वित्तीय समावेशन(Financial Inclusion)

 वित्तीय समावेशन(Financial Inclusion)

प्रस्तावना

वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) आधुनिक अर्थव्यवस्था का एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्तंभ है। इसका मुख्य उद्देश्य है कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति, विशेषकर गरीब, ग्रामीण और वंचित वर्ग, औपचारिक वित्तीय प्रणाली से जुड़े और उन्हें सुलभ, सस्ती और सुरक्षित वित्तीय सेवाएँ उपलब्ध हों।

यह केवल बैंक खाता खोलने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें बचत, ऋण, बीमा, पेंशन और डिजिटल भुगतान सेवाएँ भी शामिल हैं। एक विकसित और समावेशी अर्थव्यवस्था के लिए वित्तीय समावेशन आवश्यक है।


वित्तीय समावेशन की परिभाषा

वित्तीय समावेशन का आशय है – ऐसे कदम उठाना जिससे समाज के सभी वर्गों को, विशेषकर वंचित और गरीब लोगों को, बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं तक आसान और किफायती पहुँच मिल सके।


वित्तीय समावेशन की आवश्यकता

  1. गरीबी उन्मूलन – गरीबों को ऋण और बचत की सुविधा उपलब्ध कराना।
  2. सामाजिक समानता – ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच असमानता को कम करना।
  3. आर्थिक विकास – अधिक से अधिक लोगों को वित्तीय गतिविधियों से जोड़कर पूंजी निर्माण।
  4. काला धन और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण
  5. महिला सशक्तिकरण – महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता और निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करना।


भारत में वित्तीय समावेशन की प्रमुख पहल

1. प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY)

  • 2014 में शुरू की गई।
  • उद्देश्य: हर नागरिक को बैंक खाता उपलब्ध कराना।
  • लाभ: जीरो बैलेंस खाता, रूपे कार्ड, बीमा और पेंशन सुविधा।

2. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT)

  • सरकारी योजनाओं की सब्सिडी और लाभ सीधे बैंक खातों में स्थानांतरित किए जाते हैं।

3. आधार आधारित बैंकिंग

  • आधार नंबर के माध्यम से पहचान और बैंकिंग सेवाओं को जोड़ना।

4. लघु वित्त बैंक और भुगतान बैंक

  • छोटे व्यवसायियों और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए सस्ती और सुलभ बैंकिंग सेवाएँ

5. डिजिटल वित्तीय सेवाएँ

  • UPI, मोबाइल वॉलेट, नेट बैंकिंग और AEPS के माध्यम से वित्तीय सेवाओं का विस्तार।


वित्तीय समावेशन के लाभ

  1. बचत की आदत में वृद्धि – लोग अपनी आय को सुरक्षित तरीके से जमा कर सकते हैं।
  2. सस्ते ऋण की उपलब्धता – साहूकारों पर निर्भरता घटती है।
  3. सामाजिक सुरक्षा – बीमा और पेंशन योजनाओं के माध्यम से सुरक्षा।
  4. आर्थिक गति – अधिक लेन-देन औपचारिक प्रणाली में आते हैं।
  5. पारदर्शिता – काला धन और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण।


वित्तीय समावेशन की चुनौतियाँ

  1. डिजिटल साक्षरता की कमी – ग्रामीण और अशिक्षित वर्ग में तकनीकी ज्ञान का अभाव।
  2. इंटरनेट और नेटवर्क की समस्या – दूरदराज के क्षेत्रों में डिजिटल सेवाओं की पहुँच सीमित।
  3. विश्वास की कमी – नकदी को अधिक सुरक्षित मानने की मानसिकता।
  4. कम आय स्तर – गरीब वर्ग नियमित रूप से बैंकिंग सेवाओं का उपयोग नहीं कर पाता।
  5. साइबर अपराध और सुरक्षा चिंताएँ।


वित्तीय समावेशन और डिजिटल भुगतान का संबंध

  • डिजिटल भुगतान वित्तीय सेवाओं को सुलभ और किफायती बनाता है।
  • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच की दूरी कम करता है।
  • जन धन खातों को सक्रिय करने में UPI और DBT का बड़ा योगदान है।
  • डिजिटल भुगतान से पारदर्शिता और वित्तीय अनुशासन बढ़ता है।


निष्कर्ष

वित्तीय समावेशन केवल आर्थिक गतिविधि नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता का भी प्रतीक है। जब समाज का प्रत्येक वर्ग वित्तीय प्रणाली से जुड़ता है, तभी वास्तविक समावेशी विकास संभव होता है।

भारत ने हाल के वर्षों में जन धन योजना, आधार, UPI और डिजिटल इंडिया जैसे कदमों से उल्लेखनीय प्रगति की है। फिर भी, डिजिटल साक्षरता, सुरक्षा और ग्रामीण कनेक्टिविटी पर ध्यान देकर हम वित्तीय समावेशन को और अधिक प्रभावी बना सकते हैं।



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