राज्यपाल के कार्य और शक्तियाँ
भारत के प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल (Governor) होता है, जो राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है। राज्यपाल की स्थिति राज्यों में वही है, जो राष्ट्रपति की स्थिति केंद्र में होती है। संविधान के अनुच्छेद 153 से 162 तक राज्यपाल से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं। राज्यपाल राज्य में कार्यपालिका का मुखिया है और उसका कार्य मुख्यतः संवैधानिक मर्यादाओं के भीतर रहकर प्रशासन को संचालित करना होता है।
राज्यपाल की नियुक्ति और कार्यकाल
नियुक्ति: भारत के राष्ट्रपति द्वारा।कार्यकाल: सामान्यतः 5 वर्ष, किंतु राष्ट्रपति कभी भी पद से हटा सकते हैं।
आयु कम से कम 35 वर्ष।
राज्यपाल के कार्य और शक्तियाँ
1. कार्यपालिका संबंधी शक्तियाँ
- राज्यपाल राज्य का कार्यपालिका प्रमुख होता है।
- मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
- राज्य सरकार मंत्रिपरिषद के सलाह पर कार्य करती है।
- राज्य के महाधिवक्ता, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष/सदस्यों की नियुक्ति करता है।
- राज्यपाल राज्य में शांति, स्थिरता और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कार्यपालिका पर निगरानी रखता है।
2. विधायी शक्तियाँ
- राज्य विधानमंडल का सत्र बुलाना और स्थगित करना।
- विधानसभा को भंग करना।
- राज्यपाल अपने अभिभाषण से विधानसभा का पहला सत्र प्रारंभ करते हैं।
- किसी विधेयक को अपनी मंजूरी देना आवश्यक होता है ताकि वह कानून बन सके।
- राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति हेतु आरक्षित कर सकता है।
- अध्यादेश जारी करने का अधिकार (अनुच्छेद 213) जब विधानसभा सत्र में न हो।
3. वित्तीय शक्तियाँ
- राज्य के बजट को विधानसभा में प्रस्तुत करना राज्यपाल के नाम से होता है।
- राज्य में कोई भी धन विधेयक उनकी अनुमति के बिना प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
- वे राज्य के समेकित कोष और आकस्मिक कोष पर नियंत्रण रखते हैं।
4. न्यायिक शक्तियाँ
- राज्यपाल को दंड माफी, दंड स्थगन, दंड लघुकरण और दंड परिवर्तन करने की शक्ति है।
- मृत्युदंड के मामलों को छोड़कर, वे अन्य मामलों में सजा कम कर सकते हैं या स्थगित कर सकते हैं।
5. आपातकालीन शक्तियाँ
- यदि राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाए, तो राज्यपाल राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजते हैं।
- इस आधार पर राष्ट्रपति राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकते हैं (अनुच्छेद 356)।
- राज्यपाल राज्य में आपातकालीन स्थिति में केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं।
राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ
- जब कोई स्पष्ट बहुमत न हो, तब मुख्यमंत्री की नियुक्ति करना।
- विधानसभा को भंग करने का निर्णय लेना।
- राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजना कि राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है।
- किसी विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति हेतु आरक्षित करना।
राज्यपाल की भूमिका और महत्व
राज्यपाल राज्य और केंद्र सरकार के बीच संवैधानिक सेतु के रूप में कार्य करता है। वह राज्य की कार्यपालिका का प्रमुख होते हुए भी वास्तविक सत्ता मंत्रिपरिषद के पास रहती है। राज्यपाल का मुख्य कार्य संविधान के प्रावधानों के अनुरूप राज्य की शासन प्रणाली को संचालित करना और राज्य तथा केंद्र के बीच समन्वय स्थापित करना है।
निष्कर्ष
भारत के संघीय ढांचे में राज्यपाल की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। यद्यपि वास्तविक कार्यकारी अधिकार मंत्रिपरिषद के पास होते हैं, फिर भी राज्यपाल राज्य में संविधान का संरक्षक और कार्यपालिका का प्रमुख होते हैं। उनकी शक्तियाँ और कार्यभार भारतीय संघीय प्रणाली को संतुलित एवं व्यवस्थित बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।
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