पृथ्वी की परतें (Layers of the Earth)
पृथ्वी एक ठोस ग्रह है, जिसकी आंतरिक संरचना को वैज्ञानिकों ने कई परतों में बाँटा है। हर परत की अपनी अलग संरचना, घनत्व, मोटाई और तापमान होता है। इन परतों को मुख्य रूप से चार प्रमुख स्तरों में विभाजित किया गया है:
1. भूपर्पटी (Crust)
- यह पृथ्वी की सबसे बाहरी परत है।
- इसकी मोटाई औसतन 30 से 60 किमी तक होती है।
यह दो प्रकार की होती है:
- महाद्वीपीय भूपर्पटी (Continental Crust) → मोटी, हल्की और मुख्यतः ग्रेनाइट से बनी।
- महासागरीय भूपर्पटी (Oceanic Crust) → पतली, घनी और मुख्यतः बेसाल्ट से बनी।
2. मैंटल (Mantle)
- भूपर्पटी के नीचे स्थित परत, जिसकी गहराई लगभग 2,900 किमी तक होती है।
- इसका संघटन मुख्यतः सिलिकेट खनिजों, लौह (Iron) और मैग्नीशियम (Magnesium) से होता है।
मैंटल को दो भागों में बाँटा गया है:
- ऊपरी मैंटल (Upper Mantle) → जहाँ से लावा निकलकर ज्वालामुखी बनाता है।
- निचला मैंटल (Lower Mantle) → यहाँ दबाव और तापमान बहुत अधिक होता है।
3. बाहरी कोर (Outer Core)
- गहराई लगभग 2,900 किमी से 5,100 किमी तक।
- यह परत तरल (Liquid) अवस्था में है।
- मुख्य रूप से लौह (Iron) और निकेल (Nickel) से बनी है।
- बाहरी कोर की तरल धारा पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field) उत्पन्न करती है।
4. आंतरिक कोर (Inner Core)
- यह पृथ्वी का सबसे भीतरी भाग है।
- गहराई लगभग 5,100 किमी से 6,371 किमी (पृथ्वी के केंद्र तक)।
- यह परत ठोस (Solid) है।
- इसका संघटन मुख्यतः लौह और निकेल से होता है।
- यहाँ का तापमान लगभग 5,000°C से 6,000°C तक होता है, जो सूर्य की सतह के बराबर है।
पृथ्वी की परतों का महत्व
- भूकंप और ज्वालामुखी → मैंटल और कोर की गतिविधियों से उत्पन्न होते हैं।
- खनिज और धातुएँ → भूपर्पटी और मैंटल से ही हमें सोना, चाँदी, लोहा, कोयला, तेल और गैस जैसी संपदा मिलती है।
- चुंबकीय क्षेत्र → बाहरी कोर की वजह से पृथ्वी पर जीवन सुरक्षित है क्योंकि यह सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाता है।
- प्लेट विवर्तनिकी → महाद्वीपों की गति, पर्वत निर्माण और महासागरीय संरचनाएँ इन्हीं परतों की वजह से होती हैं।
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