मौलिक अधिकार
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Maulik Adhikar |
भारतीय संविधान की आत्मा
परिचय
मौलिक अधिकार (Fundamental
Rights) भारतीय नागरिकों को संविधान द्वारा प्रदत्त वे विशेष
अधिकार हैं, जो उनकी
स्वतंत्रता, गरिमा और
समानता की रक्षा करते हैं। ये अधिकार भारतीय
संविधान के भाग 3 (अनुच्छेद
12 से 35 तक)
में उल्लिखित हैं और इन्हें संविधान
की आत्मा कहा जाता
है। ये अधिकार भारतीय लोकतंत्र की नींव हैं, जो
नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का अनुभव कराते हैं।
मौलिक अधिकारों की सूची
भारतीय संविधान में कुल छह मौलिक अधिकार सम्मिलित हैं:
1. समानता का अधिकार (Right to Equality)
अनुच्छेद 14 से 18 के अंतर्गत
- अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष सभी नागरिक
समान हैं।
- अनुच्छेद 15: धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान आदि के आधार पर
भेदभाव निषेध।
- अनुच्छेद 16: सरकारी नौकरियों में समान
अवसर।
- अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का अंत।
- अनुच्छेद 18: उपाधियों का उन्मूलन (जैसे
"राजा", "सर" आदि की सरकारी मान्यता नहीं)।
2. स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)
अनुच्छेद 19 से 22 के अंतर्गत:
- अनुच्छेद 19: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विचार, आंदोलन, निवास और पेशे की
स्वतंत्रता।
- अनुच्छेद 20: दंड प्रक्रिया में सुरक्षा।
- अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत
स्वतंत्रता का अधिकार।
- अनुच्छेद 21A: निःशुल्क और अनिवार्य
प्राथमिक शिक्षा (6-14 वर्ष तक)।
- अनुच्छेद 22: गिरफ्तारी और निरोध के समय
अधिकारों की सुरक्षा।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right Against Exploitation)
अनुच्छेद 23 और 24 के अंतर्गत:
- अनुच्छेद 23: मानव तस्करी और बेगार पर
प्रतिबंध।
- अनुच्छेद 24: 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों
से खतरनाक उद्योगों में कार्य निषिद्ध।
4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion)
अनुच्छेद 25 से 28 के अंतर्गत:
- अनुच्छेद 25: धर्म की स्वतंत्रता।
- अनुच्छेद 26: धार्मिक संस्थानों को प्रबंध
करने का अधिकार।
- अनुच्छेद 27: धार्मिक कार्यों के लिए कर
नहीं।
- अनुच्छेद 28: शैक्षिक संस्थानों में
धार्मिक शिक्षा पर नियंत्रण।
5. सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (Cultural and Educational Rights)
अनुच्छेद 29 और 30 के अंतर्गत:
- अनुच्छेद 29: अपनी संस्कृति, भाषा और लिपि को सुरक्षित
रखने का अधिकार।
- अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक
संस्थान स्थापित करने और प्रबंध करने का अधिकार।
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)
अनुच्छेद 32 के अंतर्गत:
- डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इसे “संविधान का हृदय और आत्मा” कहा है।
- यदि कोई नागरिक अपने मौलिक अधिकारों का उल्लंघन पाता है तो वह सीधे सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट जा सकता है।
- मौहैबियस कॉर्पस,
मैंडेटस,
प्रोहिबिशन, सर्टियोरारी, क्वो वारंटो जैसी संवैधानिक रिट्स के
माध्यम से अधिकारों की रक्षा की जा सकती है।
मौलिक अधिकारों की विशेषताएँ
- ये अधिकार न्यायालयों द्वारा संरक्षित होते हैं।
- ये केवल भारतीय नागरिकों के लिए ही नहीं, कुछ मामलों में विदेशियों के लिए भी लागू होते हैं।
- आपातकाल के समय इनमें से कुछ अधिकार निलंबित किए जा सकते हैं।
मौलिक अधिकार बनाम विधायी शक्ति
मौलिक अधिकार संसद या राज्य विधानसभाओं की विधायी
शक्तियों को सीमित करते हैं। कोई भी ऐसा कानून, जो
इन अधिकारों का उल्लंघन करता है, असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है।
निष्कर्ष
मौलिक अधिकार भारतीय
लोकतंत्र की आत्मा हैं, जो
प्रत्येक नागरिक को न्याय, स्वतंत्रता
और समानता का एहसास कराते हैं। ये अधिकार न केवल नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा
करते हैं, बल्कि
सरकार की शक्ति को भी संतुलित करते हैं। संविधान प्रदत्त ये अधिकार हर भारतीय के
जीवन को गरिमा और स्वतंत्रता प्रदान करते हैं।
FAQ – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. मौलिक अधिकारों की संख्या कितनी है?
उत्तर: भारतीय
संविधान में कुल 6 मौलिक
अधिकार हैं।
2. मौलिक अधिकारों को संविधान में कहाँ दर्शाया गया है?
उत्तर: संविधान
के भाग 3 (अनुच्छेद
12 से 35) में
मौलिक अधिकारों का उल्लेख है।
3. किस मौलिक अधिकार को संविधान की आत्मा कहा गया है?
उत्तर: संवैधानिक
उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32) को डॉ. अंबेडकर ने संविधान की
"आत्मा" कहा है।
4. क्या मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर न्यायालय जा सकते हैं?
संविधान में इसका प्रावधान
भारत के संविधान का अनुच्छेद 32 (Article 32) यह अधिकार देता है कि यदि किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, तो वह प्रत्यक्ष रूप से उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) में जा सकता है। इसी तरह, अनुच्छेद 226 के तहत व्यक्ति उच्च न्यायालय (High Court) में भी जा सकता है।
अनुच्छेद 32 – "संवैधानिक उपायों का अधिकार"
- इसे "संविधान का हृदय और आत्मा" (Heart and Soul of the Constitution) कहा गया है – डॉ. भीमराव अंबेडकर के अनुसार।
- व्यक्ति रिट याचिका (writ petition) दाखिल करके न्याय मांग सकता है।
न्यायालय द्वारा जारी की जा सकने वाली रिट्स:
- हबीयस कॉर्पस (Habeas Corpus) – किसी को अवैध रूप से हिरासत में रखने के खिलाफ।
- मैंडमस (Mandamus) – किसी सरकारी अधिकारी को अपना कर्तव्य निभाने का आदेश देने के लिए।
- प्रोहिबिशन (Prohibition) – निचली अदालत को अपनी सीमा से बाहर जाकर काम करने से रोकने के लिए।
- क्वो वारंटो (Quo Warranto) – किसी व्यक्ति से यह पूछने के लिए कि वह किसी सार्वजनिक पद पर किस अधिकार से है।
- सर्टिओरारी (Certiorari) – निचली अदालत के आदेश को निरस्त करने के लिए।
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