भारत में गेहूँ की कृषि
भारत में गेहूँ (Wheat) चावल के बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। यह मुख्य रूप से रबी फसल के रूप में उगाई जाती है और देश की खाद्य सुरक्षा का प्रमुख आधार है। गेहूँ न केवल दैनिक भोजन में शामिल है बल्कि भारत की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था में भी इसका विशेष स्थान है।
गेहूँ का महत्व
- खाद्य सुरक्षा का आधार: अधिकांश जनसंख्या का मुख्य भोजन रोटी गेहूँ से ही बनती है।
- औद्योगिक उपयोग: ब्रेड, बिस्कुट, पेस्ट्री, पास्ता, मैदा, सूजी आदि निर्माण में।
- पशु चारा: भूसी पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग।
- निर्यात: भारतीय गेहूँ दक्षिण एशिया, अफ्रीका और मध्य एशिया में निर्यात होता है।
गेहूँ की उपज के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ
जलवायु
- गेहूँ शीतोष्ण जलवायु की फसल है।
- अंकुरण और वृद्धि के समय ठंडा मौसम तथा पकते समय शुष्क और गर्म मौसम चाहिए।
- उपयुक्त तापमान: 10°C से 25°C।
- वर्षा: 75–100 से.मी. पर्याप्त, लेकिन गेहूँ सिंचाई के सहारे भी अच्छी तरह उगाया जा सकता है।
मिट्टी
- दोमट मिट्टी और जलोढ़ मिट्टी गेहूँ के लिए सर्वश्रेष्ठ।
- अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी आवश्यक।
भारत में गेहूँ की मुख्य किस्में
- ट्रिटिकम एस्टिवम (Triticum Aestivum): सामान्य गेहूँ, अधिकांश उत्पादन इसी से।
- ट्रिटिकम ड्युरम (Triticum Durum): पास्ता और मैकरोनी बनाने के लिए उपयुक्त।
- ट्रिटिकम डिकोक्कम (Triticum Dicoccum): प्राचीन किस्म, दक्षिण भारत में।
भारत में गेहूँ उत्पादक क्षेत्र
1. उत्तर-पश्चिमी भारत (उच्च उत्पादकता क्षेत्र)
- पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश
- हरित क्रांति के कारण यहाँ सबसे अधिक उत्पादन।
- नहरों और ट्यूबवेल सिंचाई से सिंचित भूमि।
2. गंगा का मैदान
- उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश
- उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी और पर्याप्त सिंचाई।
3. मध्य और पश्चिमी भारत
- राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश
- सिंचाई के सहारे गेहूँ की अच्छी खेती।
4. दक्षिण भारत
- कर्नाटक और तमिलनाडु – अपेक्षाकृत कम क्षेत्रफल, लेकिन सिंचाई की मदद से उत्पादन।
भारत में गेहूँ उत्पादन की स्थिति
- भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक देश है (चीन के बाद)।
- उत्पादन लगभग 110 मिलियन टन प्रति वर्ष।
- सबसे बड़ा उत्पादक राज्य: उत्तर प्रदेश (35% से अधिक उत्पादन)।
- अन्य प्रमुख राज्य: पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार।
खेती की पद्धति
- बीजाई का समय: अक्टूबर से दिसंबर।
- कटाई का समय: मार्च से अप्रैल।
- सिंचाई: गेहूँ की फसल को 4-6 बार सिंचाई की आवश्यकता।
- उर्वरक: नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का प्रयोग।
गेहूँ कृषि से जुड़ी चुनौतियाँ
- भूमि का विखंडन और छोटे खेत।
- वर्षा और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव।
- सिंचाई सुविधाओं की असमानता।
- कीट और रोग जैसे करनाल बंट, पत्ती झुलसा।
- विपणन और भंडारण समस्या।
हरित क्रांति और गेहूँ उत्पादन
भारत में 1960 के दशक में हरित क्रांति का सबसे अधिक प्रभाव गेहूँ पर पड़ा। उच्च उत्पादकता वाली किस्मों (HYV Seeds), रासायनिक उर्वरकों और सिंचाई के प्रसार से उत्पादन कई गुना बढ़ा।
- पंजाब और हरियाणा "भारत का अन्न भंडार" बने।
- भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हुआ।
निष्कर्ष
भारत में गेहूँ की कृषि न केवल खाद्य सुरक्षा बल्कि आर्थिक विकास और ग्रामीण जीवन का भी आधार है। उचित तकनीक, सिंचाई प्रबंधन और आधुनिक किस्मों के उपयोग से भारत आने वाले वर्षों में गेहूँ उत्पादन में और भी नई ऊँचाइयों को प्राप्त कर सकता है।
0 टिप्पणियाँ