जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभाव
परिचय
जलवायु परिवर्तन 21वीं सदी की सबसे बड़ी वैश्विक चुनौतियों में से एक है, जिसका प्रभाव पर्यावरण, मानव जीवन, अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी पर गहराई से पड़ रहा है। पृथ्वी के वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) की बढ़ती मात्रा और मानवीय गतिविधियाँ जलवायु असंतुलन का मुख्य कारण हैं। इसके परिणामस्वरूप तापमान में वृद्धि, वर्षा पैटर्न में बदलाव, समुद्र स्तर में वृद्धि और चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति बढ़ रही है।
जलवायु परिवर्तन के कारण
ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन
कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों का अत्यधिक उपयोग कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसों को वायुमंडल में बढ़ाता है।
वनों की कटाई
जंगल कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं। वनों की कटाई से यह क्षमता घटती है और वायुमंडल में GHGs की मात्रा बढ़ जाती है।
औद्योगीकरण और शहरीकरण
भारी उद्योग, यातायात और निर्माण कार्य बड़े पैमाने पर प्रदूषण फैलाते हैं और ऊर्जा की खपत बढ़ाते हैं।
कृषि पद्धतियाँ
अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों का उपयोग और पशुपालन से भी मीथेन एवं अन्य गैसों का उत्सर्जन होता है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
तापमान में वृद्धि
वैश्विक तापमान में निरंतर वृद्धि से हीटवेव, ग्लेशियर पिघलना और समुद्र स्तर में वृद्धि जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।
वर्षा पैटर्न में बदलाव
कहीं अत्यधिक वर्षा से बाढ़ की स्थिति बनती है, तो कहीं लंबे समय तक शुष्क मौसम से सूखा पड़ता है।
चरम मौसमी घटनाएँ
तूफान, चक्रवात, बर्फीले तूफान और जंगल की आग जैसी घटनाओं की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ रही है।
समुद्र स्तर में वृद्धि
ग्लेशियर पिघलने और समुद्री जल के फैलाव से तटीय क्षेत्रों में बाढ़ और कटाव का खतरा बढ़ रहा है।
जैव विविधता पर असर
पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव से कई वन्य प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर पहुँच रही हैं।
भारत पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
कृषि क्षेत्र
असमान वर्षा और तापमान परिवर्तन से फसल उत्पादन घट रहा है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर खतरा बढ़ रहा है।
स्वास्थ्य क्षेत्र
हीट स्ट्रोक, डेंगू, मलेरिया जैसी बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं।
जल संसाधन
ग्लेशियर पिघलने और असमान वर्षा से नदियों के प्रवाह में अस्थिरता आ रही है।
तटीय क्षेत्र
समुद्र स्तर बढ़ने से मुंबई, कोलकाता, चेन्नई जैसे शहरों में बाढ़ और तटीय कटाव की संभावना बढ़ रही है।
समाधान और निवारण उपाय
नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग
सौर, पवन और जल ऊर्जा जैसी स्वच्छ ऊर्जा को अपनाना।
वनों का संरक्षण और संवर्धन
अधिक से अधिक वृक्षारोपण और वनों की कटाई पर रोक।
ऊर्जा दक्षता
उद्योगों, भवनों और परिवहन में ऊर्जा बचत तकनीकों का उपयोग।
सतत कृषि पद्धतियाँ
जैविक खेती और जल-संरक्षण तकनीकों का प्रयोग।
जन-जागरूकता
लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और उससे बचाव के उपायों के बारे में शिक्षित करना।
निष्कर्ष
जलवायु परिवर्तन केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि वैश्विक अस्तित्व का प्रश्न है। इसके प्रभाव को कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग, नीतिगत सुधार, और जन-भागीदारी अनिवार्य है। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाली पीढ़ियों को गंभीर संकट का सामना करना पड़ेगा।
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