सेन वंश के शासक

 

सेन वंश के शासक

सेन वंश के शासक
सेन शासक


बंगाल के गौरवशाली इतिहास के रक्षक

परिचय

सेन वंश भारत के मध्यकालीन इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसने बंगाल और उसके आसपास के क्षेत्रों में 11वीं से 13वीं सदी के बीच शासन किया। सेन शासकों ने बंगाल में स्थिरता, संस्कृति और कला का विकास किया। यह वंश पाल वंश के पतन के बाद उभरा और बंगाल को एक नए युग में ले गया। सेन शासकों ने हिन्दू धर्म, शिक्षा और वास्तुकला को भी भरपूर संरक्षण दिया।


सेन वंश की उत्पत्ति

सेन वंश का मूल संभवतः दक्षिण भारत से जुड़ा माना जाता है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार सेन वंश का संबंध कर्नाटक या आंध्रप्रदेश के किसी क्षेत्र से था। बाद में ये शासक बंगाल की ओर बढ़े और पाल साम्राज्य की कमजोर होती शक्ति का लाभ उठाकर वहाँ सत्ता स्थापित की।


सेन वंश के प्रमुख शासक

1. हेमंत सेन

  • सेन वंश के संस्थापक माने जाते हैं।
  • पाल साम्राज्य के पतन के समय बंगाल में स्वतंत्रता की घोषणा की।

    2. विजय सेन (1097–1158 ई.)

    • सेन वंश के सबसे महत्वपूर्ण शासकों में से एक।
    • बंगाल के बड़े हिस्से को अपने नियंत्रण में लिया।
    • विजय सेन के शासनकाल में सेन साम्राज्य ने अपनी राजधानी को नादिया में स्थानांतरित किया।

      3. बल्लाल सेन (1158–1179 ई.)

      • विजय सेन के पुत्र और उत्तराधिकारी।
      • “दानसागर” उपाधि प्राप्त की।
      • समाज सुधार के लिए कुलीन प्रथा की शुरुआत की।
      • उन्होंने हिंदू धर्म और जाति व्यवस्था को मजबूत करने का प्रयास किया।

        4. लक्ष्मण सेन (1179–1206 ई.)

        • सेन वंश के अंतिम शक्तिशाली शासक।
        • इनके शासनकाल में बंगाल का साहित्य और संस्कृति अपने शिखर पर पहुँची।
        • जयदेव जैसे कवियों को संरक्षण दिया, जिन्होंने प्रसिद्ध गीत गोविंद की रचना की।
        • 1204 ई. में तुर्क सेनापति मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी के आक्रमण के कारण लक्ष्मण सेन बंगाल छोड़कर भाग गए, जिससे सेन साम्राज्य का पतन हो गया।


          सेन शासकों का शासन क्षेत्र

          सेन वंश का साम्राज्य बंगाल, बिहार और उड़ीसा के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ था। इन्होंने नदिया, गौड़ (लखनौती), और विक्रमपुर जैसी जगहों को अपनी राजधानी बनाया था।


          सेन वंश का प्रशासन

          • सेन शासकों ने शक्तिशाली राज्य व्यवस्था स्थापित की थी।
          • भूमि व्यवस्था सुव्यवस्थित थी और किसान वर्ग पर कर लागू किया जाता था।
          • प्रशासनिक पदों पर नियुक्तियाँ योग्यता के आधार पर की जाती थीं।
          • सेना को मजबूत रखने के लिए घुड़सवार और पैदल सैनिकों को तैयार रखा जाता था।


            सेन वंश का सांस्कृतिक योगदान

            • सेन शासकों ने हिन्दू धर्म, संस्कृत साहित्य और कला को संरक्षण दिया।
            • कवि जयदेव और उनकी कृति गीत गोविंद इसी काल की देन है।
            • वास्तुकला के क्षेत्र में कई मंदिर, मठ और संस्कृत विद्यालयों का निर्माण कराया।
            • नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों को संरक्षण दिया गया।


              सेन वंश के पतन के कारण

              • शासन की केंद्रीकृत व्यवस्था कमजोर हो गई थी।
              • उत्तर भारत में मुस्लिम आक्रांताओं का बढ़ता प्रभाव।
              • मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी के आक्रमण के बाद सेन शासकों की शक्ति खत्म हो गई और बंगाल में इस्लामी शासन की शुरुआत हुई।


                सेन शासकों की प्रमुख विशेषताएँ

                विशेषताविवरण
                स्थापना11वीं सदी के अंत में हेमंत सेन द्वारा
                प्रमुख शासकविजय सेन, बल्लाल सेन, लक्ष्मण सेन
                धर्महिन्दू धर्म के संरक्षक
                राजधानीनदिया, विक्रमपुर, गौड़
                पतन का कारणखिलजी आक्रमण

                FAQ – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

                1. सेन वंश की स्थापना किसने की?

                हेमंत सेन ने सेन वंश की स्थापना की थी।

                2. सेन वंश का सबसे शक्तिशाली शासक कौन था?

                विजय सेन को सेन वंश का सबसे शक्तिशाली शासक माना जाता है।

                3. सेन वंश की राजधानी कहाँ थी?

                सेन वंश की प्रमुख राजधानियाँ नदिया, विक्रमपुर और गौड़ थीं।

                4. सेन वंश का पतन कब और क्यों हुआ?

                1204 ई. में मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी के आक्रमण के कारण सेन वंश का पतन हो गया।

                5. सेन वंश का सांस्कृतिक योगदान क्या था?

                सेन शासकों ने हिन्दू धर्म, संस्कृत साहित्य और कला को संरक्षण दिया और गीत गोविंद जैसी अमर कृतियों को प्रोत्साहित किया।

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