तृतीयक क्षेत्र(Tertiary Sector)

 तृतीयक क्षेत्र(Tertiary Sector)

भारतीय अर्थव्यवस्था की सेवा शक्ति

भारतीय अर्थव्यवस्था को तीन मुख्य क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है – प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीयक क्षेत्र और तृतीयक क्षेत्र। इनमें से तृतीयक क्षेत्र (Tertiary Sector) को सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है। यह वह क्षेत्र है जो कृषि और उद्योग को सहयोग प्रदान करता है तथा समाज को आवश्यक सेवाएँ उपलब्ध कराता है।

आज भारत में तृतीयक क्षेत्र को सबसे तेज़ी से विकसित होता हुआ क्षेत्र माना जाता है। इसका योगदान न केवल राष्ट्रीय आय में सबसे अधिक है बल्कि यह वैश्विक स्तर पर भारत की पहचान भी बना चुका है।


तृतीयक क्षेत्र की परिभाषा

तृतीयक क्षेत्र वह क्षेत्र है जिसमें भौतिक वस्तुओं का उत्पादन नहीं होता, बल्कि लोगों और उद्योगों को सेवाएँ प्रदान की जाती हैं।
उदाहरण:

  • परिवहन और संचार
  • बैंकिंग और बीमा
  • व्यापार
  • शिक्षा और स्वास्थ्य
  • पर्यटन और होटल उद्योग
  • सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और बीपीओ सेवाएँ


तृतीयक क्षेत्र की प्रमुख गतिविधियाँ

परिवहन और संचार

रेलवे, सड़क, वायु और जल परिवहन
टेलीफोन, इंटरनेट और डाक सेवाएँ

वित्तीय सेवाएँ

बैंकिंग, बीमा, निवेश, शेयर बाज़ार

व्यापार

थोक और खुदरा व्यापार
ई-कॉमर्स और ऑनलाइन मार्केट

शिक्षा और स्वास्थ्य

विद्यालय, विश्वविद्यालय, तकनीकी शिक्षा
अस्पताल, नर्सिंग, औषधि उद्योग

पर्यटन और आतिथ्य

घरेलू और अंतरराष्ट्रीय पर्यटन
होटल, रेस्तरां और ट्रैवल एजेंसियाँ

सूचना प्रौद्योगिकी और संचार

सॉफ्टवेयर, बीपीओ, कॉल सेंटर
डिजिटल प्लेटफॉर्म और स्टार्टअप्स

तृतीयक क्षेत्र की विशेषताएँ

  1. सेवा प्रधान – यह क्षेत्र वस्तुओं की बजाय सेवाओं का उत्पादन करता है।
  2. उद्योग और कृषि का सहायक – प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रों के सुचारु संचालन में मदद करता है।
  3. उच्च कौशल आधारित – इसमें शिक्षित और प्रशिक्षित मानव संसाधन की आवश्यकता होती है।
  4. वैश्विक जुड़ाव – आईटी और संचार तकनीक के कारण यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुड़ा हुआ है।
  5. तेजी से बढ़ता क्षेत्र – भारत के GDP में इसका योगदान सबसे अधिक है।


भारतीय अर्थव्यवस्था में तृतीयक क्षेत्र का महत्व

राष्ट्रीय आय में योगदान

स्वतंत्रता के समय इसका योगदान केवल 30% था, जो आज बढ़कर 55% से अधिक हो चुका है।

रोजगार सृजन

बैंकिंग, बीमा, आईटी और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में करोड़ों नौकरियाँ उपलब्ध हुईं।

निर्यात में वृद्धि

भारत का आईटी सेक्टर विदेशी मुद्रा अर्जन का सबसे बड़ा स्रोत है।

विदेशी निवेश

सेवा क्षेत्र में सबसे अधिक FDI आता है, जिससे विकास और तेज़ हुआ।

सामाजिक विकास

शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं से जीवन स्तर बेहतर हुआ।

तृतीयक क्षेत्र का विकास: चरणबद्ध दृष्टि

1. स्वतंत्रता के बाद (1950–1990)

  • परिवहन, बैंकिंग और डाक सेवाओं का विस्तार।
  • सार्वजनिक क्षेत्र में बीमा और बैंकों का राष्ट्रीयकरण।

2. उदारीकरण के बाद (1991–2000)

  • आईटी और बीपीओ सेवाओं का उदय।
  • विदेशी कंपनियों का आगमन।

3. 21वीं सदी का दौर

  • भारत विश्व का आईटी हब बना।
  • डिजिटल क्रांति, ई-कॉमर्स और स्टार्टअप्स का तेज़ विस्तार।

तृतीयक क्षेत्र की चुनौतियाँ

  1. ग्रामीण-शहरी असमानता – सेवाओं का लाभ मुख्यतः शहरी क्षेत्रों तक सीमित है।
  2. असंगठित क्षेत्र की समस्याएँ – छोटे व्यापार और सेवा प्रदाता असुरक्षित हैं।
  3. बेरोजगारी – उच्च कौशल की माँग के कारण सामान्य शिक्षित युवा पिछड़ जाते हैं।
  4. वैश्विक प्रतिस्पर्धा – चीन, फिलीपींस जैसे देशों से प्रतिस्पर्धा।
  5. डिजिटल विभाजन – इंटरनेट और तकनीक की सुविधा सभी को समान रूप से उपलब्ध नहीं है।


सुधार और सरकारी पहल

  1. डिजिटल इंडिया अभियान – ऑनलाइन सेवाओं का विस्तार।
  2. मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया – सेवा और उद्योग दोनों को प्रोत्साहन।
  3. पर्यटन नीति – “Incredible India” और धार्मिक पर्यटन का विकास।
  4. वित्तीय समावेशन – जनधन योजना, मोबाइल बैंकिंग और आधार आधारित सेवाएँ।
  5. कौशल विकास – Skill India Mission के तहत युवाओं को प्रशिक्षित करना।


निष्कर्ष

तृतीयक क्षेत्र आज भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे शक्तिशाली और गतिशील क्षेत्र है। यह न केवल कृषि और उद्योग को सहयोग देता है, बल्कि राष्ट्रीय आय, रोजगार और विदेशी मुद्रा अर्जन में सबसे बड़ा योगदान करता है। हालाँकि असमानता, बेरोजगारी और डिजिटल अंतराल जैसी चुनौतियाँ हैं, लेकिन तकनीक, स्टार्टअप्स और सेवा नवाचार के बल पर भारत का तृतीयक क्षेत्र आने वाले समय में और अधिक सशक्त और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन सकता है।



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