन ब्रिटिश शासन ने भारी आयात शुल्क लगाकर भारतीय वस्तुओं को यूरोपीय बाजारों से बाहर कर दिया। वहीं दूसरी ओर ब्रिटेन के तैयार माल को भारत में कर-मुक्त या कम शुल्क पर बेचा गया।

मशीन आधारित औद्योगीकरण

ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति के बाद मशीनों से उत्पादित वस्तुएँ सस्ती और अधिक मात्रा में उपलब्ध होने लगीं। इससे भारतीय शिल्पकार बेरोजगार हो गए। “देसी उद्योगों का पतन” भारत की अर्थव्यवस्था पर गहरा आघात था।


व्यापार और वाणिज्य पर प्रभाव

एकतरफा व्यापार नीति

ब्रिटिश शासन ने भारत को कच्चे माल का आपूर्तिकर्ता और तैयार माल का उपभोक्ता बना दिया। भारत से कपास, जूट, चाय, मसाले, अफीम और अन्य कच्चा माल ब्रिटेन भेजा जाता, जबकि ब्रिटेन से तैयार वस्तुएँ आयात की जातीं।

धन का निर्यात

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री दादाभाई नौरोजी ने इसे “धन की निकासी” (Drain of Wealth) कहा। भारत से हर वर्ष करोड़ों रुपये ब्रिटेन भेजे जाते थे – प्रशासनिक खर्च, सेना, वेतन और लाभांश के रूप में। यह धन कभी वापस नहीं आता था।


सामाजिक और आर्थिक परिणाम

  1. गरीबी और बेरोजगारी – किसानों की भूमि छिन गई, शिल्पकार बेरोजगार हुए और जनता निर्धनता की ओर धकेली गई।
  2. जनसंख्या पर विपरीत प्रभाव – अकाल और बीमारियों से मृत्यु दर बढ़ी।
  3. वर्गीय असमानता – जमींदार, महाजन और अंग्रेज अधिकारियों का वर्ग समृद्ध हुआ, जबकि सामान्य जनता गरीब हो गई।
  4. आर्थिक निर्भरता – भारत पूरी तरह ब्रिटेन पर निर्भर हो गया।


ब्रिटिश नीतियों के दीर्घकालिक प्रभाव

यद्यपि ब्रिटिश शासन के दौरान रेलवे, डाक, टेलीग्राफ और न्यायिक व्यवस्था जैसी संस्थाएँ बनीं, लेकिन ये सब भारत के विकास के लिए नहीं, बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य की सुविधा के लिए थे।

  • रेलवे का निर्माण मुख्यतः कच्चे माल की ढुलाई और सैनिकों की आवाजाही के लिए किया गया।
  • शिक्षा प्रणाली ने भी अंग्रेजी शासन के प्रति वफादार वर्ग तैयार करने का कार्य किया।
  • औद्योगिक पिछड़ापन और कृषि पर निर्भरता ने भारत को स्वतंत्रता के समय एक गरीब और अविकसित राष्ट्र के रूप में छोड़ दिया।


राष्ट्रवादी चिंतन और आर्थिक आलोचना

भारतीय राष्ट्रीय नेताओं ने ब्रिटिश आर्थिक नीतियों की कठोर आलोचना की।

  • दादाभाई नौरोजी ने “धन की निकासी का सिद्धांत” प्रस्तुत किया।
  • आर. सी. दत्त ने ब्रिटिश शासन की आर्थिक नीतियों को भारत की गरीबी का मूल कारण बताया।
  • महात्मा गांधी ने स्वदेशी आंदोलन चलाकर देसी उद्योगों और खादी को बढ़ावा दिया।

इन विचारों ने भारतीय जनता में राष्ट्रीय चेतना और स्वतंत्रता की आकांक्षा को और प्रबल किया।


निष्कर्ष

ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का संकट गहरा और बहुआयामी था। कृषि की तबाही, उद्योगों का पतन, व्यापार की असमानता और धन की निकासी ने भारत को गरीब और निर्भर देश बना दिया। ब्रिटिश शासन ने भारतीय संसाधनों का भरपूर शोषण किया और देश को आर्थिक दृष्टि से दुर्बल बना दिया।

हमें यह समझना चाहिए कि भारत की वर्तमान आर्थिक संरचना के कई पहलू उसी औपनिवेशिक विरासत से जुड़े हुए हैं। इस ऐतिहासिक अनुभव से यह सीख मिलती है कि किसी भी राष्ट्र की वास्तविक प्रगति तभी संभव है जब वह स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और न्यायपूर्ण आर्थिक नीतियाँ अपनाए।



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