लोकपाल और लोकायुक्त
(Lokpal and Lokayukta)
परिचय( Introduction)
भारतीय लोकतंत्र में भ्रष्टाचार नियंत्रण और शासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 लागू किया गया। यह अधिनियम देश में लंबे समय तक चले जन आंदोलनों और नागरिक समाज के दबाव का परिणाम है।
📜 पृष्ठभूमि
- 1966 में संथानम समिति ने पहली बार लोकपाल की सिफारिश की।
- कई बार संसद में विधेयक लाया गया लेकिन पारित नहीं हो सका।
- 2011 का अन्ना हज़ारे आंदोलन (जनलोकपाल आंदोलन) ने इसे राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया।
- अंततः लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 पारित हुआ और 16 जनवरी 2014 से लागू हुआ।
⚖️ लोकपाल और लोकायुक्त की परिभाषा
- लोकपाल (Lokpal): केंद्र स्तर पर उच्च पदस्थ लोक सेवकों (प्रधानमंत्री, मंत्रियों, सांसदों और अधिकारियों) के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच करने वाली संस्था।
- लोकायुक्त (Lokayukta): राज्य स्तर पर मंत्रियों, विधायकों और अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार मामलों की जाँच करने वाली संस्था।
🏛️ प्रमुख प्रावधान (Lokpal and Lokayuktas Act, 2013)
1. संरचना
- लोकपाल में एक अध्यक्ष और अधिकतम 8 सदस्य (50% न्यायिक सदस्य अनिवार्य)।
- कुल सदस्यों में से 50% अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी, अल्पसंख्यक और महिलाएँ होनी चाहिए।
2. नियुक्ति
- नियुक्ति समिति:
- प्रधानमंत्री
- लोकसभा अध्यक्ष
- विपक्ष के नेता
- सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश या उनका नामित न्यायाधीश
- एक प्रतिष्ठित न्यायविद
3. कार्यक्षेत्र
- प्रधानमंत्री (कुछ अपवाद जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेशी संबंध, परमाणु मामले)।
- मंत्रिपरिषद, सांसद, नौकरशाही और केंद्र सरकार के कर्मचारी।
- NGOs और ट्रस्ट यदि सरकारी सहायता प्राप्त हो।
4. जाँच व्यवस्था
- जाँच CBI और CVC के माध्यम से।
- शिकायत मिलने के 60 दिन के भीतर प्राथमिक जाँच।
- आगे की कार्यवाही 6 महीने में पूरी होनी चाहिए।
📊 लोकपाल और लोकायुक्त की वर्तमान स्थिति (2025 तक)
लोकपाल (केंद्र स्तर पर)
- पहला लोकपाल जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष (2019 में नियुक्त)।
- वर्तमान (2025): न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर लोकपाल अध्यक्ष हैं।
- मुख्यालय – नई दिल्ली।
लोकायुक्त (राज्य स्तर पर)
- अधिकांश राज्यों में लोकायुक्त की स्थापना हो चुकी है।
- कुछ राज्यों (जैसे तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश) में अब भी प्रभावी ढाँचा पूर्ण रूप से लागू नहीं है।
- कर्नाटक और महाराष्ट्र में लोकायुक्त काफी सक्रिय माने जाते हैं।
✅ महत्व
- भ्रष्टाचार नियंत्रण का प्रभावी साधन।
- शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही।
- नागरिकों का लोकतंत्र में विश्वास बढ़ता है।
- जन आंदोलनों और नागरिक सहभागिता का परिणाम।
⚠️ चुनौतियाँ
- लोकपाल और लोकायुक्त की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न (सरकारी एजेंसियों पर निर्भरता)।
- CBI जैसी एजेंसियों का नियंत्रण सरकार के हाथों में।
- नियुक्ति प्रक्रिया में राजनीतिक हस्तक्षेप।
- शिकायतों के निस्तारण में विलंब।
- जनता में जागरूकता की कमी।
🌍 निष्कर्ष
लोकपाल और लोकायुक्त भारत में "भ्रष्टाचार विरोधी प्रहरी" हैं। हालाँकि, केवल कानून बनाने से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा। इसे प्रभावी बनाने के लिए संस्थाओं की स्वतंत्रता, संसाधनों की उपलब्धता और राजनीतिक इच्छाशक्ति आवश्यक है।
 
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