भारतीय संविधान की प्रस्तावना

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(Preamble of the Indian Constitution)

भारतीय संविधान की प्रस्तावना
भारतीय संविधान की प्रस्ताना

संविधान की प्रस्तावना(PDF View)


 विषय सूची (Table of Content)

क्रमांक शीर्षक 
1 भारतीय संविधान की प्रस्तावना क्या है?
2 प्रस्तावना का इतिहास और निर्माण प्रक्रिया
3 प्रस्तावना का मूल पाठ (Original Text)
4 प्रस्तावना के प्रमुख शब्दों का अर्थ
5 संप्रभुता (Sovereign)
6 समाजवादी (Socialist)
7 धर्मनिरपेक्ष (Secular)
8 लोकतांत्रिक (Democratic)
9 गणराज्य (Republic)
10 न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व का महत्व
11 42वें संविधान संशोधन और प्रस्तावना में बदलाव
12 प्रस्तावना का संवैधानिक महत्व
13 भारतीय न्यायपालिका और प्रस्तावना
14 अन्य देशों की प्रस्तावनाओं से तुलना
15 प्रस्तावना की आलोचना और समर्थन
16 संविधान और नागरिकों के बीच प्रस्तावना की भूमिका
17 शिक्षा में प्रस्तावना का स्थान
18 निष्कर्ष
19 FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)

    भारतीय संविधान की प्रस्तावना क्या है?

    जब भी हम भारत के संविधान की बात करते हैं, तो सबसे पहली चीज़ जो ध्यान में आती है, वो है इसकी प्रस्तावना। जिसे संविधान की उद्देश्यिका भी कहते हैं यह एक छोटा-सा लेकिन बेहद गहरा हिस्सा है, जो न केवल संविधान की दिशा और सोच को दर्शाता है, बल्कि यह बताता है कि भारत कैसा देश है और वह किन मूल्यों पर चलता है।

    भारतीय संविधान की प्रस्तावना (हिंदी में)

    “हम, भारत के लोग, भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:

    न्याय — सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक;
    स्वतंत्रता — विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की;
    समानता — अवसर की समानता और प्रतिष्ठा प्राप्त करने का;
    और
    बंधुत्व — जिससे व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित हो —

    सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवम्बर, 1949 को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”


    Bhartiya Samvidhan ki Udyeshika


    Preamble to the Constitution of India (in English):

    "We, the People of India,
    having solemnly resolved to constitute India into a
    SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC
    and to secure to all its citizens:

    JUSTICE, social, economic and political;
    LIBERTY of thought, expression, belief, faith and worship;
    EQUALITY of status and of opportunity;
    and to promote among them all
    FRATERNITY assuring the dignity of the individual and the unity and integrity of the Nation;

    IN OUR CONSTITUENT ASSEMBLY this twenty-sixth day of November, 1949, do HEREBY ADOPT, ENACT AND GIVE TO OURSELVES THIS CONSTITUTION."

    प्रस्तावना संविधान का चेहरा है – इसमें लिखा है कि भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है और यह अपने नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व प्रदान करने के लिए वचनबद्ध है। यह न केवल शब्दों का समूह है, बल्कि यह हर भारतीय के लिए संविधान की आत्मा है।


    प्रस्तावना का इतिहास और निर्माण प्रक्रिया

    संविधान की प्रस्तावना की नींव 13 दिसंबर 1946 को पड़ी, जब पंडित नेहरू ने संविधान सभा के सामने "उद्देश्य प्रस्ताव" प्रस्तुत किया। इसी प्रस्ताव से बाद में प्रस्तावना तैयार की गई।

    डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में बनी प्रारूप समिति ने इसका अंतिम रूप तैयार किया। 26 नवंबर 1949 को इसे अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 से यह लागू हुआ। प्रस्तावना को संविधान की आत्मा इसीलिए कहा जाता है क्योंकि यही संविधान के लक्ष्यों और दिशा को स्पष्ट करती है।


    प्रस्तावना का मूल पाठ (Original Text)

    भारतीय संविधान की प्रस्तावना इन शब्दों से शुरू होती है:

    "हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए..."

