भारत में पोषण(Nutrition in India)
महत्व, चुनौतियाँ और संभावनाएँ
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में पोषण (Nutrition) एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है। पोषण सीधे-सीधे स्वास्थ्य, शिक्षा, उत्पादकता और आर्थिक विकास से जुड़ा हुआ है। संतुलित पोषण न केवल व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक वृद्धि के लिए आवश्यक है, बल्कि यह समाज और राष्ट्र की प्रगति की आधारशिला भी है।
इस लेख में हम भारत में पोषण की वर्तमान स्थिति, महत्व, चुनौतियाँ और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
1. पोषण का महत्व
- स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधक क्षमता – संतुलित आहार से शरीर को आवश्यक विटामिन, प्रोटीन और खनिज मिलते हैं जो रोगों से बचाव करते हैं।
- शारीरिक और मानसिक विकास – बच्चों और किशोरों के लिए उचित पोषण उनके शारीरिक और मस्तिष्कीय विकास में सहायक है।
- आर्थिक उत्पादकता – स्वस्थ और पोषित व्यक्ति अधिक मेहनती और उत्पादक होते हैं।
- महिला स्वास्थ्य – गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए पोषण मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करता है।
2. भारत में पोषण की स्थिति
- कुपोषण की समस्या – ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 में भारत 121 देशों में 111वें स्थान पर है।
बच्चों में कुपोषण
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार:
35% से अधिक बच्चे अवरुद्ध वृद्धि (Stunting) से पीड़ित।- महिलाओं में पोषण की कमी – 57% महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित।
- मोटापा और जीवनशैली संबंधी बीमारियाँ – शहरी क्षेत्रों में असंतुलित आहार और जंक फूड की वजह से बढ़ता मोटापा।
3. पोषण से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ
- गरीबी और भूखमरी – बड़ी आबादी अभी भी पर्याप्त और पौष्टिक भोजन से वंचित।
- अशिक्षा और जागरूकता की कमी – ग्रामीण क्षेत्रों में संतुलित आहार के महत्व की जानकारी का अभाव।
- लिंग आधारित असमानता – घरों में महिलाओं और बेटियों को अक्सर कम पोषण मिलता है।
- स्वास्थ्य सेवाओं की कमी – एनीमिया, विटामिन की कमी और प्रोटीन की कमी का उपचार सीमित।
- खाद्य असुरक्षा – जलवायु परिवर्तन और कृषि संकट के कारण पौष्टिक आहार तक पहुँच में कठिनाई।
- शहरीकरण और जंक फूड संस्कृति – बच्चों और युवाओं में पैकेज्ड फूड और अस्वास्थ्यकर खानपान का प्रचलन।
4. भारत सरकार की पोषण संबंधी पहलें
- पोषण अभियान (Poshan Abhiyaan) – 2018 में शुरू हुआ, जिसका लक्ष्य कुपोषण को कम करना है।
- मिड-डे मील योजना – स्कूलों में बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना।
- एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) – आंगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से बच्चों और महिलाओं को पोषण।
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना – गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए वित्तीय और पोषण सहायता।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA 2013) – गरीब परिवारों को सब्सिडी वाला अनाज उपलब्ध कराना।
- अनुपूरक पोषण कार्यक्रम – किशोरियों और महिलाओं के लिए अतिरिक्त पोषण सहायता।
5. भविष्य की संभावनाएँ
- जागरूकता अभियान – संतुलित आहार और पोषण शिक्षा को स्कूली स्तर से बढ़ावा देना।
- कृषि विविधीकरण – मोटे अनाज (मिलेट्स), फल और सब्ज़ियों के उत्पादन को बढ़ावा देना।
- डिजिटल तकनीक का उपयोग – मोबाइल ऐप और डिजिटल प्लेटफॉर्म से पोषण संबंधी जानकारी पहुँचाना।
- सामुदायिक भागीदारी – आंगनवाड़ी, महिला समूह और NGO को सक्रिय करना।
- खाद्य प्रसंस्करण और फोर्टिफिकेशन – चावल, आटा, दूध और नमक में पोषण तत्वों को मिलाना।
- शहरी जीवनशैली में सुधार – जंक फूड पर नियंत्रण और स्वस्थ आहार की संस्कृति को बढ़ावा देना।
6. निष्कर्ष
भारत में पोषण की स्थिति मिश्रित है। एक ओर हम विश्व के सबसे बड़े अनाज उत्पादक देशों में शामिल हैं, दूसरी ओर कुपोषण और एनीमिया जैसी समस्याएँ व्यापक हैं।
यदि भारत आने वाले वर्षों में पोषण अभियान, जागरूकता, खाद्य सुरक्षा और कृषि विविधीकरण को और प्रभावी ढंग से लागू करता है, तो यह निश्चित ही कुपोषण मुक्त और स्वस्थ भारत बनाने की दिशा में बड़ी उपलब्धि हासिल कर सकता है।
0 टिप्पणियाँ