उच्च न्यायालय और अन्य न्यायिक संस्थाएँ

उच्च न्यायालय और अन्य न्यायिक संस्थाएँ

(High Court and other judicial bodies)

भारत का न्यायिक तंत्र एक संगठित और श्रेणीकृत संरचना पर आधारित है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय और निचली न्यायालयें सम्मिलित हैं। प्रत्येक न्यायिक संस्था को संविधान में अलग-अलग अधिकार और जिम्मेदारियाँ दी गई हैं। यह व्यवस्था भारत में विधि का शासन और न्याय की सुलभता सुनिश्चित करती है।


🔷 उच्च न्यायालय: संरचना और भूमिका

संवैधानिक आधार

उच्च न्यायालयों का गठन भारतीय संविधान के भाग VI, अनुच्छेद 214 से 231 तक किया गया है। प्रत्येक राज्य या राज्यों के समूह के लिए एक उच्च न्यायालय स्थापित किया जा सकता है।

मुख्य विशेषताएँ

  • प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीश होते हैं।
  • राष्ट्रपति द्वारा इनकी नियुक्ति की जाती है।
  • उच्च न्यायालय, अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले राज्यों के न्यायिक प्रशासन की सर्वोच्च संस्था होती है।


🔷 उच्च न्यायालयों के अधिकार और शक्तियाँ

1. मूल अधिकारों की रक्षा (अनुच्छेद 226)

  • नागरिकों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की जा सकती है।
  • उच्च न्यायालय, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की रक्षा करता है।

2. मूल क्षेत्राधिकार (Original Jurisdiction)

  • उच्च न्यायालय कुछ मामलों में सीधे सुनवाई कर सकता है, जैसे कि राज्य सरकार बनाम व्यक्ति, हबीअस कॉर्पस, मंडामस, आदि।

3. अपीलीय अधिकार (Appellate Jurisdiction)

  • यह निचली अदालतों द्वारा दिए गए निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनता है।

4. पर्यवेक्षण शक्ति (Supervisory Jurisdiction)

  • यह अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले न्यायालयों और ट्रिब्यूनलों की निगरानी करता है।

5. न्यायिक समीक्षा

  • उच्च न्यायालय राज्य सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों की वैधता की संवैधानिक समीक्षा कर सकता है।

🔷 भारत के कुछ प्रमुख उच्च न्यायालय

उच्च न्यायालय स्थापना वर्ष क्षेत्राधिकार
इलाहाबाद उच्च न्यायालय 1866 उत्तर प्रदेश
मुंबई उच्च न्यायालय 1862 महाराष्ट्र, गोवा, दमन और दीव
मद्रास उच्च न्यायालय 1862 तमिलनाडु, पुडुचेरी
कोलकाता उच्च न्यायालय 1862 पश्चिम बंगाल, अंडमान-निकोबार
दिल्ली उच्च न्यायालय 1966 राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र

🔷 अन्य न्यायिक संस्थाएँ

1. जिला और सत्र न्यायालय

  • यह प्रत्येक जिले में स्थापित न्यायालय होता है, जो सिविल और आपराधिक मामलों की सुनवाई करता है।

2. फौजदारी और मजिस्ट्रेट अदालतें

  • छोटे आपराधिक मामलों की सुनवाई हेतु मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट और कार्यपालक मजिस्ट्रेट होते हैं।

3. ग्राम न्यायालय (Gram Nyayalayas)

  • ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ता और त्वरित न्याय प्रदान करने हेतु सरकार ने ग्राम न्यायालयों की स्थापना की है।

4. उपभोक्ता न्यायालय (Consumer Courts)

  • उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा और वाणिज्यिक विवादों के समाधान हेतु स्थापित न्यायालय।

5. परिवार न्यायालय (Family Courts)

  • विवाह, तलाक, भरण-पोषण, उत्तराधिकार आदि से संबंधित पारिवारिक मामलों की सुनवाई करती हैं।

6. प्रशासनिक न्यायाधिकरण (Administrative Tribunals)

  • सरकारी कर्मचारियों से संबंधित विवादों का निपटारा करने के लिए CAT (Central Administrative Tribunal) जैसे संस्थानों की स्थापना की गई है।

🔷 निष्कर्ष

भारत की न्यायिक प्रणाली की रीढ़ उच्च न्यायालय और अन्य न्यायिक संस्थाएँ हैं। वे संविधान और कानूनों की रक्षा करते हुए नागरिकों को त्वरित और निष्पक्ष न्याय दिलाने में सहायक हैं। इनकी भूमिका लोकतांत्रिक मूल्यों के संरक्षण में अत्यंत महत्वपूर्ण है।



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