हरित क्रांति (Green Revolution)

 हरित क्रांति और इसके प्रभाव

भारतीय कृषि के इतिहास में हरित क्रांति (Green Revolution) एक ऐसा मोड़ है जिसने कृषि उत्पादन, तकनीक और किसानों की स्थिति को गहराई से प्रभावित किया। 1960 के दशक में जब भारत गंभीर खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था और देश को अनाज के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता था, तब हरित क्रांति ने कृषि क्षेत्र में नई ऊर्जा और आत्मनिर्भरता की नींव रखी।

इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि हरित क्रांति क्या थी, इसके प्रमुख तत्व कौन-कौन से थे, और इसके आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय प्रभाव क्या रहे।


हरित क्रांति की परिभाषा

हरित क्रांति वह कृषि आंदोलन है जिसमें उच्च उपज वाले बीज (HYV Seeds), रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई सुविधाओं और आधुनिक मशीनों के प्रयोग द्वारा कृषि उत्पादन में तेज़ी से वृद्धि की गई।


हरित क्रांति की पृष्ठभूमि

  1. खाद्यान्न संकट (1960 के दशक) – लगातार सूखे और जनसंख्या वृद्धि के कारण खाद्यान्न की भारी कमी।
  2. PL-480 योजना पर निर्भरता – अमेरिका से गेहूँ आयात करना पड़ा।
  3. वैज्ञानिक अनुसंधान – नॉर्मन बोरलॉग और भारतीय वैज्ञानिकों (डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन) के प्रयासों से HYV बीज विकसित किए गए।
  4. सरकारी पहल – द्वितीय और तृतीय पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि पर विशेष जोर दिया गया।


हरित क्रांति के प्रमुख तत्व

  1. HYV बीजों का उपयोग – गेहूँ और चावल की उच्च उत्पादकता वाली किस्में।
  2. रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक – मिट्टी की उत्पादकता और फसल सुरक्षा में वृद्धि।
  3. सिंचाई सुविधाओं का विस्तार – नहर, ट्यूबवेल और पंप सेट का प्रयोग।
  4. आधुनिक मशीनरी – ट्रैक्टर, हार्वेस्टर और थ्रेशर का उपयोग।
  5. सरकारी सहायता – न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), ऋण, खाद्य सब्सिडी और सहकारी संस्थाएँ।


हरित क्रांति के आर्थिक प्रभाव

खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि

गेहूँ और चावल के उत्पादन में क्रांतिकारी बढ़ोतरी हुई।

भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बन गया।

कृषि आय में वृद्धि

किसानों की आय बढ़ी, विशेषकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में।

रोजगार के अवसर

कृषि से जुड़े क्षेत्रों (उर्वरक, ट्रैक्टर, बीज उद्योग) में नए रोजगार बने।

निर्यात में योगदान

भारत खाद्यान्न आयातक से निर्यातक देश बन गया।

हरित क्रांति के सामाजिक प्रभाव

  1. किसानों की जीवन स्तर में सुधार – सम्पन्न किसानों की स्थिति मजबूत हुई।
  2. ग्रामीण असमानता – बड़े किसानों को लाभ अधिक, छोटे किसानों को कम मिला।
  3. ग्रामीण समाज में वर्ग विभाजन – अमीर और गरीब किसानों के बीच खाई चौड़ी हुई।
  4. शहरीकरण को प्रोत्साहन – कृषि आय से शहरों में निवेश और प्रवास बढ़ा।


हरित क्रांति के पर्यावरणीय प्रभाव

  1. भूमि की उर्वरता में कमी – रासायनिक उर्वरकों के अधिक उपयोग से मिट्टी की गुणवत्ता घटी।
  2. जल संसाधनों का दोहन – अत्यधिक सिंचाई से भूजल स्तर नीचे गया।
  3. कीटनाशकों से प्रदूषण – स्वास्थ्य और पर्यावरण पर दुष्प्रभाव।
  4. एकल फसल पर निर्भरता – गेहूँ और चावल पर अत्यधिक जोर से कृषि विविधता घटी।


हरित क्रांति की सीमाएँ

  • केवल चुनिंदा क्षेत्रों (पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश) तक सीमित रही।
  • छोटे और सीमांत किसानों तक तकनीक और संसाधन नहीं पहुँच सके।
  • दालों, तिलहनों और मोटे अनाज के उत्पादन में सुधार नहीं हुआ।
  • प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ा।


वर्तमान परिप्रेक्ष्य और आगे का रास्ता

  • अब आवश्यकता है दूसरी हरित क्रांति की, जिसमें सतत कृषि (Sustainable Agriculture), जैविक खेती, फसल विविधीकरण और जल संरक्षण पर ध्यान दिया जाए।
  • सरकार प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन और जैविक कृषि मिशन जैसी योजनाओं से संतुलित विकास पर जोर दे रही है।


निष्कर्ष

हरित क्रांति भारतीय कृषि के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी जिसने भारत को भुखमरी और खाद्यान्न संकट से निकालकर आत्मनिर्भर राष्ट्र बना दिया। हालाँकि, इसके कारण सामाजिक असमानता और पर्यावरणीय चुनौतियाँ भी सामने आईं। अब समय है कि भारत सतत और समावेशी कृषि मॉडल अपनाकर किसानों की आय बढ़ाए और संसाधनों का संरक्षण करते हुए कृषि को भविष्य के लिए सुरक्षित बनाए।



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