समानता का अधिकार

समानता का अधिकार (Right to Equality)

भारतीय संविधान के भाग–III में दिए गए मूल अधिकारों में से सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है समानता का अधिकार। यह नागरिकों को किसी भी प्रकार के भेदभाव से मुक्त रखता है और उन्हें कानून के समक्ष बराबरी का दर्जा देता है। इसका उल्लेख अनुच्छेद 14 से 18 में किया गया है।


अनुच्छेद 14 – कानून के समक्ष समानता (Equality before Law)

  • प्रत्येक व्यक्ति कानून की दृष्टि में समान है।
  • किसी को भी विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होगा।
  • राज्य किसी के साथ भेदभाव नहीं करेगा।
  • यह अनुच्छेद Rule of Law (कानून का शासन) की गारंटी देता है।


अनुच्छेद 15 – भेदभाव का निषेध (Prohibition of Discrimination)

  • राज्य किसी भी नागरिक के साथ केवल धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान या नस्ल के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।
  • सार्वजनिक स्थानों (कुएँ, तालाब, सड़क, सार्वजनिक पार्क आदि) के उपयोग में सभी को समान अधिकार।
  • आरक्षण की व्यवस्था – राज्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष प्रावधान बना सकता है।
  • 103वें संविधान संशोधन (2019) द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को भी आरक्षण का लाभ दिया गया।


अनुच्छेद 16 – सार्वजनिक रोजगार में समानता (Equality of Opportunity in Public Employment)

  • सरकारी नौकरियों में सभी नागरिकों को समान अवसर।
  • धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव निषिद्ध।
  • राज्य कमजोर वर्गों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण प्रदान कर सकता है।
  • महिलाएँ और विकलांगों के लिए भी विशेष प्रावधान किए जा सकते हैं।


अनुच्छेद 17 – अस्पृश्यता का अंत (Abolition of Untouchability)

  • अस्पृश्यता को समाप्त किया गया।
  • किसी को भी छूने या उसके साथ मेलजोल के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।
  • इसका उल्लंघन करने वालों को दंड दिया जाएगा।
  • अस्पृश्यता अपराध अधिनियम, 1955 (बाद में नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम) इसी प्रावधान को लागू करने के लिए बनाया गया।


अनुच्छेद 18 – उपाधियों का अंत (Abolition of Titles)

  • भारत में किसी भी नागरिक को राजा, महाराज, सर, खान बहादुर जैसी उपाधियाँ नहीं दी जाएँगी।
  • राज्य किसी भी प्रकार की उपाधि प्रदान नहीं करेगा।
  • केवल शैक्षणिक और सैन्य उपाधियाँ मान्य होंगी।
  • भारत रत्न, पद्म पुरस्कार जैसी उपाधियाँ सम्मान मानी जाती हैं, न कि विशेषाधिकार।


समानता के अधिकार का महत्व

  1. समाज में भेदभाव रहित वातावरण सुनिश्चित करता है।
  2. नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता और गरिमा प्रदान करता है।
  3. लोकतांत्रिक व्यवस्था की मूल आत्मा को मजबूत करता है।
  4. कमजोर वर्गों को समान अवसर दिलाने के लिए आधार प्रदान करता है।


निष्कर्ष

समानता का अधिकार भारतीय लोकतंत्र का सबसे बुनियादी और महत्वपूर्ण आधार है। यह नागरिकों को एक समान दर्जा देता है और सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति धर्म, जाति, लिंग, भाषा या जन्मस्थान के आधार पर वंचित न रहे।


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