भारतीय आर्थिक नीति:पंचवर्षीय योजनाएँ
भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अपनी अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण और विकास के लिए योजनाबद्ध विकास का मार्ग अपनाया। 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना (Five Year Plan) लागू की गई और इसके बाद कई दशकों तक यह नीति भारत की आर्थिक प्रगति की रीढ़ बनी रही। पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य था – गरीबी हटाना, रोजगार सृजन, औद्योगिक और कृषि विकास, आत्मनिर्भरता तथा सामाजिक न्याय।
इस लेख में हम विस्तार से देखेंगे कि भारत की पंचवर्षीय योजनाओं ने किस प्रकार अर्थव्यवस्था को दिशा दी और उनके प्रमुख परिणाम क्या रहे।
पंचवर्षीय योजनाओं का उद्भव
योजना आयोग की स्थापना
1950 में योजना आयोग की स्थापना हुई, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते थे। इस आयोग ने ही पंचवर्षीय योजनाओं का मसौदा तैयार किया और उन्हें लागू किया।
उद्देश्य
- संसाधनों का संतुलित और न्यायसंगत उपयोग
- गरीबी और असमानता को कम करना
- कृषि और उद्योग में समानांतर विकास
- देश को आत्मनिर्भर बनाना
प्रमुख पंचवर्षीय योजनाएँ और उनका प्रभाव
1. पहली पंचवर्षीय योजना (1951–56)
- केंद्रबिंदु: कृषि और सिंचाई
- उद्देश्य: खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाना, भूमि सुधार करना
- उपलब्धि: कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई और बाँध परियोजनाएँ शुरू हुईं (भाखड़ा-नांगल, हिराकुंड)।
2. दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956–61)
- केंद्रबिंदु: औद्योगिकीकरण और भारी उद्योग
- उद्देश्य: सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार, स्टील प्लांट और मशीन उद्योग
- उपलब्धि: भिलाई, दुर्गापुर और राउरकेला स्टील संयंत्र की स्थापना।
3. तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961–66)
- केंद्रबिंदु: कृषि और उद्योग का संतुलित विकास
- लेकिन 1962 के चीन युद्ध और 1965 के पाकिस्तान युद्ध के कारण योजना असफल रही।
- परिणाम: खाद्यान्न संकट उत्पन्न हुआ।
4. चौथी पंचवर्षीय योजना (1969–74)
- केंद्रबिंदु: आत्मनिर्भरता और स्थिरता
- उपलब्धि: हरित क्रांति का आरंभ, कृषि उत्पादन में तेज वृद्धि।
5. पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1974–79)
- केंद्रबिंदु: गरीबी हटाओ (Garibi Hatao) और रोजगार सृजन
- उपलब्धि: 20-सूत्री कार्यक्रम की शुरुआत।
6. छठी पंचवर्षीय योजना (1980–85)
- केंद्रबिंदु: गरीबी उन्मूलन, तकनीकी और रोजगार
- उपलब्धि: इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी की ओर बढ़त।
7. सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985–90)
- केंद्रबिंदु: खाद्यान्न उत्पादन, रोजगार और ऊर्जा क्षेत्र
- उपलब्धि: आईटी और दूरसंचार क्षेत्र का विकास।
8. आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992–97)
- केंद्रबिंदु: उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG Policy)
- उपलब्धि: सेवा क्षेत्र का तेज विकास, विदेशी निवेश का आगमन।
9. नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997–2002)
- केंद्रबिंदु: समान अवसर और गरीबी उन्मूलन
- उपलब्धि: सामाजिक न्याय और ग्रामीण विकास पर जोर।
10. दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002–07)
- लक्ष्य: GDP की वृद्धि दर 8%
- उपलब्धि: आईटी क्षेत्र की प्रगति और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में वृद्धि।
11. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007–12)
- केंद्रबिंदु: समावेशी विकास (Inclusive Growth)
- उपलब्धि: शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सेवाओं पर ध्यान।
12. बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012–17)
- केंद्रबिंदु: “तेज, अधिक समावेशी और सतत विकास”
- यह भारत की अंतिम पंचवर्षीय योजना रही।
पंचवर्षीय योजनाओं का समापन
2015 में नीति आयोग (NITI Aayog) का गठन किया गया और 2017 से पंचवर्षीय योजनाओं की जगह थिंक टैंक आधारित दृष्टिकोण अपनाया गया। अब भारत दीर्घकालिक नीतियों और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) पर आधारित रणनीतियाँ बना रहा है।
पंचवर्षीय योजनाओं के सकारात्मक प्रभाव
- भारत ने कृषि और औद्योगिक विकास में उल्लेखनीय प्रगति की।
- हरित क्रांति और श्वेत क्रांति से आत्मनिर्भरता मिली।
- सार्वजनिक क्षेत्र ने आधारभूत संरचना खड़ी की।
- गरीबी उन्मूलन और रोजगार योजनाएँ शुरू हुईं।
- सेवा क्षेत्र और आईटी को बढ़ावा मिला।
आलोचनाएँ और सीमाएँ
- योजनाओं के लक्ष्यों को अक्सर पूरा नहीं किया जा सका।
- गरीबी और असमानता अभी भी बनी रही।
- ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में विकास असंतुलन रहा।
- भ्रष्टाचार और संसाधनों का दुरुपयोग योजनाओं की प्रभावशीलता कम करता रहा।
निष्कर्ष
पंचवर्षीय योजनाएँ भारत की आर्थिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण अध्याय रही हैं। इन योजनाओं ने भारत को कृषि संकट से उबारकर आत्मनिर्भर बनाया, औद्योगिक आधार मजबूत किया और सेवा क्षेत्र को वैश्विक पहचान दिलाई। हालाँकि चुनौतियाँ बनी रहीं, परंतु इन योजनाओं ने भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव रखी और आज के आधुनिक भारत को गढ़ने में अहम योगदान दिया।
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