शोषण के विरुद्ध अधिकार

शोषण के विरुद्ध अधिकार 

(Right against Exploitation)

भारतीय संविधान के भाग–III (अनुच्छेद 23 और 24) में नागरिकों को शोषण के विरुद्ध अधिकार प्रदान किया गया है। इसका उद्देश्य समाज में किसी भी प्रकार के अन्याय, शोषण और अमानवीय प्रथाओं को समाप्त करना है। यह अधिकार कमजोर, निर्धन और वंचित वर्गों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत संवैधानिक ढाल है।


अनुच्छेद 23 – मानव तस्करी, बंधुआ मज़दूरी और जबरन श्रम का निषेध

  • मानव तस्करी (Human Trafficking), वेश्यावृत्ति, बंधुआ मज़दूरी (Bonded Labour) और किसी भी प्रकार के जबरन श्रम (Forced Labour) पर पूर्ण प्रतिबंध।
  • किसी को भी उसकी इच्छा के विरुद्ध काम करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
  • राज्य को यह अधिकार है कि वह इन अपराधों को रोकने के लिए कठोर कानून बना सके।
  • बंधुआ मज़दूरी उन्मूलन अधिनियम, 1976 इसी अनुच्छेद को लागू करने के लिए बनाया गया।

👉 उदाहरण: अगर किसी मजदूर को अत्यधिक ब्याज वाले कर्ज के कारण जबरन काम पर लगाया जाता है तो यह अनुच्छेद 23 का उल्लंघन माना जाएगा।


अनुच्छेद 24 – बाल श्रम का निषेध

  • 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी कारखाने, खदान, खतरनाक उद्योग या जोखिमपूर्ण कार्यस्थल पर रोजगार देने की मनाही।
  • बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा सुनिश्चित करना।
  • शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21A) भी इस अनुच्छेद से जुड़ा हुआ है, क्योंकि शिक्षा प्राप्त करना बाल श्रम के स्थान पर प्राथमिकता है।
  • बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 तथा इसके बाद के संशोधनों ने इस प्रावधान को और सशक्त बनाया।

👉 उदाहरण: किसी भी ईंट-भट्ठे, आतिशबाज़ी कारखाने या खदान में बच्चों का काम करना असंवैधानिक है।


शोषण के विरुद्ध अधिकार का महत्व

  1. यह अधिकार समाज से अमानवीय प्रथाओं और जबरन श्रम को समाप्त करता है।
  2. गरीब और कमजोर वर्गों की सुरक्षा करता है।
  3. बच्चों को शिक्षा और सुरक्षित बचपन का अवसर प्रदान करता है।
  4. समाज में मानव गरिमा और समानता की रक्षा करता है।


निष्कर्ष

शोषण के विरुद्ध अधिकार भारतीय लोकतंत्र का ऐसा प्रावधान है जो यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों के साथ अमानवीय व्यवहार न हो और उन्हें जबरन श्रम या शोषण का शिकार न बनाया जाए। यह अधिकार समाज को न्यायपूर्ण और मानवीय बनाने की दिशा में एक मजबूत आधार प्रदान करता है।


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