सतत कृषि और हरित क्रांति
(Green Revolution and Sustainable Agriculture)
परिचय
कृषि मानव जीवन और अर्थव्यवस्था का आधार है। बढ़ती जनसंख्या और खाद्य सुरक्षा की मांग ने कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता उत्पन्न की। इसी उद्देश्य से भारत में हरित क्रांति (Green Revolution) आई। लेकिन आधुनिक कृषि पद्धतियों ने कई पर्यावरणीय और सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न कीं, जिससे सतत कृषि (Sustainable Agriculture) की आवश्यकता बढ़ गई। सतत कृषि का लक्ष्य उत्पादन बढ़ाना, संसाधनों का संरक्षण और पर्यावरण संतुलन बनाए रखना है।
1. हरित क्रांति (Green Revolution)
विशेषताएँ
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1960-70 के दशक में भारत में शुरू। 
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उच्च उत्पादन वाली फसलें (HYV seeds) – मुख्यतः गेहूं और धान। 
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रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक का प्रयोग। 
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सिंचाई सुविधाओं का विस्तार। 
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परिणाम: खाद्य उत्पादन में वृद्धि, भारत आत्मनिर्भर बना। 
सीमाएँ
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मृदा की उर्वरता में कमी – रासायनिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग से। 
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जल संसाधनों का अत्यधिक दोहन। 
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जैव विविधता में कमी – पारंपरिक फसलों की घटती संख्या। 
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सामाजिक असमानता – छोटे किसान अपेक्षाकृत हाशिए पर। 
2. सतत कृषि (Sustainable Agriculture)
परिभाषा
सतत कृषि वह कृषि पद्धति है जो उत्पादन बढ़ाते हुए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करती है और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखती है।
प्रमुख सिद्धांत
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जैविक उर्वरक और कीटनाशक – रासायनिक उर्वरकों का कम या संतुलित उपयोग। 
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फसल चक्र और बहुफसलीय खेती – भूमि की उर्वरता बनाए रखना। 
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जल संरक्षण तकनीक – ड्रिप सिंचाई, वर्षा जल संचयन। 
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जैव विविधता का संरक्षण – स्थानीय और पारंपरिक फसलों को बढ़ावा। 
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मृदा संरक्षण – सतत कृषि पद्धतियों से मिट्टी की गुणवत्ता बनाए रखना। 
लाभ
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भूमि और जल संसाधनों का संरक्षण। 
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पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता का संरक्षण। 
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किसानों की आय में स्थिरता। 
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खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय संतुलन सुनिश्चित करना। 
3. भारत में सतत कृषि और हरित क्रांति का समन्वय
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हरित क्रांति ने उत्पादन बढ़ाया लेकिन संसाधनों पर दबाव बढ़ाया। 
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सतत कृषि उपाय जैसे जैविक खेती, मल्चिंग, और सूक्ष्म सिंचाई, हरित क्रांति के लाभों को लंबे समय तक बनाए रखने में मदद करते हैं। 
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सरकार की राष्ट्रीय कृषि नीति और किसान योजनाएँ सतत कृषि को प्रोत्साहित करती हैं। 
निष्कर्ष
हरित क्रांति ने भारत को खाद्य आत्मनिर्भर बनाया, लेकिन इसके पर्यावरणीय और सामाजिक दुष्प्रभाव भी सामने आए। सतत कृषि अपनाकर हम भू-जल संरक्षण, जैव विविधता, पर्यावरण संतुलन और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। सतत और तकनीकी आधारित कृषि ही भविष्य की खेती का मार्ग है।
FAQ
Q1. हरित क्रांति क्या है?
➡️ हरित क्रांति 1960-70 के दशक में भारत में कृषि उत्पादन बढ़ाने की पहल थी, जिसमें उच्च उत्पादकता वाली फसलें, रासायनिक उर्वरक और सिंचाई सुविधा का उपयोग किया गया।Q2. हरित क्रांति के मुख्य लाभ क्या हैं?
➡️ खाद्य उत्पादन में वृद्धि, भारत का आत्मनिर्भर बनना, और किसानों की आय में वृद्धि।Q3. हरित क्रांति के दुष्प्रभाव क्या हैं?
➡️ मृदा की उर्वरता में कमी, जल संसाधनों पर दबाव, जैव विविधता में कमी, और छोटे किसानों पर सामाजिक असमानता।Q4. सतत कृषि क्या है?
➡️ सतत कृषि वह पद्धति है जो उत्पादन बढ़ाते हुए पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करती है।Q5. सतत कृषि के प्रमुख उपाय क्या हैं?
➡️ जैविक उर्वरक, फसल चक्र, बहुफसलीय खेती, जल संरक्षण तकनीक, और जैव विविधता का संरक्षण।Q6. हरित क्रांति और सतत कृषि में मुख्य अंतर क्या है?
➡️ हरित क्रांति ने उत्पादन बढ़ाया लेकिन पर्यावरण पर दबाव डाला; सतत कृषि उत्पादन के साथ प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण का संरक्षण सुनिश्चित करती है।Q7. भारत में सतत कृषि को बढ़ावा देने वाली सरकारी योजनाएँ कौन-सी हैं?
➡️ राष्ट्रीय कृषि नीति, जैविक खेती योजनाएँ, जल संचयन और सूक्ष्म सिंचाई योजनाएँ।Q8. सतत कृषि के लाभ क्या हैं?
➡️ जल और भूमि संसाधनों का संरक्षण, जैव विविधता की सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और किसानों की स्थिर आय।Q9. हरित क्रांति के दौरान कौन-कौन सी फसलें प्रमुख थीं?
➡️ मुख्य रूप से गेहूं और धान।Q10. सतत कृषि क्यों आवश्यक है?
➡️ अत्यधिक रासायनिक उपयोग और जल संसाधनों के दबाव के कारण भविष्य की खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय संतुलन सुनिश्चित करने के लिए।
 
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