रियासतों का एकीकरण(Uniting Princely States)

 रियासतों का एकीकरण(Uniting Princely States)

भारत की एकता की नींव

प्रस्तावना

भारत की आज़ादी केवल अंग्रेज़ी हुकूमत से मुक्ति तक सीमित नहीं थी। 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिलने के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी भारतीय रियासतों का एकीकरण। उस समय भारत में लगभग 562 रियासतें थीं, जो स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र स्थिति में थीं। यदि इनका एकीकरण न होता, तो भारत कभी भी एक सशक्त, अखंड और एकीकृत राष्ट्र के रूप में स्थापित नहीं हो पाता। इस महान कार्य का श्रेय सरदार वल्लभभाई पटेल और उनके सचिव वी.पी. मेनन को जाता है।


भारत की रियासतें : स्वतंत्रता से पूर्व की स्थिति

  • अंग्रेज़ों के शासनकाल में भारत दो भागों में बँटा था – ब्रिटिश भारत और देशी रियासतें
  • ब्रिटिश भारत सीधे अंग्रेज़ सरकार के अधीन था, जबकि रियासतें अपने-अपने शासकों द्वारा शासित थीं।
  • इन रियासतों पर अंग्रेज़ों का प्रभुत्व और नियंत्रण संधियों व राजनीतिक समझौतों के माध्यम से था।
  • स्वतंत्रता के समय यह चुनौती खड़ी हुई कि क्या ये रियासतें भारत में शामिल होंगी या स्वतंत्र रहेंगी।


सरदार पटेल की भूमिका

सरदार वल्लभभाई पटेल उस समय भारत के गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री थे।

उन्होंने रियासतों को भारत में मिलाने के लिए “एकीकरण नीति” अपनाई।

पटेल ने दो प्रमुख साधनों का प्रयोग किया –


मनाना और समझाना – 

रियासतों के राजाओं को यह समझाया गया कि उनका भविष्य केवल भारत के साथ जुड़कर ही सुरक्षित है।

दबाव और दृढ़ता – 

जहां आवश्यक हुआ, वहाँ सैन्य और राजनीतिक दबाव का भी प्रयोग किया गया।

वी.पी. मेनन ने “इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन” नामक दस्तावेज़ तैयार किया, जिस पर हस्ताक्षर करके रियासतें भारत में शामिल हो सकती थीं।

प्रमुख रियासतों का विलय

1. हैदराबाद

  • हैदराबाद के निज़ाम ने स्वतंत्र रहने की इच्छा जताई।
  • यहाँ साम्प्रदायिक तनाव और अस्थिरता बढ़ी।
  • 1948 में ऑपरेशन पोलो चलाकर भारतीय सेना ने हैदराबाद को भारत में मिला दिया।

2. जूनागढ़

  • जूनागढ़ की रियासत का नवाब पाकिस्तान में शामिल होना चाहता था, जबकि जनता भारत में विलय चाहती थी।
  • 1947 में भारत ने हस्तक्षेप किया और जनमत-संग्रह कराया गया, जिसमें जनता ने भारत में विलय के पक्ष में मतदान किया।

3. कश्मीर

  • जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह स्वतंत्र रहना चाहते थे।
  • लेकिन पाकिस्तान के कबायली आक्रमण के बाद उन्होंने भारत में विलय का निर्णय लिया और इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर किए।
  • इसके बाद भारतीय सेना ने कश्मीर की रक्षा की।

4. अन्य रियासतें

  • अधिकांश छोटी रियासतों ने शांति और सुरक्षा की दृष्टि से स्वेच्छा से भारत में शामिल होना स्वीकार कर लिया।
  • राजकोट, भोपाल, पटियाला, ग्वालियर और कई अन्य बड़े राज्यों ने भी धीरे-धीरे भारत में विलय कर लिया।


रियासतों के एकीकरण की प्रक्रिया

  1. इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन – रियासतों के शासकों ने इस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए और रक्षा, संचार व विदेश नीति के विषय भारत सरकार को सौंप दिए।
  2. प्रशासनिक एकीकरण – छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर बड़े प्रांत बनाए गए।
  3. संवैधानिक ढांचा – भारतीय संविधान के अंतर्गत सभी रियासतों को समान दर्जा दिया गया।


एकीकरण की चुनौतियाँ

  • कई शासक अपनी सत्ता और विशेषाधिकार छोड़ने को तैयार नहीं थे।
  • धार्मिक और साम्प्रदायिक तनाव ने कठिनाइयाँ बढ़ाईं।
  • पाकिस्तान का हस्तक्षेप और दबाव भी एक बड़ी चुनौती थी।
  • जनता और शासकों के बीच मतभेद भी सामने आए।


एकीकरण का महत्व

  1. राष्ट्रीय एकता – यदि रियासतें स्वतंत्र रहतीं, तो भारत खंड-खंड में बंटा रहता।
  2. राजनीतिक स्थिरता – एकीकरण से लोकतांत्रिक शासन प्रणाली स्थापित हो सकी।
  3. आर्थिक विकास 一 प्रशासन और नीतियों से विकास की राह खुली।
  4. सुरक्षा – रियासतों के भारत में शामिल होने से देश की सीमाएँ सुरक्षित हुईं।


सरदार पटेल : लौह पुरुष

  • रियासतों के एकीकरण के कारण ही सरदार पटेल को “भारत का लौह पुरुष” कहा गया।
  • उन्होंने दृढ़ निश्चय, दूरदर्शिता और राजनीतिक कौशल से असंभव को संभव किया।
  • उनकी इस महान उपलब्धि के बिना आज का अखंड भारत सोचना भी कठिन होता।


निष्कर्ष

रियासतों का एकीकरण भारतीय स्वतंत्रता की सबसे बड़ी उपलब्धि थी।
इसने भारत को एक एकीकृत राष्ट्र के रूप में स्थापित किया और लोकतांत्रिक गणराज्य की नींव को मजबूत किया।

सरदार पटेल और वी.पी. मेनन के प्रयासों ने यह साबित कर दिया कि यदि नेतृत्व में दृढ़ता और दूरदर्शिता हो, तो कोई भी चुनौती असंभव नहीं होती।

आज का सशक्त और एकजुट भारत, रियासतों के एकीकरण की ऐतिहासिक प्रक्रिया का ही परिणाम है।



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