वर्षा की असमानता और सूखा समस्या
Uneven Rain and Drought Problem
परिचय(Introduction)
भारत की जलवायु मुख्यतः मानसून आधारित है। यहाँ की कृषि, पेयजल आपूर्ति और ग्रामीण जीवन काफी हद तक वर्षा पर निर्भर करते हैं। लेकिन वर्षा का वितरण पूरे देश में समान नहीं है। कहीं अत्यधिक वर्षा होती है तो कहीं न्यूनतम। यही वर्षा की असमानता आगे चलकर सूखा समस्या को जन्म देती है।
इस लेख में हम वर्षा की असमानता, उसके कारण, प्रभाव तथा सूखा समस्या के समाधान पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
1. वर्षा की असमानता क्या है?
जब किसी क्षेत्र में वर्षा की मात्रा औसत से बहुत अधिक या बहुत कम हो और उसका वितरण अनियमित हो, तो इसे वर्षा की असमानता कहते हैं।
भारत में:
- अत्यधिक वर्षा क्षेत्र – चेरापूंजी, मौसिनराम (मेघालय), पश्चिमी घाट।
- अल्प वर्षा क्षेत्र – थार मरुस्थल (राजस्थान), गुजरात का कच्छ क्षेत्र।
- मध्यम वर्षा क्षेत्र – गंगा-यमुना का दोआब, उत्तर प्रदेश, बिहार।
2. भारत में वर्षा की विशेषताएँ
- वर्षा का मुख्य स्रोत है दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून-सितंबर)।
- कुल वार्षिक वर्षा का लगभग 75% मानसून पर निर्भर।
- मानसून की अनिश्चितता और असमानता – कभी बाढ़, कभी सूखा।
- कुछ क्षेत्रों में कम समय में अधिक वर्षा, जबकि अन्य में बिल्कुल भी नहीं।
3. वर्षा की असमानता के कारण
3.1. भौगोलिक कारण
- पर्वत श्रृंखलाएँ पवनों को रोकती हैं।
- एक ओर अधिक वर्षा (विंडवर्ड साइड), दूसरी ओर वर्षाछाया क्षेत्र।
3.2. मानसून की अनिश्चितता
- मानसून की समय पर न आना या जल्दी समाप्त होना।
- मानसून पवनों की दिशा में परिवर्तन।
3.3. जलवायु परिवर्तन
- वैश्विक तापन से वर्षा का पैटर्न बदल रहा है।
- कहीं अचानक भारी वर्षा, कहीं लंबे समय तक सूखा।
3.4. वनों की कटाई
- वनों के अभाव में वाष्पोत्सर्जन घटता है।
- इससे स्थानीय वर्षा कम हो जाती है।
4. सूखा समस्या
4.1. सूखा क्या है?
जब किसी क्षेत्र में लंबे समय तक औसत से कम वर्षा होती है और जल की उपलब्धता कृषि, उद्योग और जीवनयापन के लिए अपर्याप्त हो जाती है, तो उसे सूखा कहते हैं।
4.2. सूखे के प्रकार
- मौसमीय सूखा – लंबे समय तक वर्षा का न होना।
- कृषि सूखा – मिट्टी में नमी की कमी से फसलें सूखना।
- जलविज्ञानिक सूखा – नदियों, झीलों और भूजल का स्तर घट जाना।
- सामाजिक-आर्थिक सूखा – जल व खाद्य की कमी से मानव जीवन पर संकट।
5. सूखा प्रभावित क्षेत्र (भारत में)
- राजस्थान का मरुस्थल।
- गुजरात का कच्छ।
- विदर्भ और मराठवाड़ा (महाराष्ट्र)।
- कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्से।
- झारखंड और मध्यप्रदेश के शुष्क क्षेत्र।
6. वर्षा की असमानता और सूखे के प्रभाव
6.1. कृषि पर प्रभाव
- फसलें नष्ट होना।
- खाद्य संकट और किसानों की आय में कमी।
6.2. जल संसाधन पर प्रभाव
- तालाब, नदियाँ और भूजल सूखना।
- पेयजल संकट।
6.3. सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
- ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन।
- बेरोजगारी और गरीबी में वृद्धि।
- स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ (कुपोषण, बीमारियाँ)।
6.4. पर्यावरणीय प्रभाव
- वनस्पति और पशु जीवन पर प्रतिकूल असर।
- भूमि का मरुस्थलीकरण।
7. समाधान और उपाय
7.1. जल संरक्षण
- वर्षा जल संचयन।
- तालाब, कुएँ और बावड़ियों का पुनर्जीवन।
7.2. सिंचाई प्रबंधन
- ड्रिप और स्प्रिंकलर प्रणाली।
- नहरों और जलाशयों का निर्माण।
7.3. फसल विविधीकरण
- कम पानी वाली फसलें (बाजरा, ज्वार, दालें)।
- सूखा प्रतिरोधी बीज।
7.4. वन और पर्यावरण संरक्षण
- वृक्षारोपण और वनों का संरक्षण।
- स्थानीय जलवायु सुधार।
7.5. सरकारी योजनाएँ
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)।
- अटल भूजल योजना।
- जल शक्ति अभियान।
- सूखा प्रभावित किसानों को आर्थिक सहायता और बीमा योजना।
निष्कर्ष
भारत में वर्षा की असमानता और सूखा समस्या प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों कारणों से उत्पन्न होती है। यह केवल कृषि ही नहीं बल्कि जल, खाद्य, रोजगार और सामाजिक जीवन को भी प्रभावित करती है।
समाधान के लिए आवश्यक है कि हम जल संरक्षण, आधुनिक सिंचाई तकनीक, फसल विविधीकरण और पर्यावरण संतुलन पर विशेष ध्यान दें। यदि हम अभी से ठोस कदम उठाएँ, तो सूखे की समस्या को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है और भविष्य की पीढ़ियों को सुरक्षित जल व खाद्य संसाधन उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
 
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