गोल मेज सम्मेलन( Round Table Conference)
भारत के स्वतंत्रता संग्राम की निर्णायक वार्ताएँ
गोल मेज सम्मेलन (Round Table Conferences) ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत के भविष्य के शासन को लेकर आयोजित तीन महत्वपूर्ण बैठकें थीं, जिनका आयोजन लंदन में 1930 से 1932 के बीच किया गया। इन सम्मेलनों का उद्देश्य भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा करना था और भारतीय नेताओं को ब्रिटिश संसद के साथ संवाद के लिए आमंत्रित करना था।
🏛️ गोल मेज सम्मेलनों की पृष्ठभूमि
ब्रिटिश हुकूमत द्वारा 1930 ई. में साइमन कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित की गई, जिसने भारत के राजनीतिक दलों को असंतोष से भर दिया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इसका बहिष्कार किया और नमक सत्याग्रह जैसे आंदोलनों के ज़रिए अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आवाज़ उठाई। इसी पृष्ठभूमि में ब्रिटिश सरकार ने भारत के राजनीतिक दलों और समुदायों को संवाद में शामिल करने के लिए गोल मेज सम्मेलनों का आयोजन किया।
📝 पहला गोल मेज सम्मेलन (नवंबर 1930 - जनवरी 1931)
🔹 स्थान: लंदन
🔹 अध्यक्ष: ब्रिटिश प्रधानमंत्री रामसे मैकडोनाल्ड
🔹 प्रतिभागी: लगभग 89 प्रतिनिधि, जिनमें से 16 ब्रिटिश, 16 रियासतों के, और 57 भारतीय विभिन्न राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक समूहों से थे।
कांग्रेस ने भाग नहीं लिया, क्योंकि उस समय नमक सत्याग्रह चल रहा था और इसके नेता जेल में थे।
✅ प्रमुख विषय:
- भारत के लिए संघीय ढांचे की संभावना
- सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व
- अल्पसंख्यकों के अधिकार
❌ परिणाम:
कोई ठोस निर्णय नहीं हो सका क्योंकि सबसे बड़ा राजनीतिक दल, कांग्रेस, सम्मेलन से अनुपस्थित था।
📝 दूसरा गोल मेज सम्मेलन (सितंबर – दिसंबर 1931)
🔹 मुख्य विशेषता:
इस सम्मेलन में महात्मा गांधी कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए। यह गांधी-इरविन समझौते के बाद संभव हुआ।
🔹 विवाद के मुद्दे:
- अल्पसंख्यकों को विशेष प्रतिनिधित्व (जैसे मुसलमान, ईसाई, सिख, दलित)
- दलितों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल का सवाल
- हिन्दू-मुस्लिम एकता की कमी
❌ परिणाम:
गांधीजी दलितों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल का विरोध कर रहे थे, जबकि डॉ. भीमराव अंबेडकर इसका समर्थन कर रहे थे। ब्रिटिश सरकार ने अल्पसंख्यकों की मांगों का समर्थन किया और कांग्रेस को अलग-थलग करने की कोशिश की। कोई सर्वसम्मति नहीं बनी।
📝 तीसरा गोल मेज सम्मेलन (नवंबर – दिसंबर 1932)
🔹 कांग्रेस का बहिष्कार:
कांग्रेस ने इस सम्मेलन में भाग नहीं लिया, क्योंकि दूसरे सम्मेलन के बाद गांधीजी को पुनः जेल भेज दिया गया था।
🔹 प्रतिभागी:
कुछ रियासतों के प्रतिनिधि और कुछ अल्पसंख्यक समूह ही इसमें शामिल हुए।
❌ परिणाम:
यह सम्मेलन भी निष्फल रहा। लेकिन इसके बाद 1935 का भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act, 1935) लाया गया, जो इन सम्मेलनों में हुई चर्चाओं पर आधारित था।
⚖️ गोल मेज सम्मेलनों का महत्व
✅ भारतीय राजनीति का अंतरराष्ट्रीयकरण
पहली बार भारतीय मुद्दों पर चर्चा अंतरराष्ट्रीय मंच, यानी ब्रिटिश संसद और यूरोपीय मीडिया के बीच हुई।
✅ अल्पसंख्यक और दलित प्रश्न का उदय
इन सम्मेलनों ने अल्पसंख्यकों और दलितों के लिए राजनीतिक अधिकारों के मुद्दे को सामने लाया।
✅ संवैधानिक सुधार की नींव
हालाँकि ये सम्मेलन सफल नहीं रहे, लेकिन इसके आधार पर 1935 का अधिनियम तैयार हुआ, जो भारत की संविधान निर्माण प्रक्रिया का पहला बड़ा कदम था।
❗ नकारात्मक पहलू
- कांग्रेस को अलग-थलग करने की ब्रिटिश नीति ने भारतीय एकता को क्षति पहुँचाई।
- हिन्दू-मुस्लिम एकता और दलित अधिकारों को एक-दूसरे के विरोध में खड़ा कर दिया गया।
- यह भी स्पष्ट हो गया कि बिना सामूहिक भारतीय नेतृत्व के किसी निर्णय की वैधता नहीं होगी।
📚 निष्कर्ष
गोल मेज सम्मेलन ब्रिटिश शासन की ओर से भारत में संवैधानिक सुधारों की एक गंभीर लेकिन अधूरी कोशिश थी। कांग्रेस और गांधीजी की भागीदारी, अंबेडकर का दलित अधिकारों के लिए संघर्ष, और अल्पसंख्यकों की आवाज़ — इन सबने मिलकर भारत की संविधान-निर्माण यात्रा को दिशा दी। यह एक ऐसा अध्याय है, जिसने भारत को स्वतंत्रता से पहले राजनीतिक आत्मचिंतन की राह पर खड़ा किया।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1: गोल मेज सम्मेलन क्या था?
