बेरोजगारी

बेरोजगारी

प्रकार, कारण, प्रभाव और समाधान

प्रस्तावना

किसी भी देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति उसके मानव संसाधन के उचित उपयोग पर निर्भर करती है। जब काम करने की क्षमता रखने वाले लोगों को नौकरी नहीं मिलती, तो उस स्थिति को बेरोजगारी कहा जाता है। भारत जैसे विकासशील देश में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या के रूप में उभर रही है, जो सामाजिक असमानता और आर्थिक विकास को प्रभावित करती है।


बेरोजगारी क्या है?

बेरोजगारी वह स्थिति है जिसमें कार्य करने की इच्छा और क्षमता रखने वाला व्यक्ति उपयुक्त रोजगार प्राप्त नहीं कर पाता।
अर्थात, काम के योग्य व्यक्ति के पास काम न होना ही बेरोजगारी है।


बेरोजगारी के प्रकार

1. खुली बेरोजगारी (Open Unemployment)

जब व्यक्ति के पास बिल्कुल भी नौकरी नहीं होती।

2. छिपी बेरोजगारी (Disguised Unemployment)

एक ही काम में अधिक लोग लगे होते हैं, जिनकी आवश्यकता नहीं होती। यह कृषि क्षेत्र में अधिक पाई जाती है।

3. मौसमी बेरोजगारी (Seasonal Unemployment)

कुछ काम केवल मौसम के अनुसार उपलब्ध होते हैं, जैसे – कृषि, पर्यटन, चीनी मिलें।

4. संरचनात्मक बेरोजगारी (Structural Unemployment)

रोजगार के लिए आवश्यक कौशल की कमी और तकनीक में बदलाव के कारण होने वाली बेरोजगारी।

5. चक्रीय बेरोजगारी (Cyclical Unemployment)

आर्थिक मंदी के दौरान उत्पादन घटने से रोजगार में कमी आ जाती है।

6. शिक्षा के बाद बेरोजगारी (Educated Unemployment)

शिक्षित युवाओं को उनकी योग्यता के अनुसार नौकरी नहीं मिलना।

7. अल्परोज़गारी (Underemployment)

व्यक्ति अपनी क्षमता और योग्यता से कम स्तर का काम करता है।


बेरोजगारी के प्रमुख कारण

1. जनसंख्या वृद्धि

भारत में तेजी से बढ़ती आबादी के मुकाबले रोजगार के अवसर कम बढ़ रहे हैं।

2. तकनीकी प्रगति

मशीनों ने कई पारंपरिक नौकरियों की जगह ले ली है।

3. कृषि पर अत्यधिक निर्भरता

भारत की बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है, जहां रोजगार के अवसर सीमित और मौसमी हैं।

4. कौशल की कमी

शिक्षा प्रणाली कौशल आधारित नहीं होने से युवाओं के पास नौकरी योग्य कौशल की कमी रहती है।

5. औद्योगिक विकास की धीमी गति

विनिर्माण और उद्योगों में अपेक्षित वृद्धि नहीं होने से रोजगार सृजन कम होता है।

6. आर्थिक असंतुलन

ग्रामीण क्षेत्रों में नौकरी की कमी और शहरी क्षेत्रों में बढ़ता बोझ।

7. भ्रष्टाचार और असमानता

कई बार योग्य उम्मीदवारों को अवसर नहीं मिलते और अनुचित चयन प्रक्रिया बाधा बनती है।


बेरोजगारी के प्रभाव

1. गरीबी में वृद्धि

नौकरी न मिलने से परिवार की आय घटती है और गरीबी बढ़ती है।

2. सामाजिक असंतोष

बेरोजगारी से अपराध, नशाखोरी और सामाजिक तनाव जैसी समस्याएँ बढ़ सकती हैं।

3. आर्थिक विकास में बाधा

मानव संसाधन का सही उपयोग न होने से देश की उत्पादकता कम हो जाती है।

4. पलायन

ग्रामीण लोग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करते हैं, जिससे भीड़ और समस्याएँ बढ़ती हैं।

5. मानसिक तनाव

नौकरी न मिलने से युवाओं में निराशा तथा मानसिक तनाव बढ़ता है।


बेरोजगारी दूर करने के उपाय

1. कौशल विकास कार्यक्रम

सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर युवाओं को आधुनिक कौशल (Skill Development) प्रदान करें।

2. उद्योगों का विस्तार

MSME, स्टार्टअप और विनिर्माण उद्योगों को बढ़ावा देना।

3. कृषि में सुधार और विविधीकरण

कृषि में आधुनिक तकनीक, प्रसंस्करण उद्योग और बागवानी को प्रोत्साहित करना।

4. रोजगार नीतियों में सुधार

सरकार द्वारा रोजगार आधारित योजनाएँ और नीतियाँ बनाना।

5. उद्यमिता को प्रोत्साहन

युवाओं को स्वयं का व्यवसाय शुरू करने के लिए ऋण, प्रशिक्षण और सहायता प्रदान करना।

6. शिक्षा प्रणाली में सुधार

सैद्धांतिक शिक्षा के साथ-साथ व्यावहारिक और कौशल आधारित शिक्षा की आवश्यकता।

7. डिजिटलीकरण और नई तकनीक

डिजिटल सेक्टर में रोजगार के नए अवसर बढ़ाना।


निष्कर्ष

बेरोजगारी भारत की प्रमुख सामाजिक-आर्थिक समस्याओं में से एक है। बढ़ती आबादी, कौशल की कमी और सीमित उद्योगों के कारण यह समस्या और जटिल बन जाती है।
युवाओं को कौशल आधारित शिक्षा, उद्योगों के विस्तार, और रोजगार-केंद्रित नीतियों के माध्यम से इस समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
एक मजबूत और विकसित राष्ट्र के निर्माण के लिए बेरोजगारी दूर करना अत्यंत आवश्यक है।



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