आज़ाद हिन्द फ़ौज
भारत की स्वतंत्रता का अदम्य प्रतीक
प्रस्तावना
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास केवल अहिंसा और सत्याग्रह पर आधारित नहीं है, बल्कि इसमें ऐसे भी योद्धा शामिल हैं जिन्होंने हथियारों और संघर्ष के बल पर आज़ादी प्राप्त करने का मार्ग चुना। इन्हीं में से एक महान अध्याय है आज़ाद हिन्द फ़ौज (Indian National Army – INA)। यह सेना केवल एक संगठन नहीं थी, बल्कि यह करोड़ों भारतीयों की आज़ादी की पुकार का सशक्त प्रतीक बनी।
आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना
आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना का श्रेय रास बिहारी बोस को जाता है।
- द्वितीय विश्व युद्ध के समय हजारों भारतीय सैनिक जापान और दक्षिण-पूर्व एशिया में कैद हो गए थे।
- इन्हीं कैदियों और प्रवासी भारतीयों को संगठित कर 1942 में पहली बार आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया गया।
- बाद में सुभाष चन्द्र बोस ने 1943 में इसका नेतृत्व संभाला और इसे नई दिशा और ऊर्जा प्रदान की।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और आज़ाद हिन्द फ़ौज
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में यह संगठन और भी सशक्त हुआ।
- उन्होंने सिंगापुर में आज़ाद हिन्द सरकार (Provisional Government of Free India) की घोषणा की।
- उनका प्रसिद्ध नारा – “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा” – हर भारतीय के दिल में जोश भर देता था।
- नेताजी ने आज़ाद हिन्द फ़ौज को संगठित कर बर्मा (म्यांमार), अंडमान-निकोबार और उत्तर-पूर्व भारत तक अपनी पहुँच बनाई।
- उनका सपना था कि यह फ़ौज दिल्ली तक पहुँचे और भारत को अंग्रेजों से मुक्त करे।
संगठन और संरचना
आज़ाद हिन्द फ़ौज ने एक संगठित और अनुशासित सेना का रूप लिया।
- इसमें पुरुषों और महिलाओं दोनों को शामिल किया गया।
- महिलाओं की एक विशेष रेजीमेंट भी बनी जिसका नाम था “रानी झाँसी रेजीमेंट”, जिसका नेतृत्व कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने किया।
- फ़ौज को अलग-अलग ब्रिगेड में बाँटा गया और आधुनिक युद्धकला में प्रशिक्षित किया गया।
- सैनिकों में अधिकांश वे भारतीय थे जो ब्रिटिश सेना में थे और जापानी सेना द्वारा बंदी बनाए गए थे।
प्रमुख उपलब्धियाँ
- अंडमान-निकोबार की मुक्ति – जापान की मदद से इन द्वीपों को आज़ाद हिन्द सरकार के नियंत्रण में लिया गया।
- बर्मा अभियान – INA ने बर्मा से भारत की सीमा तक पहुँचने का साहसिक प्रयास किया।
- इम्फाल और कोहिमा युद्ध – हालांकि यह युद्ध सफल नहीं हो सका, लेकिन इसने अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी।
आज़ाद हिन्द फ़ौज के नारे और विचारधारा
आज़ाद हिन्द फ़ौज केवल हथियारों की ताकत पर नहीं, बल्कि देशभक्ति और आत्मबलिदान की भावना पर आधारित थी।
- “जय हिन्द” – यह नारा INA की पहचान बन गया और आज भी भारत का राष्ट्रीय नारा है।
- “दिल्ली चलो” – इस आह्वान ने भारतीयों में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की भावना को प्रबल किया।
- सैनिकों को यह विश्वास दिलाया गया कि उनकी कुर्बानी आने वाली पीढ़ियों को स्वतंत्रता दिलाएगी।
ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया
ब्रिटिश हुकूमत आज़ाद हिन्द फ़ौज से भयभीत हो उठी।
- युद्ध के बाद INA के सैनिकों को गिरफ्तार कर लाल किला मुकदमे (Red Fort Trials, 1945-46) चलाए गए।
- इन मुकदमों ने पूरे भारत में जनआक्रोश और समर्थन की लहर पैदा कर दी।
- यहाँ तक कि ब्रिटिश भारतीय सेना के अपने सैनिकों में भी असंतोष और विद्रोह की भावना जागृत हुई।
ऐतिहासिक महत्व
आज़ाद हिन्द फ़ौज भले ही सैन्य दृष्टि से अंग्रेजों को पराजित न कर सकी, लेकिन इसके राजनीतिक और मानसिक प्रभाव अत्यंत गहरे थे।
- इसने भारतीयों को यह विश्वास दिलाया कि अंग्रेज अजेय नहीं हैं।
- इस फ़ौज के कारण ब्रिटिश शासन को यह समझ आ गया कि अब भारतीय सेना भी उनके प्रति वफ़ादार नहीं रही।
- कई इतिहासकार मानते हैं कि INA और 1946 का रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश करने वाले निर्णायक कारणों में शामिल थे।
निष्कर्ष
आज़ाद हिन्द फ़ौज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का वह अद्भुत अध्याय है, जिसने दिखा दिया कि स्वतंत्रता केवल आंदोलन या बातचीत से नहीं, बल्कि संघर्ष और बलिदान से भी प्राप्त की जा सकती है।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और उनकी फ़ौज ने हमें सिखाया कि जब तक हम अपने अधिकारों के लिए साहस नहीं दिखाते, तब तक कोई भी शक्ति हमें स्वतंत्रता नहीं दिला सकती।
आज भी जब हम “जय हिन्द” कहते हैं, तो उसमें आज़ाद हिन्द फ़ौज की गूंज सुनाई देती है।
 
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