उत्तर: गोल मेज सम्मेलन ब्रिटिश सरकार द्वारा आयोजित तीन बैठकों की श्रृंखला थी, जिनका उद्देश्य भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा करना था। ये सम्मेलन लंदन में 1930 से 1932 के बीच आयोजित किए गए।
प्रश्न 2: कुल कितने गोल मेज सम्मेलन हुए थे?
उत्तर: कुल तीन गोल मेज सम्मेलन हुए थे —
- पहला: नवंबर 1930 - जनवरी 1931
- दूसरा: सितंबर - दिसंबर 1931
- तीसरा: नवंबर - दिसंबर 1932
प्रश्न 3: कांग्रेस ने किस सम्मेलन में भाग लिया था?
उत्तर: कांग्रेस ने केवल दूसरे गोल मेज सम्मेलन में भाग लिया था, जिसमें महात्मा गांधी कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए थे।
प्रश्न 4: पहला गोल मेज सम्मेलन क्यों महत्वपूर्ण था?
उत्तर: यह पहला अवसर था जब भारत के विभिन्न राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक प्रतिनिधि ब्रिटिश सरकार के साथ सीधे संवाद के लिए आमंत्रित किए गए। हालांकि कांग्रेस ने भाग नहीं लिया, यह भारत की संवैधानिक प्रक्रिया की शुरुआत थी।
प्रश्न 5: दूसरे गोल मेज सम्मेलन में गांधीजी ने क्या भूमिका निभाई?
उत्तर: गांधीजी ने कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया और दलितों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल का विरोध किया। उन्होंने भारत के लिए स्वराज और एकता पर बल दिया।
प्रश्न 6: तीसरे गोल मेज सम्मेलन में कांग्रेस ने भाग क्यों नहीं लिया?
उत्तर: गांधीजी को दूसरे सम्मेलन के बाद फिर से गिरफ्तार कर लिया गया था और कांग्रेस का दमन किया जा रहा था। इसलिए कांग्रेस ने तीसरे सम्मेलन का बहिष्कार किया।
प्रश्न 7: गोल मेज सम्मेलनों का क्या परिणाम निकला?
उत्तर: गोल मेज सम्मेलन सीधे सफल नहीं हुए, लेकिन इनके आधार पर 1935 का भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act, 1935) तैयार किया गया, जो भारतीय संविधान की नींव बना।
प्रश्न 8: डॉ. भीमराव अंबेडकर की भूमिका क्या थी?
उत्तर: डॉ. अंबेडकर ने दलितों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल की माँग की और ब्रिटिश सरकार के समर्थन से इसे गोल मेज सम्मेलनों में प्रमुख मुद्दा बनाया।
प्रश्न 9: क्या मुस्लिम लीग ने भाग लिया था?
उत्तर: हाँ, मोहम्मद अली जिन्ना और अन्य मुस्लिम प्रतिनिधियों ने सम्मेलनों में भाग लिया और मुस्लिमों के लिए विशेष प्रतिनिधित्व की माँग रखी।
प्रश्न 10: गोल मेज सम्मेलनों से भारत की स्वतंत्रता को क्या लाभ हुआ?
उत्तर: इन सम्मेलनों ने भारत में संविधान और लोकतंत्र की सोच को आगे बढ़ाया, साथ ही यह स्पष्ट कर दिया कि बिना भारतीयों की भागीदारी और सहमति के कोई भी राजनीतिक समाधान संभव नहीं है।
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