    यह वाक्य भारत के लोगों की शक्ति को दर्शाता है – यानी देश की सत्ता किसी राजा या बाहरी शक्ति के पास नहीं, बल्कि सीधे जनता के हाथ में है। इसका मतलब है कि संविधान भारत की जनता द्वारा, उनके लिए और उन्हीं के माध्यम से बना है।


    प्रस्तावना के प्रमुख शब्दों का अर्थ

    प्रस्तावना में जितने भी शब्द हैं, वे कोई आम शब्द नहीं हैं। हर शब्द अपने-आप में एक विचारधारा, एक दर्शन और एक लक्ष्य को व्यक्त करता है। यह शब्द बताते हैं कि भारत कैसा देश है और वो अपने नागरिकों को क्या देना चाहता है।

    इनमें शामिल हैं:

    • संप्रभुता
    • समाजवाद
    • धर्मनिरपेक्षता
    • लोकतंत्र
    • गणराज्य
    • न्याय, स्वतंत्रता, समता, और बंधुत्व

    आइए अब इन सभी शब्दों का एक-एक करके अर्थ समझते हैं।


    संप्रभुता (Sovereign)

    ‘संप्रभु’ होने का मतलब है कि भारत पूरी तरह स्वतंत्र और आत्मनिर्भर देश है। कोई भी बाहरी ताकत हमारे फैसलों को प्रभावित नहीं कर सकती। हमारे संविधान, कानून, नीतियाँ और निर्णय सिर्फ हमारी जनता और सरकार द्वारा तय होते हैं।

    संप्रभुता भारत के गौरव, आत्मसम्मान और स्वतंत्रता की पहचान है।


    समाजवादी (Socialist)

    समाजवादी विचारधारा का मतलब है कि भारत एक ऐसा देश बनाना चाहता है जहाँ संपत्ति और संसाधनों का वितरण समान रूप से हो। किसी को भी भूखा, बेघर या बेसहारा न रहना पड़े।

    हर किसी को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सम्मान का बराबर अधिकार हो। अमीर और गरीब के बीच की खाई को पाटने के लिए यह विचार बेहद अहम है।


    धर्मनिरपेक्ष (Secular)

    भारत एक धार्मिक विविधता वाला देश है। हर धर्म, जाति, समुदाय के लोग यहाँ साथ रहते हैं। धर्मनिरपेक्षता का मतलब है कि भारत की सरकार किसी एक धर्म को बढ़ावा नहीं देगी और न ही किसी धर्म के खिलाफ होगी।

    हर नागरिक को अपने धर्म को मानने, उसका प्रचार करने और उसे बदलने की पूरी आज़ादी है। यही धर्मनिरपेक्षता हमारे देश को एकजुट रखती है।


    लोकतांत्रिक (Democratic)

    भारत एक लोकतांत्रिक देश है – इसका सीधा मतलब है कि सत्ता जनता के हाथों में है। जनता ही अपने नेताओं को चुनती है और वही सरकार चलाने का अधिकार देती है।

    हर नागरिक को मतदान का अधिकार है, चाहे वह अमीर हो या गरीब, महिला हो या पुरुष। लोकतंत्र में जनता ही असली राजा होती है।


    गणराज्य (Republic)

    गणराज्य का मतलब है कि देश का सर्वोच्च पद जैसे राष्ट्रपति, किसी राजवंश से नहीं, बल्कि जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से तय होता है।

    भारत में कोई राजा या महाराजा नहीं होता – बल्कि हर पाँच साल में राष्ट्रपति चुना जाता है, जो पूरी जनता का प्रतिनिधित्व करता है।


    न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व का महत्व

    प्रस्तावना के अंत में जो चार मूल मूल्य बताए गए हैं, वे भारत की आध्यात्मिक और सामाजिक आत्मा को दर्शाते हैं:

    • न्याय – हर किसी को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय मिले। कोई भेदभाव न हो।
    • स्वतंत्रता – विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, उपासना और संघ की आज़ादी हो।
    • समता – सभी के साथ समान व्यवहार हो। किसी को भी हीन या श्रेष्ठ न समझा जाए।
    • बंधुत्व – देशवासियों के बीच भाईचारे और आपसी सम्मान का रिश्ता हो।


    42वें संविधान संशोधन और प्रस्तावना में बदलाव

    साल 1976 में जब आपातकाल (Emergency) लगा था, तब संविधान में 42वां संशोधन किया गया। इसमें प्रस्तावना में तीन शब्द जोड़े गए:

    1. समाजवादी
    2. धर्मनिरपेक्ष
    3. राष्ट्रीय एकता

    इस संशोधन से प्रस्तावना और भी स्पष्ट और व्यापक हो गई। हालांकि इन मूल्यों की भावना पहले से ही संविधान में थी, लेकिन उन्हें औपचारिक रूप से जोड़ा गया।


    प्रस्तावना का संवैधानिक महत्व

    कुछ लोग मानते हैं कि प्रस्तावना सिर्फ एक परिचय है, लेकिन भारत का सर्वोच्च न्यायालय इसे संविधान का अहम हिस्सा मानता है।

    केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रस्तावना संविधान की बुनियादी संरचना (Basic Structure) को दर्शाती है और इसे हटाया या बदला नहीं जा सकता।


    भारतीय न्यायपालिका और प्रस्तावना

    भारतीय न्यायपालिका (कोर्ट्स) कई बार संविधान की प्रस्तावना का सहारा लेकर महत्वपूर्ण फैसले ले चुकी है। खासकर जब नागरिकों के मौलिक अधिकार या समानता की बात आती है, तो प्रस्तावना को मार्गदर्शक सिद्धांत माना जाता है।

    न्यायालयों ने स्पष्ट किया है कि प्रस्तावना में निहित आदर्शों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।


    अन्य देशों की प्रस्तावनाओं से तुलना

    दुनिया के कई देशों जैसे अमेरिका, फ्रांस और दक्षिण अफ्रीका की प्रस्तावनाएं भी समान मूल्यों को दर्शाती हैं – जैसे स्वतंत्रता, समानता, और लोकतंत्र

    लेकिन भारतीय प्रस्तावना खास इस वजह से है क्योंकि इसमें धर्मनिरपेक्षता, बंधुत्व, और समाजवाद को एक साथ जोड़ा गया है। यह विविधताओं के देश के लिए ज़रूरी है।


    प्रस्तावना की आलोचना और समर्थन

    कुछ आलोचक कहते हैं कि प्रस्तावना का कोई कानूनी मूल्य नहीं है और यह केवल एक औपचारिक हिस्सा है। लेकिन ज़्यादातर संविधान विशेषज्ञ मानते हैं कि यह संविधान की आत्मा और दिशा तय करती है।

    यह स्पष्ट करती है कि भारत किस आदर्श की ओर बढ़ रहा है, और किस तरह का समाज बनाना चाहता है।


    संविधान और नागरिकों के बीच प्रस्तावना की भूमिका

    प्रस्तावना सरकार और नागरिकों के बीच एक पुल की तरह है। यह नागरिकों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान देती है। यह हमें बताती है कि हम किस तरह का भारत बनाना चाहते हैं – एक न्यायपूर्ण, समान और भाईचारे से भरपूर समाज।


    शिक्षा में प्रस्तावना का स्थान

    आज स्कूलों में बच्चे प्रस्तावना को याद करते हैं, भाषणों में बोलते हैं और प्रतियोगिताओं में इसका उपयोग करते हैं। इससे उन्हें संविधान के मूल्य, आदर्श और राष्ट्रीय भावना समझने में मदद मिलती है।

    यह शिक्षा व्यवस्था में एक नैतिक और नागरिक जिम्मेदारी का संदेश देता है।


    निष्कर्ष

    भारतीय संविधान की प्रस्तावना कोई साधारण भूमिका नहीं निभाती। यह एक दृष्टिकोण, प्रतिबद्धता और सपना है, जिसे हमारे संविधान निर्माताओं ने हर भारतीय के लिए लिखा।

    यह हमें बताती है कि हम एक स्वतंत्र, समान और न्यायपूर्ण समाज की ओर बढ़ रहे हैं। हमें न केवल इसे समझना चाहिए, बल्कि इसे अपने जीवन में उतारना भी चाहिए।


    FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)

    प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है या नहीं?

    हां, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह संविधान का अभिन्न हिस्सा है।

    प्रस्तावना में कौन-कौन से मूल शब्द हैं?

    संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, गणराज्य, न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व।

    क्या प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है?

    हां, लेकिन संविधान की बुनियादी संरचना को बदला नहीं जा सकता।

    प्रस्तावना में ‘हम भारत के लोग’ का क्या महत्व है?

    यह दिखाता है कि संविधान की शक्ति जनता से आती है।

    42वें संशोधन में क्या बदला गया?

    समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और राष्ट्रीय एकता शब्द जोड़े गए।

    क्या न्यायपालिका प्रस्तावना का इस्तेमाल करती है?

    हां, कोर्ट कई फैसलों में प्रस्तावना को आधार बनाता है।

    क्या प्रस्तावना को स्कूलों में पढ़ाया जाता है?

    हां, यह नैतिक और नागरिक शिक्षा का हिस्सा है।

    प्रस्तावना का पहला शब्द क्या है?

    "हम, भारत के लोग"

    क्या प्रस्तावना में धर्म की स्वतंत्रता का उल्लेख है?

    हां, स्वतंत्रता में विश्वास और उपासना शामिल हैं।

    प्रस्तावना को पढ़ना क्यों ज़रूरी है?

