कृषि सुधार और कृषि नीति
भारत जैसे विशाल और कृषिप्रधान देश में कृषि सुधार और कृषि नीति का महत्व अत्यंत व्यापक है। कृषि केवल खाद्य सुरक्षा का आधार नहीं है, बल्कि यह करोड़ों लोगों की आजीविका, रोजगार और औद्योगिक कच्चे माल का भी प्रमुख स्रोत है। समय-समय पर सरकार ने कृषि को आधुनिक, टिकाऊ और उत्पादक बनाने के लिए अनेक सुधारात्मक कदम और नीतियाँ अपनाई हैं।
इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि भारतीय कृषि में क्या-क्या सुधार किए गए हैं, कृषि नीति की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं, और भविष्य में किस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है।
1. कृषि सुधार क्या है?
कृषि सुधार से तात्पर्य उन उपायों से है जिनके द्वारा कृषि क्षेत्र की उत्पादकता, दक्षता, स्थिरता और किसानों की आय को बढ़ाया जाता है। इसमें भूमि सुधार, सिंचाई, उर्वरक, बीज, बाजार व्यवस्था और तकनीकी नवाचार शामिल होते हैं।
2. स्वतंत्रता के बाद कृषि सुधार
(क) भूमि सुधार
- जमींदारी उन्मूलन – किसानों को भूमि का मालिकाना हक़ दिया गया।
- भूमि ceiling कानून – बड़े ज़मींदारों से अतिरिक्त भूमि लेकर भूमिहीन किसानों में बाँटी गई।
- किरायेदारी सुधार – बटाईदार किसानों के अधिकारों की रक्षा की गई।
(ख) हरित क्रांति
- 1960–70 के दशक में HYV बीज, रासायनिक उर्वरक और सिंचाई सुविधाओं के विस्तार से उत्पादन में तेज़ी आई।
- गेहूँ और चावल में आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई।
(ग) संस्थागत सुधार
- सहकारी समितियों और बैंकों के माध्यम से किसानों को ऋण सुविधा।
- कृषि मूल्य नीति और MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की शुरुआत।
3. कृषि नीति
भारत की कृषि नीति का लक्ष्य केवल उत्पादन बढ़ाना नहीं है, बल्कि किसानों की स्थिति सुधारना और कृषि को स्थायी बनाना भी है।
(क) प्रमुख उद्देश्य
- खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता।
- किसानों की आय में वृद्धि।
- कृषि को व्यावसायिक और आधुनिक बनाना।
- कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाना।
- पर्यावरणीय संतुलन और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।
(ख) पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि
- प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951–56) – सिंचाई और खाद्य उत्पादन पर जोर।
- तृतीय पंचवर्षीय योजना (1961–66) – खाद्यान्न संकट और हरित क्रांति की शुरुआत।
- सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985–90) – खाद्यान्न आत्मनिर्भरता का लक्ष्य।
- दसवीं व ग्यारहवीं योजना – किसानों की आय बढ़ाने और ग्रामीण रोजगार पर जोर।
4. हाल के कृषि सुधार
(क) तकनीकी सुधार
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना – मिट्टी की गुणवत्ता जानकर उर्वरकों का संतुलित उपयोग।
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना – “हर खेत को पानी” का लक्ष्य।
- ई-नाम पोर्टल – कृषि उत्पादों का डिजिटल व्यापार।
- कृषि यंत्रीकरण – ट्रैक्टर, ड्रोन और आधुनिक मशीनों का प्रयोग।
(ख) वित्तीय सुधार
- किसान क्रेडिट कार्ड – सस्ती दर पर ऋण उपलब्ध कराना।
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना – प्राकृतिक आपदाओं से फसल की सुरक्षा।
- PM-Kisan सम्मान निधि – किसानों को प्रत्यक्ष नकद सहायता।
(ग) कृषि बाजार सुधार
- APMC मंडियों में सुधार और निजी व्यापार को बढ़ावा।
- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को प्रोत्साहन।
- भंडारण और कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं का विकास।
5. कृषि सुधार की चुनौतियाँ
- भूमि का विखंडन – छोटी जोतों में आधुनिक तकनीक अपनाना कठिन।
- सिंचाई असमानता – आधी कृषि भूमि अभी भी मानसून पर निर्भर।
- उर्वरकों का असंतुलित प्रयोग – मिट्टी की उर्वरता घट रही है।
- बाजार असुरक्षा – किसानों को अपनी फसलों का उचित मूल्य नहीं मिलता।
- ऋण जाल – छोटे किसान साहूकारों के कर्ज में फँसे रहते हैं।
- पर्यावरणीय संकट – भूजल का अति दोहन और रासायनिक प्रदूषण।
6. आगे का रास्ता
- सतत कृषि (Sustainable Farming) को बढ़ावा देना।
- जैविक खेती और प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन।
- फसल विविधीकरण – दालें, तिलहन और मोटे अनाज का उत्पादन बढ़ाना।
- डिजिटल तकनीक – ड्रोन, AI और स्मार्ट सिंचाई प्रणालियाँ।
- ग्रामीण आधारभूत ढाँचे का विकास – सड़कों, गोदामों और कोल्ड स्टोरेज का विस्तार।
- निर्यात उन्मुख कृषि – वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा।
निष्कर्ष
भारत की कृषि नीति और कृषि सुधार ने पिछले सात दशकों में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। हरित क्रांति से लेकर आज की डिजिटल कृषि तक, भारत ने खाद्यान्न आत्मनिर्भरता और किसानों के कल्याण की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है।
हालाँकि, कृषि संकट अब भी गहरा है। किसानों की आय बढ़ाने, संसाधनों के टिकाऊ उपयोग और बाजार व्यवस्था में सुधार के बिना कृषि का समग्र विकास संभव नहीं। इसलिए आवश्यक है कि कृषि सुधार केवल उत्पादन बढ़ाने तक सीमित न रहकर किसानों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने पर केंद्रित हों।
 
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