वर्षा और जलवायु में उनका प्रभाव

 वर्षा और जलवायु में उनका प्रभाव

(Rain and Effect on Climate)

 परिचय(Introduction)

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में वर्षा (Rainfall) और जलवायु (Climate) का गहरा संबंध है। वर्षा केवल जल संसाधनों की उपलब्धता ही नहीं बल्कि कृषि उत्पादन, जैव विविधता, पर्यावरण और मानव जीवन पर भी निर्णायक प्रभाव डालती है।

इस लेख में हम वर्षा के प्रकार, उसकी असमानता, जलवायु पर उसका प्रभाव तथा सामाजिक-आर्थिक पक्ष का विस्तार से अध्ययन करेंगे।


1. वर्षा क्या है?

वायुमंडल में जलवाष्प के संघनन से जब जल की बूंदें, हिमकण या ओले पृथ्वी की सतह पर गिरते हैं तो उसे वर्षा कहते हैं। यह मुख्यतः सूर्य की ऊष्मा, वायुमंडलीय दाब और पवन तंत्र पर निर्भर करती है।


2. वर्षा के प्रमुख प्रकार

2.1. संवहनात्मक वर्षा (Convectional Rainfall)

  • अधिक ताप से भूमि की सतह गर्म होती है।
  • गर्म हवा ऊपर उठती है और ठंडी होकर संघनित हो जाती है।
  • यह वर्षा मुख्यतः भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में होती है।

2.2. पर्वतीय वर्षा (Orographic Rainfall)

  • जब आर्द्र पवन किसी पर्वत से टकराती है तो ऊपर उठकर ठंडी हो जाती है।
  • पवन की एक ओर अधिक वर्षा होती है जबकि दूसरी ओर वर्षाछाया क्षेत्र बनता है।

2.3. चक्रवाती वर्षा (Cyclonic Rainfall)

  • वायुदाब में अंतर के कारण चक्रवात का निर्माण होता है।
  • चक्रवातीय पवनों के टकराव से वर्षा होती है।
  • भारत में यह वर्षा विशेषकर पूर्वी तटीय क्षेत्रों में अधिक होती है।


3. भारत में वर्षा की विशेषताएँ

  • भारत की जलवायु मुख्यतः मानसून पर आधारित है।
  • दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून से सितंबर) से लगभग 75% वर्षा होती है।
  • देश में वर्षा का वितरण अत्यंत असमान है।

    मेघालय का चेरापूंजी और मौसिनराम क्षेत्र – अत्यधिक वर्षा
  • राजस्थान का थार मरुस्थल – अत्यल्प वर्षा

4. वर्षा का जलवायु पर प्रभाव

4.1. तापमान और आर्द्रता

  • अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में तापमान संतुलित और आर्द्रता अधिक रहती है।
  • शुष्क क्षेत्रों में तापमान में अत्यधिक उतार-चढ़ाव और आर्द्रता न्यूनतम।

4.2. पवन प्रणाली

  • वर्षा पवनों की दिशा और प्रवाह को प्रभावित करती है।
  • मानसून पवनें वर्षा की मात्रा तय करती हैं।

4.3. कृषि और वनस्पति

  • वर्षा कृषि की रीढ़ है।
  • अच्छी वर्षा से धान, गन्ना, चाय जैसी फसलें समृद्ध होती हैं।
  • कम वर्षा वाले क्षेत्रों में बाजरा, ज्वार, मूंगफली जैसी शुष्क फसलें।

वनस्पति का स्वरूप भी वर्षा पर निर्भर करता है –

  • अधिक वर्षा – घने जंगल
  • कम वर्षा – झाड़ियाँ और मरुस्थलीय वनस्पति

4.4. नदियों और भू-आकृति पर प्रभाव

  • वर्षा से नदियाँ और झीलें जल से भर जाती हैं।
  • अधिक वर्षा से बाढ़ और अपरदन की समस्या।
  • कम वर्षा से सूखा और जल संकट।


5. असमान वर्षा और उसकी चुनौतियाँ

  • अत्यधिक वर्षा – बाढ़, भूस्खलन, फसल नष्ट।
  • अल्प वर्षा – सूखा, अकाल, जल संकट।
  • अनियमित वर्षा – कृषि उत्पादन प्रभावित, किसानों की आर्थिक स्थिति कमजोर।


6. जलवायु परिवर्तन और वर्षा

  • वैश्विक तापन (Global Warming) के कारण वर्षा के पैटर्न में बदलाव।
  • कहीं अत्यधिक वर्षा तो कहीं लंबे समय तक सूखा।
  • मानसून की अनिश्चितता से कृषि और जल संसाधन पर गहरा असर।
  • हिमालयी क्षेत्रों में हिमनदों के पिघलने से जल प्रवाह असंतुलित।


7. वर्षा और सामाजिक-आर्थिक प्रभाव

  • कृषि पर निर्भरता – भारत की लगभग 60% कृषि मानसून वर्षा पर निर्भर।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था – ग्रामीण रोजगार, आय और खाद्य सुरक्षा वर्षा से प्रभावित।
  • जल संसाधन प्रबंधन – पेयजल, सिंचाई और औद्योगिक उपयोग के लिए वर्षा आवश्यक।
  • आपदाएँ – अनियमित वर्षा से बाढ़ और सूखा जैसी आपदाएँ।


8. वर्षा और जलवायु से निपटने के उपाय

  • वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting)
  • सिंचाई के आधुनिक साधन – ड्रिप और स्प्रिंकलर।
  • फसल विविधीकरण – शुष्क क्षेत्रों में उपयुक्त फसलें।
  • वन संरक्षण और वृक्षारोपण
  • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए वैश्विक सहयोग।


निष्कर्ष

वर्षा और जलवायु का संबंध अत्यंत गहरा है। वर्षा केवल जल चक्र का हिस्सा ही नहीं बल्कि कृषि उत्पादन, पर्यावरण संतुलन और मानव जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करती है। भारत जैसे देश में जहाँ मानसून जीवनरेखा है, वहाँ वर्षा की अनियमितता बड़ी चुनौती बन सकती है।

इसलिए हमें सतत जल प्रबंधन, वर्षा जल संचयन, वृक्षारोपण और जलवायु परिवर्तन की रोकथाम की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