ग्लोबल वॉर्मिंग

ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming)

कारण, प्रभाव और समाधान

परिचय

ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) आज 21वीं सदी की सबसे गंभीर पर्यावरणीय समस्या बन चुकी है। इसका अर्थ है – पृथ्वी के औसत तापमान में दीर्घकालिक वृद्धि। यह समस्या मुख्यतः मानव गतिविधियों से उत्पन्न हुई है, विशेषकर ग्रीनहाउस गैसों के अत्यधिक उत्सर्जन के कारण। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण हिमनद पिघल रहे हैं, समुद्र स्तर बढ़ रहा है, और चरम मौसम घटनाएँ (Extreme Weather Events) तेजी से बढ़ रही हैं।


ग्लोबल वॉर्मिंग की परिभाषा

ग्लोबल वॉर्मिंग वह प्रक्रिया है जिसमें वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄), नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) जैसी गैसों की मात्रा बढ़ने के कारण पृथ्वी की सतह का औसत तापमान लगातार बढ़ता जाता है।


ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रमुख कारण

1. मानव गतिविधियाँ

  • जीवाश्म ईंधन का दहन (Fossil Fuels) – कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस का अत्यधिक उपयोग।
  • औद्योगिक गतिविधियाँ – फैक्ट्रियों और बिजलीघरों से उत्सर्जन।
  • वाहनों से प्रदूषण – कार, बस, हवाई जहाज आदि।
  • वनों की कटाई (Deforestation) – कार्बन अवशोषण की क्षमता में कमी।

2. प्राकृतिक कारण

  • ज्वालामुखी विस्फोट से गैसों और धूल का उत्सर्जन।
  • सूर्य की गतिविधियों में बदलाव।
  • महासागरीय धाराओं (El Niño, La Niña) में असामान्यता।


ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभाव

1. पर्यावरणीय प्रभाव

  • हिमालय और आर्कटिक क्षेत्रों में ग्लेशियरों का पिघलना
  • समुद्र स्तर में लगातार वृद्धि।
  • पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता पर नकारात्मक असर।
  • अधिक बार आने वाले तूफान, चक्रवात और बाढ़।

2. आर्थिक प्रभाव

  • कृषि उत्पादन में कमी और फसल विफलता।
  • मत्स्य पालन और समुद्री संसाधनों पर असर।
  • आपदाओं से बुनियादी ढाँचे का नुकसान।
  • गरीब और विकासशील देशों पर अधिक दबाव।

3. सामाजिक और स्वास्थ्य प्रभाव

  • खाद्य और जल संकट।
  • जलवायु शरणार्थियों (Climate Refugees) की संख्या में वृद्धि।
  • स्वास्थ्य समस्याएँ – हीट स्ट्रोक, डेंगू, मलेरिया और श्वसन रोग।

4. भारत पर प्रभाव

  • मॉनसून में अनिश्चितता और असमान वर्षा।
  • गंगा और हिमालयी ग्लेशियरों का पिघलना
  • तटीय राज्यों (बंगाल, गुजरात, केरल) में समुद्र स्तर बढ़ना।
  • चक्रवातों और बाढ़ की आवृत्ति बढ़ना।


वैज्ञानिक आँकड़े और प्रमाण

  • IPCC की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 150 वर्षों में पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 1.1°C बढ़ा है।
  • 2100 तक यह वृद्धि 1.5°C से 4.5°C तक पहुँच सकती है।
  • पिछले 100 वर्षों में समुद्र का स्तर लगभग 15–20 सेमी बढ़ चुका है।


ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के उपाय

1. नीतिगत उपाय

  • पेरिस समझौता (2015) – वैश्विक तापमान को 2°C से नीचे रखना।
  • नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) – सौर, पवन, जलविद्युत को बढ़ावा देना।
  • कार्बन टैक्स और उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (Emission Trading System) लागू करना।

2. तकनीकी उपाय

  • कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) तकनीक।
  • विद्युत और हाइड्रोजन वाहन
  • ऊर्जा दक्ष भवन और स्मार्ट सिटी।

3. व्यक्तिगत स्तर पर योगदान

  • पेड़ लगाना और वनों का संरक्षण।
  • बिजली और पानी की बचत।
  • सार्वजनिक परिवहन और साइकिल का उपयोग।
  • कम प्लास्टिक और सतत जीवनशैली अपनाना।


👉 निष्कर्ष

ग्लोबल वॉर्मिंग केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं है, बल्कि यह मानव सभ्यता के अस्तित्व का प्रश्न है। यदि विश्व समुदाय अभी से कदम उठाए, तो तापमान वृद्धि को सीमित किया जा सकता है। नवीकरणीय ऊर्जा, पर्यावरण संरक्षण और हरित जीवनशैली अपनाकर हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और संतुलित भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं।



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