भारत में पर्यावरणीय आंदोलन

 भारत में पर्यावरणीय आंदोलन

(Environmental Movements in India)

परिचय(Introduction)

भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराएँ सदैव प्रकृति-पूजा और पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी रही हैं। लेकिन आधुनिक काल में औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण वनों की कटाई, प्रदूषण, जल संकट और भूमि क्षरण जैसी समस्याएँ गहराई से सामने आईं। इन चुनौतियों के समाधान के लिए समय-समय पर भारत में अनेक पर्यावरणीय आंदोलन (Environmental Movements) हुए, जिनका उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और सतत विकास सुनिश्चित करना था।

नीचे भारत के प्रमुख पर्यावरणीय आंदोलनों का क्रमवार विवरण प्रस्तुत है।


1. चिपको आंदोलन (1973)

  • स्थान – उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा)
  • नेतृत्व – सुन्दरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट
  • मुख्य मुद्दा – वनों की अंधाधुंध कटाई।
  • विशेषता – ग्रामीण महिलाएँ पेड़ों से चिपक गईं ताकि ठेकेदार उन्हें न काट सकें।
  • परिणाम – वनों की कटाई पर रोक लगी और यह आंदोलन विश्व-स्तर पर प्रसिद्ध हुआ।


2. नर्मदा बचाओ आंदोलन (1985)

  • स्थान – नर्मदा घाटी, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात
  • नेतृत्व – मेधा पाटकर, बाबा आमटे
  • मुख्य मुद्दा – सरदार सरोवर बांध और अन्य बड़े बांधों से विस्थापन व पर्यावरणीय नुकसान।
  • परिणाम – विस्थापितों के अधिकारों की लड़ाई ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया।


3. अप्पिको आंदोलन (1983)

  • स्थान – कर्नाटक (उत्तर कन्नड़ क्षेत्र)
  • नेतृत्व – पांडुरंग हेगड़े
  • मुख्य मुद्दा – पश्चिमी घाट में वनों की कटाई।
  • विशेषता – चिपको आंदोलन की तर्ज पर लोग पेड़ों से चिपक गए।
  • परिणाम – जंगलों को संरक्षित करने और स्थानीय लोगों की भागीदारी को बढ़ावा मिला।


4. साइलेंट वैली आंदोलन (1978)

  • स्थान – केरल
  • मुख्य मुद्दा – साइलेंट वैली के वर्षावनों में जल विद्युत परियोजना का विरोध।
  • परिणाम – यह क्षेत्र संरक्षित राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।


5. बिश्नोई आंदोलन (1730)

  • स्थान – राजस्थान (खेजड़ली गाँव)
  • नेतृत्व – अमृता देवी बिश्नोई
  • मुख्य मुद्दा – खेजड़ी पेड़ों की रक्षा।
  • विशेषता – 363 लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।
  • परिणाम – यह विश्व का पहला बड़ा पर्यावरणीय आंदोलन माना जाता है।


6. टिहरी बांध आंदोलन (1978–2004)

  • स्थान – उत्तराखंड
  • नेतृत्व – सुन्दरलाल बहुगुणा
  • मुख्य मुद्दा – टिहरी बांध के कारण विस्थापन और भूकंपीय खतरे।
  • परिणाम – बांध का निर्माण तो हुआ, लेकिन आंदोलन ने बड़े बांधों के खतरों को उजागर किया।


7. झारखंड आंदोलन (1980 के दशक)

  • स्थान – झारखंड क्षेत्र
  • मुख्य मुद्दा – कोयला, खनन और औद्योगिक प्रदूषण से आदिवासियों का विस्थापन।
  • परिणाम – आदिवासियों के अधिकारों और प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण की माँग ने जोर पकड़ा।


8. बोधघाट परियोजना विरोध (1980–90)

  • स्थान – बस्तर, छत्तीसगढ़
  • मुख्य मुद्दा – इंद्रावती नदी पर प्रस्तावित बोधघाट बांध से जंगल और आदिवासी संस्कृति का नुकसान।
  • परिणाम – परियोजना स्थगित कर दी गई।


9. डोलराई आंदोलन / नेतरहाट आंदोलन

  • स्थान – झारखंड
  • मुख्य मुद्दा – वन संरक्षण और स्थानीय आदिवासी अधिकार।
  • परिणाम – सरकार को जंगलों की कटाई रोकनी पड़ी।


10. वर्तमान दौर के आंदोलन

  • प्लास्टिक विरोधी आंदोलन – सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध।
  • जल संरक्षण आंदोलन – राजेंद्र सिंह का तरुण भारत संघ (राजस्थान) द्वारा जोहड़ और तालाब पुनर्जीवन।
  • वायु प्रदूषण आंदोलन – दिल्ली और अन्य महानगरों में क्लीन एयर अभियान।
  • जलवायु परिवर्तन आंदोलन – युवाओं द्वारा ग्लोबल क्लाइमेट स्ट्राइक में भागीदारी।


निष्कर्ष

भारत के पर्यावरणीय आंदोलन केवल संसाधनों की रक्षा तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे मानव अधिकार, सामाजिक न्याय और सतत विकास से भी जुड़े हैं। चिपको, अप्पिको, नर्मदा बचाओ, साइलेंट वैली और बिश्नोई आंदोलन इस बात के प्रतीक हैं कि जब जनता एकजुट होती है, तो वह पर्यावरण और समाज दोनों की रक्षा कर सकती है।



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