राज्यसभा चुनाव(Rajyasabha Election)
एक गहन विश्लेषण
भारतीय संसद दो सदनों से मिलकर बनी है – लोकसभा (निचला सदन) और राज्यसभा (उच्च सदन)। लोकसभा को जहाँ जनता का सदन कहा जाता है, वहीं राज्यसभा को राज्यों का प्रतिनिधि सदन माना जाता है। राज्यसभा भारत की संघीय संरचना को मजबूत बनाती है और इसमें राज्यों को विशेष महत्व दिया गया है। राज्यसभा के चुनावों की प्रक्रिया लोकसभा से बिल्कुल भिन्न है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि राज्यसभा चुनाव कैसे होते हैं, इसमें कौन भाग लेता है, मतदान की प्रक्रिया क्या है और इससे जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं।
प्रस्तावना
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 80 से 89 तक राज्यसभा से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख करता है। राज्यसभा एक स्थायी सदन है, जिसे कभी भंग नहीं किया जा सकता। इसके सदस्य प्रत्यक्ष चुनाव से नहीं चुने जाते, बल्कि विशेष निर्वाचन प्रणाली के माध्यम से उनका चुनाव होता है।
राज्यसभा की संरचना
- राज्यसभा में कुल 250 सदस्यों की व्यवस्था संविधान में की गई थी, लेकिन वर्तमान में इसकी अधिकतम संख्या 245 है।
- इनमें से 233 सदस्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की विधानसभाओं द्वारा चुने जाते हैं।
- शेष 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाते हैं, जो कला, साहित्य, विज्ञान और समाजसेवा के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान रखते हैं।
राज्यसभा चुनाव की पात्रता
राज्यसभा सदस्य बनने के लिए संविधान ने निम्नलिखित योग्यताएँ निर्धारित की हैं –
- उम्मीदवार भारत का नागरिक होना चाहिए।
- उसकी आयु कम से कम 30 वर्ष होनी चाहिए।
- वह संसद का सदस्य बनने की अन्य योग्यताएँ रखता हो।
- वह किसी लाभ के पद पर आसीन न हो।
राज्यसभा चुनाव की प्रक्रिया
1. निर्वाचन मंडल
राज्यसभा चुनाव में जनता प्रत्यक्ष भाग नहीं लेती। इसके लिए निर्वाचक मंडल (Electoral College) होता है, जिसमें शामिल होते हैं –
- राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।
- केंद्रशासित प्रदेशों (दिल्ली और पुडुचेरी) की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।
2. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली
राज्यसभा चुनाव में समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation System) और एकल हस्तांतरणीय मत (Single Transferable Vote) पद्धति का उपयोग किया जाता है।
- प्रत्येक विधायक अपने मतपत्र में उम्मीदवारों की वरीयता अंकित करता है।
- यदि किसी उम्मीदवार को जीत के लिए आवश्यक मत मिल जाते हैं, तो वह निर्वाचित हो जाता है।
- यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि विधानसभा में बहुमत दल के साथ-साथ अल्पसंख्यक दलों को भी राज्यसभा में प्रतिनिधित्व मिले।
3. सीटों का वितरण
राज्यसभा में सीटों का वितरण प्रत्येक राज्य की जनसंख्या के अनुसार किया जाता है।
- उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 31 सीटें हैं।
- वहीं छोटे राज्यों जैसे सिक्किम, गोवा आदि से केवल 1-1 सदस्य चुना जाता है।
4. कार्यकाल
- राज्यसभा सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है।
- हर दो वर्ष बाद लगभग एक-तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं और उनकी जगह नए सदस्य चुने जाते हैं।
- इस प्रकार राज्यसभा की निरंतरता बनी रहती है।
राज्यसभा चुनाव का महत्व
- राज्यों की आवाज़ – राज्यसभा संघीय ढाँचे को मजबूत करती है और राज्यों को केंद्र की नीतियों में भागीदारी देती है।
- विशेषज्ञता का योगदान – यहाँ अनुभवी राजनेताओं, बुद्धिजीवियों और विशेषज्ञों को प्रतिनिधित्व मिलता है।
- लोकसभा पर नियंत्रण – राज्यसभा लोकसभा द्वारा पारित विधेयकों की जाँच-पड़ताल करती है और उस पर विचार-विमर्श करती है।
- स्थायित्व – लोकसभा भंग हो सकती है, पर राज्यसभा हमेशा बनी रहती है, जिससे लोकतंत्र में निरंतरता बनी रहती है।
राज्यसभा चुनाव से जुड़ी चुनौतियाँ
- पार्टी व्हिप और दलगत राजनीति – राज्यसभा चुनाव में अक्सर विधायकों को पार्टी लाइन पर वोट डालने के लिए बाध्य किया जाता है। इससे स्वतंत्र निर्णय की संभावना कम हो जाती है।
- धनबल और क्रॉस वोटिंग – कुछ मामलों में चुनावों में धनबल का प्रयोग और क्रॉस वोटिंग की शिकायतें सामने आती हैं।
- अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली – जनता की सीधी भागीदारी न होने से कई बार यह आरोप लगता है कि राज्यसभा पूरी तरह जनप्रतिनिधित्व नहीं करती।
- राजनीतिक समीकरण – राज्यसभा चुनावों में राजनीतिक दल गठबंधन और रणनीति के आधार पर उम्मीदवारों को भेजते हैं, जिससे वास्तविक जनभावना कई बार परिलक्षित नहीं होती।
सुधार की संभावनाएँ
- अधिक पारदर्शिता – मतदान प्रक्रिया और धनबल पर नियंत्रण के लिए कड़े नियम लागू किए जाएँ।
- जनभागीदारी बढ़ाना – राज्यसभा चुनाव प्रणाली पर बहस हो सकती है कि जनता की प्रत्यक्ष भागीदारी कैसे बढ़ाई जाए।
- दल-बदल पर रोक – क्रॉस वोटिंग और दल-बदल पर कठोर दंड प्रावधान लागू हों।
- विशेषज्ञों की भागीदारी – यह सुनिश्चित किया जाए कि राज्यसभा में वास्तव में योग्य और विशेषज्ञ लोग ही पहुँचें।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
- राज्यसभा का पहला गठन 1952 में हुआ था।
- भारत के कई प्रधानमंत्री, जैसे इंदिरा गांधी, मनमोहन सिंह और एच. डी. देवगौड़ा राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं।
- राज्यसभा में कई बार सरकार की नीतियों को गहन समीक्षा के बाद संशोधित किया गया, जिससे इसकी प्रासंगिकता और शक्ति सिद्ध होती है।
निष्कर्ष
राज्यसभा चुनाव भारतीय लोकतंत्र की उस अनूठी प्रक्रिया का हिस्सा है, जो संघीय ढाँचे को मजबूती प्रदान करती है। यह सदन न केवल राज्यों की भागीदारी सुनिश्चित करता है बल्कि संसद को संतुलित और जिम्मेदार भी बनाता है। यद्यपि इसमें धनबल, क्रॉस वोटिंग और राजनीतिक समीकरण जैसी चुनौतियाँ हैं, लेकिन उचित सुधारों से इसे और अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाया जा सकता है।
हम कह सकते हैं कि राज्यसभा चुनाव भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली की रीढ़ की हड्डी हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि भारत केवल एक केंद्रीकृत शासन न होकर एक सच्चा संघीय राष्ट्र बना रहे।
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