लाल मृदा(Red Soil)

लाल मृदा(Red Soil)

निर्माण, विशेषताएँ और कृषि महत्व

परिचय

लाल मृदा भारत की एक प्रमुख मृदा श्रेणी है, जो अपने विशिष्ट लाल रंग और खनिज संरचना के कारण पहचानी जाती है। इसका लाल रंग लौह ऑक्साइड की अधिकता के कारण होता है। यह मृदा भारत के शुष्क से अर्द्ध-शुष्क और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैली हुई है और इसकी कृषि क्षमता सही प्रबंधन से अत्यधिक बढ़ाई जा सकती है।


लाल मृदा का निर्माण

भूवैज्ञानिक उत्पत्ति

लाल मृदा का निर्माण ग्रेनाइट और ग्नाइस जैसी चट्टानों के अपक्षय से हुआ है। लंबे समय तक मौसम के प्रभाव और रासायनिक अपक्षय के कारण इसमें लौह की सांद्रता बढ़ती है, जिससे इसका रंग गहरा लाल हो जाता है।

जलवायु प्रभाव

यह मृदा उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में पाई जाती है, जहाँ मध्यम से कम वर्षा होती है।


लाल मृदा की विशेषताएँ

रंग और बनावट

  • लाल, लाल-पीला या भूरे रंग का मिश्रण
  • बनावट में यह रेतीली से लेकर चिकनी दोमट तक हो सकती है

खनिज संरचना

  • लौह ऑक्साइड की अधिकता
  • पोटाश, फास्फोरस और नाइट्रोजन की कमी
  • कार्बनिक पदार्थ कम मात्रा में

जल धारण क्षमता

लाल मृदा की जल धारण क्षमता मध्यम होती है, लेकिन अधिक ढलान वाले क्षेत्रों में पानी का बहाव तेज़ होने से नमी जल्दी खो सकती है।


भारत में लाल मृदा का वितरण

प्रमुख क्षेत्र

  • तमिलनाडु
  • आंध्र प्रदेश
  • कर्नाटक
  • ओडिशा
  • छत्तीसगढ़
  • झारखंड
  • मध्य प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी हिस्से
  • महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र

विशेष रूप से दक्षिणी पठारी क्षेत्र और पूर्वी घाट में इसका अधिक प्रसार है।


कृषि में लाल मृदा का महत्व

उपयुक्त फसलें

सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन के साथ लाल मृदा में निम्न फसलें उगाई जाती हैं:

  • मूंगफली
  • बाजरा
  • ज्वार
  • मक्का
  • दालें
  • कपास
  • आलू
  • कुछ फलों जैसे आम और अमरूद

बागवानी में उपयोग

लाल मृदा में अंगूर, संतरा, अनार जैसी बागवानी फसलें भी सफलतापूर्वक उगाई जाती हैं।


लाल मृदा की समस्याएँ

पोषक तत्वों की कमी

इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और कार्बनिक पदार्थ की कमी होती है, जिससे फसल उत्पादकता घट सकती है।

क्षरण की समस्या

ढलान वाले क्षेत्रों में जल बहाव के कारण मृदा क्षरण गंभीर समस्या है।

कम नमी धारण क्षमता

सूखे मौसम में नमी तेजी से घट जाती है, जिससे फसलें प्रभावित होती हैं।


लाल मृदा का संरक्षण और सुधार

जैविक खाद और उर्वरक का प्रयोग

गोबर की खाद, हरी खाद और कम्पोस्ट डालने से इसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है।

सिंचाई प्रबंधन

ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीक से नमी को लंबे समय तक बनाए रखा जा सकता है।

मृदा संरक्षण तकनीक

कॉनटूर बंडिंग, टेरेस फार्मिंग और घास की पट्टियों का उपयोग मृदा क्षरण रोकने में सहायक है।


निष्कर्ष

लाल मृदा भारत की कृषि में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। सही सिंचाई, उर्वरक प्रबंधन और मृदा संरक्षण से इसकी उत्पादकता को अत्यधिक बढ़ाया जा सकता है। यह मृदा, अपने रंग और विशेषताओं के कारण, भारतीय भौगोलिक विविधता की एक महत्वपूर्ण पहचान है।



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