भारतीय मुद्रा का इतिहास

 भारतीय मुद्रा का इतिहास

(History of Indian Money)

प्रस्तावना(Introduction)

मुद्रा (Currency) किसी भी देश की आर्थिक पहचान और सामर्थ्य का प्रतीक होती है। भारत का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है और इस दौरान यहाँ की मुद्रा प्रणाली में कई परिवर्तन हुए हैं। प्राचीन काल के धातु के सिक्कों से लेकर आज के डिजिटल भुगतान और वर्चुअल करेंसी तक, भारतीय मुद्रा ने लंबा सफर तय किया है।


प्राचीन भारत की मुद्रा प्रणाली

1. वेदिक और महाजनपद काल

  • मुद्रा का प्रारंभिक रूप था “पंचमार्क सिक्के” (Punch-marked Coins)
  • ये चाँदी के सिक्के थे जिन पर प्रतीकात्मक चिह्न बने होते थे।
  • इन्हें महाजनपदों (600 ईसा पूर्व) के समय उपयोग में लाया गया।

2. मौर्य काल (321 ई.पू. – 185 ई.पू.)

  • मौर्य साम्राज्य में चाँदी और ताँबे के सिक्के प्रचलित हुए।
  • सिक्कों पर राज्य की आधिकारिक मुहर होती थी।
  • इसे “कार्षापण” कहा जाता था।

3. गुप्त काल (320 ई. – 550 ई.)

  • इस काल को स्वर्ण मुद्रा का स्वर्ण युग कहा जाता है।
  • सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय और समुद्रगुप्त ने सोने के “दीनार” जारी किए।
  • सिक्कों पर राजाओं की छवि और धार्मिक प्रतीक अंकित होते थे।

4. मध्यकालीन भारत

  • दिल्ली सल्तनत और मुग़ल काल में सोने, चाँदी और ताँबे के सिक्के प्रचलन में आए।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने चाँदी के “टंका” और ताँबे के “जीटल” जारी किए।
  • शेरशाह सूरी ने रूपया नामक मुद्रा जारी की, जिसका भार 178 ग्रेन (लगभग 11.66 ग्राम चाँदी) था।
  • “रुपया” शब्द यहीं से उत्पन्न हुआ।


औपनिवेशिक काल की मुद्रा

1. ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन

  • 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में एकरूप मुद्रा प्रणाली की शुरुआत की।
  • 1835 में “एक रुपया” को मानक मुद्रा घोषित किया गया।

2. ब्रिटिश शासन (1858 – 1947)

  • 1861 में पेपर करंसी एक्ट पारित हुआ और पहली बार कागज़ी नोट जारी किए गए।
  • नोटों पर ब्रिटिश सम्राट/सम्राज्ञी की तस्वीर अंकित होती थी।
  • उस समय सोना और चाँदी दोनों का उपयोग होता था, लेकिन धीरे-धीरे सिल्वर स्टैंडर्ड अपनाया गया।


स्वतंत्र भारत की मुद्रा

1. स्वतंत्रता के बाद (1947 – 1950)

  • प्रारंभिक दौर में भारत ने ब्रिटिश नोटों पर भारत सरकार की मुहर का उपयोग किया।
  • 1949 में रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने स्वतंत्र भारत के पहले नोट जारी किए, जिन पर अशोक स्तंभ अंकित था।

2. दाशमिक प्रणाली (Decimal System) – 1957

  • 1957 में भारत ने दाशमिक प्रणाली अपनाई।
  • 1 रुपया = 100 पैसे घोषित हुआ।
  • “नया पैसा” शब्द कुछ वर्षों तक प्रचलित रहा।

3. विशेष श्रृंखलाएँ और डिज़ाइन

  • विभिन्न समय पर नोटों पर महात्मा गांधी, अशोक स्तंभ और सांस्कृतिक धरोहरों की छवियाँ आईं।
  • 1996 में “महात्मा गांधी श्रृंखला” शुरू हुई, जिसने पुराने नोटों की जगह ली।


हाल के बदलाव और सुधार

1. महात्मा गांधी नई श्रृंखला (2016 के बाद)

  • नोटबंदी (8 नवंबर 2016) के बाद ₹500 और ₹1000 के पुराने नोट बंद कर दिए गए।
  • नए ₹2000, ₹500, ₹200, ₹100, ₹50, ₹20 और ₹10 के नोट जारी हुए।
  • इन नोटों पर महात्मा गांधी की तस्वीर और भारत की सांस्कृतिक धरोहरों की छवियाँ अंकित की गईं।

2. डिजिटल और कैशलेस लेन-देन

  • डिजिटल इंडिया मिशन के तहत UPI, भीम ऐप और डिजिटल वॉलेट्स का उपयोग बढ़ा।
  • आज मुद्रा केवल सिक्कों और नोटों तक सीमित नहीं है, बल्कि डिजिटल करेंसी का रूप भी ले चुकी है।

3. केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC)

  • रिज़र्व बैंक ने 2022 में डिजिटल रुपया (e₹) की पायलट परियोजना शुरू की।
  • इसका उद्देश्य है नकद लेन-देन पर निर्भरता कम करना और डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना।


भारतीय मुद्रा की प्रमुख विशेषताएँ

  • अशोक स्तंभ और महात्मा गांधी की तस्वीर प्रमुख प्रतीक।
  • 15 से अधिक भाषाओं में अंकित मूल्य।
  • सुरक्षा विशेषताएँ – वॉटरमार्क, सुरक्षा धागा, माइक्रो प्रिंटिंग।
  • सांस्कृतिक विरासत और वैज्ञानिक उपलब्धियों की झलक।


निष्कर्ष

भारतीय मुद्रा का इतिहास केवल आर्थिक लेन-देन का इतिहास नहीं है, बल्कि यह हमारे राजनीतिक, सांस्कृतिक और तकनीकी विकास का भी दर्पण है। पंचमार्क सिक्कों से लेकर डिजिटल रुपया तक की यात्रा दर्शाती है कि भारत ने समय के साथ स्वयं को लगातार बदला है। आने वाले समय में भारतीय मुद्रा का स्वरूप और भी अधिक डिजिटल, सुरक्षित और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी होगा।



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