भारतीय कृषि(Agriculture Structure)

 भारतीय कृषि का स्वरूप और संरचना

भारत एक कृषिप्रधान देश है, जहाँ जनसंख्या का बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। कृषि न केवल खाद्य सुरक्षा का आधार है, बल्कि यह देश की अर्थव्यवस्था, रोजगार, उद्योग और संस्कृति का भी मुख्य आधार स्तंभ है। भारतीय कृषि का स्वरूप अत्यंत विविधतापूर्ण है और इसकी संरचना समय के साथ बदलती रही है।

इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि भारतीय कृषि का स्वरूप और संरचना कैसी है, इसमें कौन-कौन से तत्व शामिल हैं और वर्तमान समय में इसके सामने कौन-सी चुनौतियाँ और अवसर मौजूद हैं।


भारतीय कृषि का स्वरूप

1. जीविका प्रधान कृषि

भारत की कृषि का मुख्य स्वरूप जीविका आधारित (Subsistence Farming) है, जहाँ किसान अपनी जरूरत के लिए फसल उगाते हैं और बचा हुआ हिस्सा स्थानीय बाजार में बेचते हैं।

2. मानसून पर निर्भरता

भारतीय कृषि का अधिकांश हिस्सा मानसून की वर्षा पर निर्भर करता है। वर्षा की कमी या असमान वितरण सीधे उत्पादन को प्रभावित करता है।

3. श्रम प्रधानता

भारत में कृषि अभी भी बड़े पैमाने पर श्रम प्रधान है। यहाँ आधुनिक मशीनों और तकनीकों का उपयोग सीमित क्षेत्रों में ही होता है।

4. विविधता

भारत की भौगोलिक विविधता के कारण कृषि में भी व्यापक विविधता देखने को मिलती है। उत्तर में गेहूँ और चावल, दक्षिण में मसाले और कॉफी, पश्चिम में कपास और गन्ना तथा पूर्वोत्तर में चाय और बागवानी प्रमुख हैं।

5. मिश्रित खेती

भारतीय किसान अक्सर फसल उत्पादन और पशुपालन दोनों को अपनाते हैं। इससे उनकी आय के स्रोत विविध बने रहते हैं।


भारतीय कृषि की संरचना

1. फसली पैटर्न (Cropping Pattern)

  • खरीफ फसलें – धान, मक्का, बाजरा, कपास, गन्ना
  • रबी फसलें – गेहूँ, जौ, चना, सरसों
  • जायद फसलें – मूँग, तरबूज, खरबूजा

2. कृषि भूमि का बँटवारा

  • छोटे और सीमांत किसान (2 हेक्टेयर से कम भूमि) भारत के 85% से अधिक किसानों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • भूमि का अत्यधिक विखंडन उत्पादन और निवेश में बाधा डालता है।

3. कृषि प्रणाली

  • परंपरागत कृषि – हल, बैल और पारंपरिक बीजों का उपयोग।
  • व्यावसायिक कृषि – नकदी फसलें जैसे गन्ना, कपास और चाय का उत्पादन।
  • सिंचित कृषि – नहर, ट्यूबवेल और कुओं के सहारे।
  • जैविक कृषि – बिना रसायन और उर्वरक के प्राकृतिक पद्धति से खेती।

4. सिंचाई संरचना

  • लगभग 48% कृषि भूमि सिंचित है, जबकि शेष भूमि अब भी वर्षा पर निर्भर है।
  • मुख्य स्रोत: नहरें, ट्यूबवेल, कुएँ, तालाब और वर्षा जल संचयन।

5. कृषि उत्पाद

  • अनाज – धान, गेहूँ, मक्का
  • दलहन – चना, अरहर, मूँग
  • तेलहन – सरसों, सूरजमुखी, मूँगफली
  • नकदी फसलें – गन्ना, कपास, जूट
  • बागवानी – आम, केला, संतरा, सेब, मसाले

भारतीय कृषि का आर्थिक महत्व

  1. रोजगार का प्रमुख स्रोत – लगभग 40% जनसंख्या आज भी कृषि पर निर्भर है।
  2. राष्ट्रीय आय में योगदान – कृषि का GDP में योगदान घटकर लगभग 18% रह गया है, लेकिन इसका सामाजिक महत्व अब भी बहुत अधिक है।
  3. खाद्य सुरक्षा – देश की आबादी को भोजन उपलब्ध कराती है।
  4. उद्योगों के लिए कच्चा माल – कपड़ा उद्योग को कपास, चीनी उद्योग को गन्ना और तेल उद्योग को तिलहन उपलब्ध कराती है।
  5. निर्यात में योगदान – चाय, मसाले, कपास और चावल भारत के प्रमुख कृषि निर्यात हैं।


भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याएँ

  1. भूमि का विखंडन – छोटी जोतों में आधुनिक तकनीक का उपयोग कठिन।
  2. सिंचाई की कमी – वर्षा आधारित खेती की अस्थिरता।
  3. तकनीकी पिछड़ापन – उन्नत बीज और मशीनों का सीमित उपयोग।
  4. मिट्टी का क्षरण और प्रदूषण – अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों से भूमि की उर्वरता घट रही है।
  5. बाजार और मूल्य की समस्या – किसानों को अपनी फसलों का उचित मूल्य नहीं मिलता।
  6. कर्ज का बोझ – साहूकारों और बैंकों से लिया गया ऋण चुकाना कठिन होता है।


सुधार और सरकारी पहल

  1. हरित क्रांति (Green Revolution) – उच्च उपज वाले बीज, उर्वरक और सिंचाई से गेहूँ और चावल का उत्पादन बढ़ा।
  2. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन – दलहन और तिलहन उत्पादन बढ़ाने की पहल।
  3. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना – फसलों को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा।
  4. किसान क्रेडिट कार्ड – सस्ती दरों पर ऋण उपलब्ध कराना।
  5. ई-नाम पोर्टल – कृषि उपज का ऑनलाइन व्यापार।
  6. जैविक और प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन।


निष्कर्ष

भारतीय कृषि का स्वरूप जीविका प्रधान और मानसून आधारित है, लेकिन धीरे-धीरे यह व्यावसायिक और आधुनिक कृषि की ओर बढ़ रही है। इसकी संरचना अत्यंत जटिल है, जिसमें छोटे किसानों की संख्या अधिक, भूमि का विखंडन, विविध फसलें और असमान सिंचाई व्यवस्था शामिल हैं।

भविष्य में भारतीय कृषि को टिकाऊ बनाने के लिए आवश्यक है कि हम आधुनिक तकनीक, बेहतर सिंचाई, बाजार सुधार और किसानों की आय में वृद्धि पर विशेष ध्यान दें। तभी भारत न केवल अपनी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर पाएगा, बल्कि वैश्विक कृषि शक्ति के रूप में भी स्थापित होगा।



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