मौद्रिक नीति (Monetary Policy)

मौद्रिक नीति (Monetary Policy)


परिचय: मौद्रिक नीति क्या है?

मौद्रिक नीति (Monetary Policy) किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित और संतुलित करने का एक महत्वपूर्ण साधन है।
सरल शब्दों में, यह वह नीति है जिसके माध्यम से केंद्रीय बैंक (भारत में भारतीय रिज़र्व बैंक - RBI) देश में मुद्रा की आपूर्ति (Money Supply), ब्याज दरों (Interest Rates) और ऋण की उपलब्धता (Credit Availability) को नियंत्रित करता है।

इस नीति का प्रमुख उद्देश्य है —
👉 मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना,
👉 रोज़गार को बढ़ावा देना,
👉 आर्थिक स्थिरता बनाए रखना, और
👉 सतत आर्थिक विकास सुनिश्चित करना।

मौद्रिक नीति को आमतौर पर राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) के साथ मिलकर देखा जाता है। जहाँ राजकोषीय नीति सरकार द्वारा बनाई जाती है, वहीं मौद्रिक नीति केंद्रीय बैंक द्वारा संचालित की जाती है।


मौद्रिक नीति का महत्व (Importance of Monetary Policy)

मौद्रिक नीति का महत्व आधुनिक अर्थव्यवस्था में अत्यधिक है क्योंकि यह मुद्रा प्रवाह और ऋण व्यवस्था को नियंत्रित करती है।
इसके माध्यम से RBI यह तय करता है कि बाज़ार में कितनी धनराशि प्रवाहित होगी और कितनी बचाई जाएगी।

इसके प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं:

  1. मूल्य स्थिरता (Price Stability): मुद्रास्फीति और अपस्फीति दोनों ही अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक हैं। मौद्रिक नीति इनके बीच संतुलन बनाए रखती है।
  2. रोज़गार के अवसर: ब्याज दरों में कमी से निवेश बढ़ता है और रोजगार सृजन होता है।
  3. आर्थिक वृद्धि: निवेश और उपभोग को प्रोत्साहित करके उत्पादन में वृद्धि की जाती है।
  4. वित्तीय स्थिरता: बैंकों की तरलता और ऋण प्रणाली को मजबूत बनाया जाता है।
  5. भुगतान संतुलन: विदेशी मुद्रा की उपलब्धता और दर को नियंत्रित किया जाता है।


मौद्रिक नीति के प्रकार (Types of Monetary Policy)

मौद्रिक नीति को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया गया है:

1. विस्तारवादी मौद्रिक नीति (Expansionary Monetary Policy)

जब अर्थव्यवस्था में मंदी (Recession) आती है या बेरोजगारी बढ़ती है, तब केंद्रीय बैंक मुद्रा की आपूर्ति बढ़ाने के लिए इस नीति का प्रयोग करता है।

  • ब्याज दरें घटाई जाती हैं।
  • ऋण वितरण को आसान बनाया जाता है।
  • निवेश और उपभोग बढ़ता है।

इस नीति से आर्थिक गतिविधियों में तेजी आती है और रोजगार के अवसर बढ़ते हैं।

2. संकुचनात्मक मौद्रिक नीति (Contractionary Monetary Policy)

जब अर्थव्यवस्था में अधिक मुद्रास्फीति (High Inflation) होती है, तब केंद्रीय बैंक मुद्रा प्रवाह को घटाने की दिशा में कदम उठाता है।

  • ब्याज दरें बढ़ाई जाती हैं।
  • ऋण वितरण सीमित किया जाता है।
  • निवेश में कमी आती है।

इस नीति का उद्देश्य होता है — मुद्रास्फीति पर नियंत्रण और मूल्य स्थिरता बनाए रखना।


मौद्रिक नीति के उपकरण (Instruments of Monetary Policy)

RBI मौद्रिक नीति के तहत विभिन्न उपकरणों का प्रयोग करता है। ये उपकरण दो प्रकार के होते हैं — मात्रात्मक (Quantitative) और गुणात्मक (Qualitative)

1. मात्रात्मक उपकरण (Quantitative Tools)

(a) बैंक दर नीति (Bank Rate Policy):

जब RBI वाणिज्यिक बैंकों को दीर्घकालिक ऋण प्रदान करता है, तो उस पर जो ब्याज दर लगाई जाती है, उसे बैंक दर कहते हैं।

  • बैंक दर में वृद्धि → ऋण महंगा → मुद्रा आपूर्ति घटती है।
  • बैंक दर में कमी → ऋण सस्ता → मुद्रा आपूर्ति बढ़ती है।

(b) नकद आरक्षित अनुपात (CRR - Cash Reserve Ratio):

वाणिज्यिक बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का एक निश्चित प्रतिशत RBI के पास नकद के रूप में रखना पड़ता है।
CRR बढ़ाने से मुद्रा आपूर्ति घटती है, और घटाने से बढ़ती है।

(c) वैधानिक तरलता अनुपात (SLR - Statutory Liquidity Ratio):

बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का एक निश्चित हिस्सा तरल संपत्तियों (जैसे नकद, सोना, सरकारी प्रतिभूतियाँ) के रूप में रखना होता है।
SLR बढ़ाने से बैंकों की ऋण देने की क्षमता घटती है।

(d) खुले बाजार परिचालन (Open Market Operations):

