भारत में दलहन कृषि

भारत में दलहन कृषि

भारत में दलहन (Pulses) कृषि का विशेष महत्व है। दलहन न केवल प्रोटीन का प्रमुख स्रोत है बल्कि यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में भी सहायक होती है। भारतीय कृषि प्रणाली में दलहन फसलें अनिवार्य अंग हैं क्योंकि ये कम पानी में भी उगाई जा सकती हैं और किसानों को कम लागत पर अधिक लाभ प्रदान करती हैं।


दलहन का महत्व

  • पोषण मूल्य: दालें भारतीय आहार में प्रोटीन की पूर्ति करती हैं।
  • मिट्टी की उर्वरता: दलहन पौधों की जड़ों में राइजोबियम जीवाणु नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं।
  • आर्थिक योगदान: किसानों के लिए नकदी फसल का विकल्प।
  • पशु चारा: दाल की भूसी व पत्तियाँ पशुओं के लिए पौष्टिक चारा।
  • फसल चक्र: दलहन अन्य अनाजों के साथ फसल चक्र में संतुलन बनाती है।


दलहन उत्पादन की उपयुक्त परिस्थितियाँ

जलवायु

  • दलहन उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाती है।
  • उपयुक्त तापमान: 20°C से 30°C
  • वर्षा: 60–100 से.मी.
  • दलहन कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक होती है।

मिट्टी

  • हल्की दोमट और जलोढ़ मिट्टी दलहन के लिए सर्वश्रेष्ठ।
  • pH मान 6 से 7.5 आदर्श।


भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख दलहन फसलें

चना (Gram):

भारत का सबसे बड़ा दलहन उत्पादन।
प्रमुख राज्य: मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र।

अरहर/तूर (Pigeon Pea):

दाल और सांभर बनाने में उपयोगी।
प्रमुख राज्य: महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश।

मूंग (Green Gram):

पोषण से भरपूर और जल्दी पकने वाली।
प्रमुख राज्य: राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश।

उड़द (Black Gram):

इडली, डोसा और पापड़ के लिए उपयोगी।
प्रमुख राज्य: मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश।

मसूर (Lentil):

शीत ऋतु की फसल।
प्रमुख राज्य: उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार।

राजमा (Kidney Beans):

हिमालयी क्षेत्र और उत्तर भारत में अधिक।
प्रमुख राज्य: जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश।


भारत में दलहन उत्पादक क्षेत्र

  • मध्य प्रदेश: देश का सबसे बड़ा दलहन उत्पादक राज्य
  • महाराष्ट्र और राजस्थान: अरहर, चना और मूंग की प्रमुख खेती।
  • उत्तर प्रदेश और बिहार: चना और मसूर का उत्पादन।
  • कर्नाटक और आंध्र प्रदेश: अरहर और उड़द का मुख्य क्षेत्र।

भारत में दलहन उत्पादन की स्थिति

  • भारत विश्व का सबसे बड़ा दलहन उत्पादक और उपभोक्ता देश है।
  • उत्पादन: लगभग 25 मिलियन टन प्रति वर्ष
  • भारत कुल विश्व दलहन उत्पादन का 25–28% प्रदान करता है।
  • चना अकेले कुल उत्पादन का लगभग 40%


दलहन कृषि की पद्धति

  • भूमि की हल्की जुताई पर्याप्त।
  • कम सिंचाई की आवश्यकता (2–3 बार)।
  • जैविक खाद और गोबर खाद से अच्छी उपज।
  • फसल चक्र में गेहूँ, धान और गन्ने के साथ मिश्रित खेती।


दलहन कृषि से जुड़ी चुनौतियाँ

  1. कम उत्पादकता – अन्य देशों की तुलना में भारत में औसत उपज कम।
  2. कीट और रोग – पत्ती झुलसा, पाउडरी मिल्ड्यू और फली छेदक।
  3. सिंचाई की कमी – अधिकांश दलहन वर्षा आधारित।
  4. भंडारण की समस्या – कीटों और नमी से दालें खराब हो जाती हैं।
  5. किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का लाभ नहीं मिल पाता।


नवीन प्रवृत्तियाँ और सुधार

  • उन्नत बीज किस्मों का विकास (जैसे पूसा चना, पूसा मूंग)।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) – Pulses के तहत उत्पादन में वृद्धि।
  • माइक्रो-इरिगेशन तकनीक से सिंचाई की सुविधा।
  • संकर बीज और रोग प्रतिरोधक किस्में।
  • फसल विविधिकरण के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाना।


निष्कर्ष

भारत में दलहन कृषि का महत्व केवल आहार प्रोटीन की दृष्टि से ही नहीं बल्कि मिट्टी की उर्वरता, कृषि स्थिरता और किसानों की आय बढ़ाने में भी है। यदि आधुनिक तकनीक, सिंचाई सुविधाएँ और बाजार समर्थन उपलब्ध हो तो भारत न केवल अपनी घरेलू आवश्यकता पूरी कर सकता है बल्कि दलहन निर्यातक देश भी बन सकता है।



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