लोक/सिविल सेवा में मूल्य और नीतिशास्त्र
(Values and Ethics in Civil Service)
स्थिति और समस्याएं(Status and Problems)
परिचय
लोक सेवा (Civil Services) एक लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की रीढ़ होती है। इसका उद्देश्य जनता के लिए निष्पक्ष, उत्तरदायी और पारदर्शी प्रशासन सुनिश्चित करना है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लोकसेवकों में मूल्यपरक दृष्टिकोण और नीतिशास्त्रीय व्यवहार आवश्यक है। किंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इन सिद्धांतों की स्थिति और उससे जुड़ी समस्याएं अनेक प्रश्न उठाती हैं।
1. सिविल सेवा में मूल्य और नीतिशास्त्र का महत्व
(1) प्रशासनिक नैतिकता का स्तंभ
लोकसेवक यदि सत्यनिष्ठ, निष्पक्ष, उत्तरदायी और जनकल्याणकारी नहीं होगा, तो शासन प्रणाली विफल हो जाती है।
(2) लोक विश्वास की स्थापना
नैतिक आचरण और पारदर्शिता से ही जनता का शासन तंत्र में विश्वास कायम होता है।
(3) लोकतांत्रिक मूल्यसंरचना की रक्षा
लोकतंत्र तभी जीवित रहता है जब उसके कार्यकर्ता संवैधानिक मूल्यों जैसे धर्मनिरपेक्षता, समानता और न्याय के प्रति प्रतिबद्ध रहें।
2. सिविल सेवा में मौजूदा स्थिति
(i) नैतिक पतन की प्रवृत्ति
- भ्रष्टाचार के बढ़ते प्रकरण
- सत्ता पक्ष का दबाव झेलते अधिकारी
- व्यक्तिगत लाभ को प्राथमिकता
(ii) मूल्यों में गिरावट
- निष्पक्षता और पारदर्शिता की उपेक्षा
- जवाबदेही से बचने की प्रवृत्ति
- लोक सेवा की भावना की कमी
(iii) जनसेवा का भाव समाप्त होता हुआ
- कार्यों में संवेदनशीलता का अभाव
- लोकसेवक और जनता के बीच दूरी
3. प्रमुख समस्याएं
1. राजनीतिक दबाव और स्थानांतरण की अस्थिरता
- अधिकारियों पर अनैतिक निर्णय थोपे जाते हैं।
- स्थानांतरण को एक दंडात्मक हथियार के रूप में प्रयोग किया जाता है।
2. भ्रष्टाचार
- अनुचित दबाव और कमीशन आधारित कार्यप्रणाली।
- लोकपाल जैसी संस्थाओं की सीमित प्रभावशीलता।
3. प्रशिक्षण में नैतिकता की उपेक्षा
- प्रशासनिक प्रशिक्षण में मूल्य शिक्षा पर कम ध्यान।
- व्यवहारिक नैतिकता का अभाव।
4. आंतरिक मूल्य संकट
- आत्मनिरीक्षण की कमी।
- व्यक्तिगत स्वार्थ और भय का प्रभाव।
4. सुधार की संभावनाएं और उपाय
(1) नैतिक नेतृत्व का विकास
- सिविल सेवा में रोल मॉडल अधिकारियों की पहचान और सम्मान।
- नैतिक निर्णयों पर संस्थागत समर्थन।
(2) प्रशासनिक प्रशिक्षण में नैतिक शिक्षा
- LBSNAA जैसे संस्थानों में मूल्य आधारित केस स्टडीज को शामिल करना।
- अनुभवी अधिकारियों द्वारा नैतिक नेतृत्व पर व्याख्यान।
(3) पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना
- RTI और ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देना।
- जनता की शिकायत निवारण प्रणाली को सरल और प्रभावी बनाना।
(4) स्वतंत्र जांच एजेंसियों की सशक्तता
- लोकपाल, सीवीसी जैसे संस्थानों को अधिक स्वायत्तता देना।
- भ्रष्टाचार के विरुद्ध तत्काल और निष्पक्ष कार्रवाई सुनिश्चित करना।
5. लोकसेवकों के मूल्य आधारित आदर्श
एक सच्चा लोकसेवक निम्नलिखित गुणों को अपने जीवन और कार्य में आत्मसात करता है:
- सत्यनिष्ठा (Integrity)
- निष्पक्षता (Impartiality)
- वस्तुनिष्ठता (Objectivity)
- सहानुभूति (Empathy)
- सेवा भाव (Service Orientation)
- नैतिक साहस (Moral Courage)
6. भारतीय संदर्भ में उदाहरण
1. टी. एन. शेषन
चुनाव आयोग को निष्पक्षता और शक्ति का प्रतीक बनाया।
2. किरण बेदी
पुलिस सेवा में मानवता और सुधारात्मक प्रशासन की मिसाल।
3. अंजनी कुमार सिंह (IAS)
शिक्षा विभाग में पारदर्शिता और ईमानदारी से परिवर्तन लाने वाले अधिकारी।
7. नागरिकों की भूमिका
सिर्फ सिविल सेवक ही नहीं, आम नागरिकों की भी जिम्मेदारी है:
- जन-जागरूकता बढ़ाना,
- प्रेस और मीडिया का सकारात्मक उपयोग,
- जन आंदोलनों के माध्यम से नैतिक प्रशासन की मांग।
निष्कर्ष
लोक सेवा में मूल्य और नीतिशास्त्र न केवल एक सैद्धांतिक अपेक्षा है, बल्कि प्रशासन की आत्मा है। जब अधिकारी सच्चरित्र, ईमानदार, और जनोन्मुखी दृष्टिकोण से कार्य करते हैं, तभी लोकतंत्र का वास्तविक उद्देश्य पूर्ण होता है। समय की मांग है कि सिविल सेवा को नैतिक नेतृत्व की ओर फिर से उन्मुख किया जाए और उसे सत्ता का उपकरण नहीं, बल्कि जनसेवा का माध्यम बनाया जाए।
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