RBI सरकारी प्रतिभूतियों (Government Securities) को खरीदता या बेचता है ताकि बाज़ार में मुद्रा प्रवाह को नियंत्रित किया जा सके।


2. गुणात्मक उपकरण (Qualitative Tools)

(a) ऋण का परिमार्जन (Credit Rationing):

RBI कुछ क्षेत्रों में ऋण देने की सीमा तय कर देता है ताकि मुद्रा का प्रवाह नियंत्रित रहे।

(b) नैतिक प्रोत्साहन (Moral Suasion):

RBI बैंकों को नैतिक रूप से यह समझाने की कोशिश करता है कि वे जिम्मेदार तरीके से ऋण दें।

(c) मार्जिन आवश्यकता (Margin Requirement):

RBI यह तय करता है कि किसी ऋण के बदले संपत्ति का कितना प्रतिशत गिरवी रखा जाएगा। इससे सट्टेबाज़ी पर नियंत्रण किया जा सकता है।


भारत में मौद्रिक नीति का विकास (Evolution of Monetary Policy in India)

भारत की मौद्रिक नीति का संचालन भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा किया जाता है, जिसकी स्थापना 1 अप्रैल 1935 को हुई थी।
RBI Act, 1934 के तहत RBI को मुद्रा और ऋण नीति नियंत्रित करने का अधिकार प्राप्त है।

1991 के बाद के सुधार (Post-Liberalization Reforms)

1991 के आर्थिक सुधारों के बाद RBI ने अपनी नीति में कई बदलाव किए —

  • ब्याज दरों को धीरे-धीरे उदारीकृत (Deregulated) किया गया।
  • बाजार आधारित उपकरणों का प्रयोग बढ़ाया गया।
  • मुद्रास्फीति लक्षित (Inflation Targeting) दृष्टिकोण अपनाया गया।

मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee - MPC)

2016 में मौद्रिक नीति समिति (MPC) का गठन किया गया।
इस समिति में कुल 6 सदस्य होते हैं — जिनमें से तीन RBI के और तीन केंद्र सरकार द्वारा नामित होते हैं।
MPC का प्रमुख कार्य है रेपो दर (Repo Rate) तय करना ताकि मुद्रास्फीति नियंत्रित रहे।


मौद्रिक नीति के प्रमुख दरें (Key Policy Rates)

  • रेपो दर (Repo Rate): वह दर जिस पर RBI बैंकों को अल्पकालिक ऋण देता है।
  • रिवर्स रेपो दर (Reverse Repo Rate): वह दर जिस पर RBI बैंकों से धन उधार लेता है।
  • मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF): वह सुविधा जिसके तहत बैंक RBI से आपातकालीन ऋण प्राप्त कर सकते हैं।
  • बैंक दर (Bank Rate): दीर्घकालिक ऋण पर ब्याज दर।
  • कैश रिज़र्व रेशियो (CRR) और SLR – बैंकिंग प्रणाली में तरलता को नियंत्रित करने के लिए।


मौद्रिक नीति और राजकोषीय नीति में अंतर (Difference between Monetary and Fiscal Policy)

आधार मौद्रिक नीति राजकोषीय नीति
निर्माणकर्ता भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) भारत सरकार
मुख्य उद्देश्य मुद्रा और ब्याज दर नियंत्रण राजस्व और व्यय का प्रबंधन
उपकरण रेपो दर, CRR, SLR कर, सब्सिडी, सार्वजनिक व्यय
प्रभाव क्षेत्र बैंकिंग एवं वित्तीय प्रणाली समग्र अर्थव्यवस्था
अवधि अल्पकालिक प्रभाव दीर्घकालिक प्रभाव

मौद्रिक नीति से संबंधित प्रमुख बिंदु (Important Points for Competitive Exams)

  1. RBI की स्थापना: 1935 में, RBI Act 1934 के तहत।
  2. मौद्रिक नीति समिति (MPC): 2016 में गठित।
  3. रेपो दर (Repo Rate): मौद्रिक नीति का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण।
  4. मुद्रास्फीति लक्ष्य (Inflation Target): वर्तमान में 4% ± 2% तय किया गया है।
  5. CRR और SLR: तरलता नियंत्रित करने वाले प्रमुख साधन।
  6. MPC के अध्यक्ष: RBI के गवर्नर।
  7. FRBM Act (2003): राजकोषीय अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए।
  8. मौद्रिक नीति समीक्षा: वर्ष में 6 बार की जाती है।
  9. विस्तारवादी नीति: मंदी के समय अपनाई जाती है।
  10. संकुचनात्मक नीति: मुद्रास्फीति नियंत्रण हेतु अपनाई जाती है।


निष्कर्ष: आर्थिक स्थिरता की रीढ़

मौद्रिक नीति किसी भी देश की आर्थिक व्यवस्था का वह स्तंभ है जो मुद्रा, ब्याज दर और ऋण प्रणाली को संतुलित रखता है।
भारत में RBI ने अपने प्रभावी संचालन और विवेकपूर्ण नीतियों से मुद्रास्फीति नियंत्रण, वित्तीय स्थिरता और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

एक सुदृढ़ और पारदर्शी मौद्रिक नीति न केवल निवेशकों का विश्वास बढ़ाती है बल्कि देश को सतत विकास (Sustainable Growth) की दिशा में अग्रसर करती है।
आर्थिक अस्थिरता के इस दौर में, संतुलित मौद्रिक नीति ही स्थायित्व और विकास का मार्ग प्रशस्त करती है।



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