कमजोर वर्गों के प्रति सहानुभूति, सहिष्णुता एवं करुणा(Sympathy, tolerance and compassion towards the weaker sections)
एक उत्तरदायी लोकसेवक की पहचान
परिचय
लोक प्रशासन का मूल उद्देश्य है — समाज के हर व्यक्ति तक न्याय, सुरक्षा और सम्मान पहुँचाना, विशेष रूप से उन वर्गों तक जो सामाजिक, आर्थिक या शारीरिक रूप से कमजोर हैं। ऐसे वर्गों के प्रति एक लोक सेवक की भूमिका तभी प्रभावशाली हो सकती है जब उसके भीतर सहानुभूति (Empathy), सहिष्णुता (Tolerance) और करुणा (Compassion) जैसे मानवीय गुण हों।
1. सहानुभूति : संवेदनशील प्रशासन की नींव
अर्थ
सहानुभूति का तात्पर्य है — दूसरों के अनुभव, दुख-दर्द और परिस्थिति को अपने हृदय से महसूस करना और उसी के अनुसार निर्णय लेना।
प्रशासन में महत्व
- जनहित में त्वरित निर्णय लेना
- समस्या की जड़ तक पहुँचना
- भावनात्मक बुद्धिमत्ता का विकास
- कमजोर वर्गों के प्रति न्यायपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना
उदाहरण
किसी भयंकर बाढ़ के दौरान राहत शिविर स्थापित करते समय एक अधिकारी यदि पीड़ितों की दशा को समझकर कार्य करता है, तो उसकी नीतियाँ अधिक मानव-केंद्रित और प्रभावशाली होती हैं।
2. सहिष्णुता : विविधताओं में समरसता
अर्थ
सहिष्णुता का अर्थ है — भिन्न विचारों, संस्कृति, धर्म, भाषा और जीवनशैली को सम्मानपूर्वक स्वीकार करना, चाहे वे हमारी सोच से कितने भी अलग क्यों न हों।
प्रशासनिक संदर्भ
- बहुसांस्कृतिक समाज में एकता बनाए रखना
- संविधान की धर्मनिरपेक्षता की रक्षा
- सभी समूहों के लिए समान सेवा सुनिश्चित करना
- विवाद और संघर्ष की स्थितियों को शांति से सुलझाना
व्यावहारिक दृष्टांत
कश्मीर या उत्तर-पूर्व भारत जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में कार्यरत अधिकारी जब सांस्कृतिक विविधताओं का सम्मान करते हैं, तो वहाँ शांति और विकास को बल मिलता है।
3. करुणा : मानवीय चेतना की सर्वोच्च अवस्था
अर्थ
करुणा का अर्थ है — दूसरों के दुख में सिर्फ भावुक होना नहीं, बल्कि उसे दूर करने के लिए सक्रिय पहल करना।
प्रशासनिक भूमिका
- जरूरतमंदों तक सेवाएँ प्राथमिकता से पहुँचाना
- दीन-दुखियों की सहायता हेतु संवेदनशील पहल
- नीतियों में मानवीय पहलू जोड़ना
- आर्थिक-सामाजिक असमानताओं को पाटना
प्रेरणादायक उदाहरण
मदर टेरेसा का जीवन करुणा का जीवंत उदाहरण है। उनका समर्पण आज भी सिविल सेवकों के लिए प्रेरणास्रोत है।
4. कमजोर वर्गों की पहचान
भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में निम्नलिखित वर्ग कमजोर माने जाते हैं:
- अनुसूचित जातियाँ और जनजातियाँ
- वृद्धजन
- विकलांग व्यक्ति
- महिलाएँ और बालिकाएँ
- आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग
- अल्पसंख्यक समुदाय
- बेघर और निराश्रित लोग
इनके प्रति प्रशासन की संवेदनशीलता और सक्रिय भागीदारी अत्यावश्यक है।
5. संवेदनशील प्रशासन की विशेषताएँ
- प्रशासनिक प्रक्रियाओं में मानवीय स्पर्श
- समाज के अंतिम व्यक्ति तक सेवाएँ पहुँचाना
- लोक शिकायत निवारण की दक्ष व्यवस्था
- नीतियों का समावेशी दृष्टिकोण
6. भारतीय संविधान और कमजोर वर्गों की सुरक्षा
भारतीय संविधान में विशेष रूप से अनुच्छेद 15, 16, 17, 46 और 330–342 के अंतर्गत कमजोर वर्गों के लिए संरक्षण और अधिकार सुनिश्चित किए गए हैं। एक सिविल सेवक का उत्तरदायित्व है कि वह इन प्रावधानों को सही अर्थों में क्रियान्वित करे।
7. इन मूल्यों को आत्मसात करने की रणनीतियाँ
- भावनात्मक बुद्धिमत्ता का विकास
- स्व-अनुभव और आत्मावलोकन
- जनसंपर्क में संवेदनशीलता
- अंतर-सांस्कृतिक प्रशिक्षण
- मानवाधिकार शिक्षा
8. कमजोर वर्गों के लिए प्रभावी योजनाएँ
लोक सेवकों को निम्न योजनाओं के माध्यम से सहानुभूति और करुणा को क्रियात्मक रूप देना चाहिए:
- प्रधानमंत्री आवास योजना
- दिव्यांगजन सशक्तिकरण कार्यक्रम
- बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
- राष्ट्रीय वृद्धजन नीति
- मिड-डे मील योजना
निष्कर्ष
सहानुभूति, सहिष्णुता और करुणा केवल मानवीय मूल्य नहीं, बल्कि प्रभावी और न्यायपूर्ण प्रशासन के लिए आवश्यक गुण हैं। एक सिविल सेवक के भीतर इन मूल्यों की उपस्थिति उसे केवल एक अधिकारी नहीं, बल्कि एक संवेदनशील जनसेवक बनाती है। समाज के कमजोर वर्गों के प्रति यही दृष्टिकोण भारतीय लोकतंत्र की वास्तविक आत्मा को सजीव करता है।
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