वित्तीय आपातकाल(Financial Emergency)

वित्तीय आपातकाल(Financial Emergency)

भारत का संविधान केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन बनाए रखने के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करता है कि देश की वित्तीय स्थिरता बनी रहे। यदि कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए जहाँ भारत की वित्तीय स्थिति या क्रेडिट (credit) गंभीर संकट में पड़ जाए, तो संविधान के अंतर्गत वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency) घोषित किया जा सकता है।


वित्तीय आपातकाल का संवैधानिक आधार

  • अनुच्छेद 360 – भारत के संविधान में वित्तीय आपातकाल का प्रावधान किया गया है।

  • यदि राष्ट्रपति को यह संतोष हो कि भारत की वित्तीय स्थिरता या साख (credit) खतरे में है, तो वे वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं।


वित्तीय आपातकाल की घोषणा और अनुमोदन प्रक्रिया

  1. राष्ट्रपति की घोषणा – राष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद की सलाह पर वित्तीय आपातकाल लागू करते हैं।

  2. संसद की स्वीकृति

    • यह घोषणा प्रारंभ में 2 महीने तक लागू रहती है।

    • इसे आगे जारी रखने के लिए संसद के दोनों सदनों की मंजूरी आवश्यक है।

  3. अवधि

    • वित्तीय आपातकाल अनिश्चितकाल तक चल सकता है, जब तक कि राष्ट्रपति इसे वापस न ले लें।


वित्तीय आपातकाल के प्रभाव

(क) केंद्र का बढ़ा हुआ नियंत्रण

  • केंद्र सरकार को राज्यों पर वित्तीय नियंत्रण प्राप्त हो जाता है।

  • राज्य सरकारें केंद्र के आदेशों के अनुसार अपने व्यय और योजनाएँ संचालित करती हैं।

(ख) वेतन और भत्तों में कटौती

  • राष्ट्रपति न्यायाधीशों, लोक सेवकों, सेना और अन्य कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में कटौती कर सकते हैं।

  • यह कदम खर्चों को कम करने के लिए उठाया जाता है।

(ग) राज्यों की वित्तीय स्वतंत्रता में कमी

  • राज्यों को अपने बजट और योजनाएँ संसद की स्वीकृति के अधीन करनी पड़ती हैं।

  • राज्य अपनी मर्ज़ी से वित्तीय निर्णय नहीं ले पाते।


अब तक वित्तीय आपातकाल का प्रयोग

  • आज़ादी के बाद से अब तक भारत में कभी भी वित्तीय आपातकाल घोषित नहीं किया गया

  • हालाँकि, 1991 में भारी विदेशी मुद्रा संकट और 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान ऐसी स्थिति की आशंका जताई गई थी। लेकिन व्यावहारिक उपायों और नीतिगत सुधारों से इसे टाल दिया गया।


वित्तीय आपातकाल की आलोचना

  1. संघीय ढाँचे पर चोट – राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता समाप्त हो जाती है।

  2. नौकरशाही और न्यायपालिका पर असर – वेतन और भत्तों में कटौती से स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है।

  3. राजनीतिक दुरुपयोग की आशंका – इसे केंद्र सरकार राजनीतिक कारणों से भी लागू कर सकती है।


वित्तीय आपातकाल और लोकतंत्र

संविधान निर्माताओं ने इसे केवल अत्यंत आपात स्थिति के लिए रखा है। यदि कभी वित्तीय आपातकाल लगाया जाता है तो यह लोकतंत्र और संघीय ढाँचे की परीक्षा की घड़ी होगी। अतः इसे केवल तभी लागू किया जाना चाहिए जब वास्तव में देश की वित्तीय स्थिरता खतरे में हो


निष्कर्ष

वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360) भारतीय संविधान का एक ऐसा प्रावधान है, जिसका उद्देश्य देश को गंभीर आर्थिक संकट से उबारना है। हालाँकि, इसका कभी उपयोग नहीं हुआ है, लेकिन इसकी उपस्थिति यह सुनिश्चित करती है कि केंद्र सरकार के पास ऐसी स्थिति से निपटने का अंतिम उपाय मौजूद है।

लोकतंत्र और संघीय ढाँचे की मजबूती के लिए आवश्यक है कि वित्तीय आपातकाल का उपयोग केवल दुर्लभ और वास्तविक संकट की परिस्थितियों में ही किया जाए।



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