    यह संविधान की आत्मा है और हमें हमारे कर्तव्यों और अधिकारों का ज्ञान देती है।

    यहाँ आपके द्वारा पूछे गए सभी प्रश्नों के क्रमवार उत्तर दिए गए हैं:


    भारतीय संविधान की प्रस्तावना क्या है?

    उत्तर:
    भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble) संविधान की भूमिका है, जो यह बताती है कि संविधान किन उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहता है। यह भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करती है और सभी नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सुनिश्चित करने का संकल्प करती है।


    भारतीय संविधान की प्रस्तावना किसने लिखी?

    उत्तर:
    भारतीय संविधान की प्रस्तावना डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता वाली संविधान प्रारूप समिति द्वारा तैयार किए गए मसौदे का हिस्सा है। हालांकि इसे विशेष रूप से किसी एक व्यक्ति ने नहीं लिखा, लेकिन इसका अंतिम प्रारूप संविधान सभा द्वारा अनुमोदित किया गया।


    भारतीय संविधान की प्रस्तावना की विशेषताएं:

    उत्तर:
    प्रस्तावना की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

    • भूमिका स्वरूप: यह संविधान की प्रस्तावना है, जो इसके उद्देश्यों को संक्षेप में प्रस्तुत करती है।
    • संप्रभुता: भारत पूर्ण रूप से स्वतंत्र राष्ट्र है।
    • समाजवाद: समाज में आर्थिक और सामाजिक समानता का सिद्धांत अपनाया गया है।
    • पंथनिरपेक्षता: राज्य किसी धर्म को न तो बढ़ावा देता है और न ही विरोध करता है।
    • लोकतंत्र: जनता को सर्वोच्च शक्ति प्राप्त है।
    • गणराज्य: भारत का प्रमुख जन-चुनाव द्वारा चुना जाता है, न कि वंशानुगत रूप से।
    • न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व: ये चार मूलभूत आदर्श हैं।


    भारतीय संविधान की प्रस्तावना का क्या महत्व है?

    उत्तर:
    प्रस्तावना संविधान का आदर्श और दर्शन प्रस्तुत करती है। यह न केवल संविधान के उद्देश्य और लक्ष्य को दर्शाती है, बल्कि यह एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती है। यह नागरिकों के अधिकारों, कर्तव्यों और राष्ट्र की दिशा को स्पष्ट करती है।


    भारतीय संविधान की प्रस्तावना लिखिए:

    उत्तर:

    “हम, भारत के लोग, भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए... इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”

    भारतीय संविधान की प्रस्तावना के मुख्य तत्वों का वर्णन करें:

    उत्तर:
    प्रस्तावना के मुख्य तत्व इस प्रकार हैं:

    1. संप्रभुता (Sovereignty) – भारत पूर्ण स्वतंत्र देश है।
    2. समाजवाद (Socialism) – सामाजिक और आर्थिक समानता का आदर्श।
    3. पंथनिरपेक्षता (Secularism) – सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण।
    4. लोकतंत्र (Democracy) – जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन।
    5. गणराज्य (Republic) – राष्ट्र का प्रमुख जनता द्वारा चुना जाता है।
    6. न्याय (Justice) – सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक।
    7. स्वतंत्रता (Liberty) – विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की।
    8. समानता (Equality) – सभी नागरिकों को समान अवसर।
    9. बंधुत्व (Fraternity) – भाईचारा, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्रीय एकता।


    भारतीय संविधान की प्रस्तावना के महत्व एवं मुख्य सिद्धांतों का वर्णन करें:

    उत्तर:
    महत्व:

    • यह संविधान की आत्मा है।
    • यह भारत की लोकतांत्रिक भावना को प्रकट करती है।
    • यह नागरिकों को उनके मूल अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग करती है।
    • यह न्याय, समानता और स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने की प्रेरणा देती है।

    मुख्य सिद्धांत:

    न्याय – सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक

    स्वतंत्रता – विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना
    समानता – अवसर और प्रतिष्ठा की समानता
    बंधुत्व – व्यक्ति की गरिमा, एकता और अखंडता

    🔗 बाह्य (External) स्रोत 

    👉  Wikipage    
    👉  Rajbhawan 

    🔗 अन्य(Internal) लेख 

    👉 भारतीय संविधान  
    👉  राष्ट्रपति   
    👉 मौलिक अधिकार   
    👉  मौलिक कर्तव्य                        
    👉 संविधान के भाग   
    👉 राज्य सभा   
    👉  लोक सभा  

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